- Home
- /
- राज्य
- /
- महाराष्ट्र
- /
- मुंबई
- /
- फडणवीस को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के...
फडणवीस को प्रदेश अध्यक्ष बनाने के खिलाफ थे खडसे, गोपीनाथ मुंडे ने की थी मनाने की कोशिश
डिजिटल डेस्क, मुंबई। भाजपा से इस्तीफा देने वाले दिग्गज नेता एकनाथ खडसे और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के बीच के रिश्ते साल 2013 से बिगड़ने शुरू हो गए थे। तत्कालिन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण के नेतृत्व वाली आघाड़ी सरकार के समय खडसे और फडणवीस विपक्ष के दमदार चेहरा माने जाते थे। लेकिन साल 2013 में फडणवीस को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने का प्रस्ताव आया तो खडसे नाराज होकर जलगांव चले गए थे।खडसे इतने खफा थे कि वे भाजपा के वरिष्ठ नेता गोपीनाथ मुंडे का फोन उठाने के लिए तैयार नहीं थे। आलम यह था कि खडसे पार्टी के नेताओं के संपर्क से बाहर हो गए थे। इसके बाद मुंडे ने खडसे से संपर्क के लिए पुणे से भाजपा के पूर्व राज्यमंत्री को आधी रात जलगांव भेजा। इसके बाद मुंडे का खडसे से संपर्क हो पाया। खडसे को मनाने गए उस नेता ने बुधवार को ‘दैनिक भास्कर’ से बातचीत में कहा कि मुझे रात 11.30 बजे मुंडेजी का फोन आया। उन्होंने कहा कि मेरा खडसे से संपर्क नहीं हो पा रहा है। आप जलगांव जाकर मेरी उनसे फोन पर बात करवाइए। इसके बाद मैं आधी रात को जलगांव के लिए रवाना हुआ। सुबह जलगांव पहुंचने पर खडसे ने मुंडे से बात की। मुंडे के समझाने के बाद खडसे मुंबई आने के लिए तैयार हुए। मैं और खडसे मुंबई पहुंचे। इसके बाद उनके मंत्रालय के सामने वाले सरकारी बंगले में बैठक हुई। मान मनौव्वल के बाद खडसे फडणवीस को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बनाने के लिए तैयार हुए। खडसे नहीं चाहते थे कि फडणवीस भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बने। जबकि भाजपा के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह कह रहे थे कि खडसे जिसको कहेंगे प्रदेश अध्यक्ष वही बनेगा। मुंडे के समझाने के बाद खडसे फडणवीस नाम पर राजी हुए थे।
मुख्यमंत्री बनाने से भी नाराज थे खडसे
खडसे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद पर फडणवीस की नियुक्ति से तो नाराज थे ही लेकिन इसके बाद साल 2014 के विधानसभा चुनाव बाद फडणवीस को जब मुख्यमंत्री बनाया गया तो खडसे का गुस्सा और बढ़ गया। क्योंकि खडसे अपने आप को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मान रहे थे। उस समय नाराज खडसे ने पंढरपुर में कहा था कि मुख्यमंत्री बहुजन समाज का रहेगा तो अच्छा होगा। इसके बाद से दोनों नेताओं की बीच गांठ पड़ गई थी और यह दूरी बढ़ती गई। आखिकार खडसे को पार्टी छोड़नी पड़ी।
छह बार विधायक, दो बार मंत्री रहे खडसे
जलगांव की कोथली के सरपंच पद से अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत करने वाले खडसे ने लंबा राजनीतिक सफर तय किया है। खडसे साल 1984 में कोथली ग्राम पंचायत से पहली बार सरपंच बने। वे 1987 तक सरपंच पद पर रहे। फिर 1982 से 1990 तक जलगांव की एदलाबाद पंचायत समिति के सदस्य रहे। 1990 में पहली बार विधानसभा के लिए निर्वाचित हुए। खडसे साल 1990, साल 1995, साल 1999, साल 2004, साल 2009 व साल 2014 के विधानसभा चुनाव में लगातार छह बार विधायक बने। साल 1995 में शिवसेना-भाजपा की युति सरकार में खडसे पहली बार मंत्री बने। खडसे ने उच्च व तकनीकी शिक्षा, जलसंसाधन, वित्त, नियोजन समेत अन्य विभागों के मंत्री के रूप में काम किया। इसके बाद साल 2009 से 2014 तक विधानसभा में विपक्ष के नेता पद की जिम्मेदारी संभाली। साल 2014 में भाजपा सरकार बनने के बाद खडसे दोबारा मंत्री बने। खडसे नवंबर 2014 से जून 2016 तक राजस्व, कृषि, मदद कार्य व पुनर्वसन, भूंकप पुनर्वसन, अल्पसंख्यक विकास विभाग, पशुसंवर्धन विभाग, उत्पादन शुल्क विभाग के मंत्री रहे। जून 2016 में उन्हें कैबिनेट मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।
प्रदेश अध्यक्ष नहीं बन पाए खडसे
खडसे प्रदेश भाजपा के संगठन के विभिन्न पदों पर रहे। लेकिन प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष की कुर्सी उन्हें नसीब नहीं हुई। खडसे साल 1980-85 तक भाजपा के मुक्ताईनगर तहसील अध्यक्ष पद पर रहे। 1991 से 1995 तक भाजपा के जलगांव जिला अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी संभाली। 1999 से 2004 तक प्रदेश भाजपा के महासचिव रहे। साल 2004 से भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे।
Created On :   21 Oct 2020 8:20 PM IST