लोकल ट्रेन में यात्रा के लिए दोनों टीका लगवाना अनिवार्य

It is mandatory to get both the vaccines for traveling in local train
लोकल ट्रेन में यात्रा के लिए दोनों टीका लगवाना अनिवार्य
सरकार के रुख से हाईकोर्ट नाराज  लोकल ट्रेन में यात्रा के लिए दोनों टीका लगवाना अनिवार्य

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा लोकल ट्रेन से यात्रा के लिए कोविडरोधी दोनों टीकों की अनिवार्यता से जुड़े निर्णय को कायम रखने के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। कोर्ट ने कहा कि सरकार का यह निर्णय लोगों के मौलिक अधिकारों का हनन करता है। कोर्ट को स्वतः इस मामले का संज्ञान लेकर इस मामले से जुड़ी कई मानक संचालन प्रकिया (एसओपी) को रद्द कर देना चाहिए था। 

बुधवार को मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति एमएस कर्णिक की खंडपीठ ने कहा कि एक तरफ कहा जा रहा है कि कोविडरोधी टीका लेना ऐच्छिक है, अनिवार्य नहीं और दूसरी ओर ऐसी स्थिति बनाई जा रही है कि बिना दोनों टीका लिए लोकल ट्रेन में यात्रा नहीं की जा सकती है। इस स्थिती में टीके को लेकर लोगों की निजी पसंद का सवाल ही नहीं बचता। यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। 

खंडपीठ ने कहा कि हमने बड़ी गलती की जो इस याचिका को सिर्फ राज्य सरकार की ओर से जारी तीन एसओपी तक ही सीमित रखा। हमे खुद आगे बढकर 10 अगस्त 2021 को राज्य सरकार की ओर से जारी अधिसूचना को रद्द कर देना चाहिए था। लेकिन हमने आशा व विश्वास रखा कि सरकार खुद इस विषय पर तर्कसंगत निर्णय लेगी। सरकार के रुख से नाराज खंडपीठ ने कहा कि सरकार ने इस मामले में कोर्ट को एक सबक दिया है। 

खंडपीठ ने यह बात राज्य सरकार की ओर से जुलाई व अगस्त 2021 में लोकल ट्रेन में यात्रा करने को लेकर जारी एसओपी को लेकर दायर याचिका को समाप्त करते हुए कही। इस एसओपी के जरिए राज्य सरकार ने निर्देश जारी किया था कि जिसने कोविडरोधी दोनों टीके लिए उन्हें ही लोकल ट्रेन से यात्रा की इजाजत होगी। बुधवार को राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल अंतुरकर ने कहा कि सरकार लोकल ट्रेन में यात्रा को लेकर जारी निर्देश को कायम रखना चाहती है। यानी कोरोना का एक टीका लेनेवाले लोगों को लेकल ट्रेन से यात्रा की इजाजत नहीं होगी। इसके साथ ही उन्होंने खंडपीठ के सामने एक मार्च 2022 को तैयार की गई एसओपी भी पेश की। उन्होंने कहा कि इस एसओपी को अभी अधिसूचित व प्रकाशित नहीं किया गया है। इस बारे में राज्य कार्यकारी कमेटी व राजस्व विभाग के प्रधान सचिव तथा अन्य लोगों ने फैसला किया है।

फिर से दायर कर सकते हैं याचिका 

इस पर याचिकाकर्ता के वकील निलेश ओझा ने कहा कि सरकार के एसओपी से उनके मुवक्किल के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है। इसके बाद खंडपीठ ने कहा कि हम इसको लेकर सजग हैं कि आपके (याचिकाकर्ता) मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है इसलिए हम आपकी इस याचिका को समाप्त कर सरकार की नई एसओपी को चुनौती देने की छूट देते हैं। क्योंकि सरकार ने मामले को लेकर नए सिरे से फैसला लिया है। 

    
 

Created On :   3 March 2022 5:56 PM IST

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