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सदियों से नहीं सूखा है दो फिट का झदवा कुंड, पेश कर रहा है समरसता की मिसाल
डिजिटल डेस्क शहडोल । पानी को लेकर अक्सर विवाद होते हैं। कई बार यह बड़ा रूप भी ले लेते हैं, लेकिन सिंहपुर स्थित झदवा कुंड सामाजिक समरसता की मिसाल पेश कर रहा है। दो बाई दो के इस कुंड में पानी भरने के लिए हर जाति और संप्रदाय के लोग पहुंचते हैं। न कोई बड़ा न छोटा सब एकसाथ यहां से पानी भरते हैं। सबसे खास बात यहां का पानी कभी सूखता नहीं है।
सिंहपुर गांव से करीब तीन किलोमीटर दूर बूढ़ी देवी मंदिर के पास यह कुंड है। इसमें हर समय पानी भरा रहता है। यहां पानी कहां से आता है, यह भी एक रहस्य है। ऊंचाई में होने के बावजूद कुंड भरा रहता है। इसके नीचे से उतइला नदी बहती है, जो इस समय सूख चुकी है। गांव के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि करीब 200 साल पहले से यहां से पानी निकल रहा है। पहले पास ही इमली के पेड़ के नीचे गड्ढे में पानी भरता था। बाद में गांव के लोगों ने इसे कुंड का रूप दे दिया। गांव में जल स्रोत कितना भी नीचे चला जाए, भीषण अकाल पड़ जाए, लेकिन कुंड का पानी नहीं सूखता है। पानी कम जरूर हो जाता है, कुछ देर इंतजार करने के बाद फिर से उतना ही भर जाता है।
अकाल में पूरा गांव ले जाता था पानी
गांव के वयोवृद्ध वंशू विश्वकर्मा (90) बताते हैं कि करीब 80 साल पहले जब भीषण अकाल पड़ा था। आसपास के नदी, तालाब सूख गए थे। कुओं में पानी नहीं था। तब भी यहां का पानी कम नहीं पड़ा था। गांव की आधी आबादी पीने के लिए यहां से पानी ले जाती थी। वंशू और उनका परिवार वर्षों से यहां का पानी पी रहा है। वंशू की तरह ही गांव के कई परिवार हैं, जिनके घरों में पीने के लिए कुंड से रोजाना पानी जाता है।
स्वास्थ्य के लिए लाभदायक
कुंड का पानी स्वास्थ्य के लिए भी काफी लाभप्रद है। बूढ़ी देवी मंदिर समिति के अध्यक्ष बाबूलाल कुशवाहा बताते हैं कि यहां पानी 10 से 15 दिन तक खराब नहीं होता है। यह पानी पाचन शक्ति बढ़ाता है। नियमित यहां का पानी पीने वालों को कभी पाचन संबंधी शिकायत नहीं रहती है। स्वाद में भी अन्य जल स्रोतों से इसका पानी अलग और मीठा है। छोटी माता, बड़ी माता निकलने पर भी लोग इलाज के रूप में इसका इस्तेमाल करते हैं।
गांव की एकता का प्रतीक
पांच हजार से ऊपर की आबादी वाले सिंहपुर गांव में विभिन्न जाति और समुदाय के लोग रहते हैं। गांव के लिए यह कुंड आपसी भाईचारे और एकता का प्रतीक है। यहां से मोहम्मद ताहिर अंसारी भी अपने घर के लिए पानी ले जाते हैं, श्रीकांत पांडेय भी और गणेश तिवारी भी। इसके अलावा कई बैगा परिवार, कुशवाहा, गुप्ता, विश्वकर्मा और ब्राह्मण परिवारों के लिए यह पेयजल का प्रमुख स्रोत है।
Created On :   26 April 2018 2:53 PM IST