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जेडीए ने लापरवाही या जानबूझकर लुटा दी करोड़ों की जमीन? शासन को हुई क्षति
डिजिटल डेस्क जबलपुर । शहर की आवासीय समस्या हल करने और शहर को नया रूप देने के लिए जबलपुर विकास प्राधिकरण का गठन किया गया था, लेकिन प्राधिकरण विकास की कहानी भूल कर व्यापार के धंधे करने लगा। प्राधिकरण ने मुस्कान प्लाजा के पीछे 52 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया और जमीन का मालिक बन गया था। अगर जेडीए चाहता तो इस जमीन पर शानदार कॉलोनी बनाकर शहर को सौगात दे सकता था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। 42 साल पहले अधिग्रहण की गई जमीन को किसानों ने औने-पौने दामों पर बेचकर अपना किनारा कर लिया था। इस जमीन का मालिक प्राधिकरण होते हुए भी ये जमीन बिल्डरों द्वारा खरीदी जाती रही। प्राधिकरण अपना मालिकाना हक जताने के लिए सूचना भी प्रकाशित करवाता रहा, बिल्डर विकास प्राधिकरण की जमीन को छुड़ाने के लिए जबलपुर से भोपाल तक की दौड़ कांग्रेस से लेकर भाजपा शासन में भी लगाते रहे और अंतत: प्राधिकरण के अधिकारियों ने ऐसा खेल खेला कि उक्त जमीन पर डीनोटिफिकेशन करवा दिया। इससे प्राधिकरण और शासन को करोड़ों की क्षति हुई। इसकी भरपाई अब कौन करेगा इसका उत्तर किसी के पास नहीं है।
सोते रहे अधिकारी
जिन किसानों की जमीन नगर सुधार न्यास के माध्यम से प्राधिकरण के पास आई थी, जबलपुर विकास प्राधिकरण के किसी भी अधिकारी ने इस जमीन की कार्रवाई को आगे बढ़ाने में रुचि नहीं दिखाई। तत्कालीन अध्यक्ष विनोद मिश्रा ने तीन साल पहले प्राधिकरण के मालिकाना हक को कानूनी रूप देते हुए सूचना प्रकाशित कराई थी कि इस जमीन का मालिक प्राधिकरण है और इस पर किसी भी प्रकार की खरीद-फरोख्त शून्य मानी जाएगी। प्राधिकरण की 22 मार्च 2018 को हुई बैठक में शासन ने सभी पूर्व प्राप्त अनुमतियों को जो ग्रीन बेल्ट से संबंधित थी उसे शून्य कर दी थी, क्योंकि ये जमीन आवासीय हो चुकी थी। इसके पहले और बाद भी इस भूमि पर बिल्डरों का खेल जारी रहा। जिसमें टाउन एण्ड कंट्री प्लानिंग व नगर निगम के अधिकारी भूमि की एनओसी रद्द होने के बाद भी आँखें बंद करके नक्शे पास करते रहे। बिल्डरों का करोड़ों रुपए कमाने का सपना उस समय ध्वस्त हो गया था, जब प्राधिकरण ने इस भूमि पर अपना मालिकाना हक जताया था।
आँखें बंद कर जमीन छोडऩे की कार्रवाई कर दी जबलपुर विकास प्राधिकरण ने
प्रकाशन में जिन किसानों के नाम जमीन छोड़ी गई है, वर्तमान में कुछ किसानों के नाम खसरे में नहीं हैं। ऐसी स्थिति में इस जमीन पर मालिकाना हक किसका होगा यह बड़ा सवाल है, चूँकि उक्त जमीन का जेडीए मालिक रहा पर खरीदी-बिक्री होती रही और खसरे व नक्शे पर नाम चढ़ते रहे। अब किस आधार पर वर्तमान में जिनके नाम खसरों में हैं उनका मालिकाना हक क्या जायज माना जाएगा? डीनोटिफिकेशन करते वक्त अधिकारियों को पूरा खेल मालूम था, लेकिन वे आँखें बंद कर जमीन छोडऩे की कार्रवाई करते रहे।
मैं कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता
बोर्ड बैठक के निर्णय पर मैं किसी तरह का हस्तक्षेप नहीं कर सकता हँू। जो भी निर्णय हुए हैं वे मेरे आने के पूर्व के हैं।
-प्रशांत श्रीवास्तव, सीईओ जबलपुर विकास प्राधिकरण
Created On :   23 July 2021 2:20 PM IST