प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भारत के प्रथम बलिदानी राजा शंकर शाह एवं रघुनाथ शाह- डॉ. आनंद सिंह राणा (जनसंपर्क संचालनालय की विशेष फीचर श्रृंखला)!

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भारत के प्रथम बलिदानी राजा शंकर शाह एवं रघुनाथ शाह- डॉ. आनंद सिंह राणा (जनसंपर्क संचालनालय की विशेष फीचर श्रृंखला)!
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भारत के प्रथम बलिदानी राजा शंकर शाह एवं रघुनाथ शाह- डॉ. आनंद सिंह राणा (जनसंपर्क संचालनालय की विशेष फीचर श्रृंखला)!

डिजिटल डेस्क | मन्दसौर भारत के हृदय स्थल में स्थित त्रिपुरी (जबलपुर) के महान कलचुरी वंश का तेरहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में अवसान हो गया था। फलस्वरूप सीमावर्ती शक्तियाँ इस क्षेत्र को अपने अधीन करने के लिए लालायित हो रही थी। अंतत: इस संक्रांति काल में एक वीर योद्धा जादों राय (यदु राय) ने गढ़ा- कटंगा क्षेत्र जबलपुर में गोंड वंश की नींव रखी। कालांतर में यह साम्राज्य गोंडवाना साम्राज्य के नाम से जाना गया। गोंडवाना साम्राज्य का स्वर्ण युग रानी दुर्गावती का समय था। एक समय अंतराल के बाद उत्तर भारत में राजनीतिक परिवर्तन हुए। मुगलों ने अकबर के नेतृत्व में मुगल साम्राज्य की उत्तर भारत में पुनर्स्थापना की।

गोंडवाना साम्राज्य का वैभव और संपन्नता को देखकर अकबर ने गोंडवाना साम्राज्य को मुगल साम्राज्य में मिलाने के लिए सेनापति आसफ खान को भेजा। सेनापति आसफ खान के साथ रानी दुर्गावती के 6 युद्ध हुए जिनमें 5 युद्धों में रानी दुर्गावती विजयी रही। छठें युद्ध में आसफ खान के पास तोपखाना आ जाने और रानी दुर्गावती के एक सामंत बदन सिंह के विश्वासघात के कारण युद्ध के परिणाम विपरीत होने लगे तब रानी दुर्गावती ने 24 जून 1564 को अपने महावत के हाथों से कटार लेकर अपना प्राणोत्सर्ग किया। इसके बाद दलपति शाह के छोटे भाई राजा चंद्र शाह गोंडवाना साम्राज्य के राजा बने और यह साम्राज्य मुगलों के अधीन आ गया। राजा चंद्र शाह की 11 वीं पीढ़ी में राजा शंकर शाह का जन्म मंडला के किले में हुआ।

इनके पिता का नाम सुमेर शाह और दादा का नाम निजाम शाह था। 18वीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों में भारत की राजनीतिक परिस्थितियों में आमूलचूल परिवर्तन आया और मराठों ने पेशवा के नेतृत्व में मुगलों से गोंडवाना साम्राज्य हस्तगत कर लिया। इसके साथ ही सुमेर शाह को मराठों के प्रतिनिधि के रूप में मंडला में राज्य संभालने थे। सन् 1804 में सुमेर शाह की मृत्यु हो गई। सन् 1818 में गोंडवाना साम्राज्य मराठाओं के हाथ से निकल गया, अंग्रेजों ने मंडला को अपने अधीन कर लिया और मध्य प्रांत में मिला लिया। इसके बाद राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को जबलपुर में गढ़ा पुरवा के पास के 3 गाँव की जागीर देकर पेंशन दे दी गई।

राजा शंकर शाह अंग्रेजों के इस दुर्व्यवहार के विरुद्ध थे और अंग्रेजों से स्वतंत्रता चाहते थे। आगे चलकर महारथी शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह ने सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में तोप के मुंह से उड़कर (Blowing from a gun) संपूर्ण भारत में किसी भी रजवाड़े परिवार की ओर से प्रथम बलिदान दिया। 19वीं शताब्दी मध्यान्ह तक अंग्रेजों के अत्याचार और अनाचार चरम सीमा पार कर गए थे। डलहौजी की हड़प नीति के बाद भारत में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की पृष्ठभूमि तैयार हो रही थी जिसकी जानकारी राजा शंकर शाह और कुंवर रघुनाथ शाह को भी लग गई थी। जबलपुर स्थित गढ़ा पुरवा में मंडला, सिवनी, नरसिंहपुर, सागर, दमोह सहित मध्य प्रांत के के लगभग सभी रजवाड़े परिवार, जमींदार, मालगुजार के साथ 52 गढ़ों से सेनानी भी मिलने आने लगे थे। जबलपुर कैंटोनमेंट क्षेत्र से 52वीं नेटिव इन्फेंट्री के सूबेदार बलदेव तिवारी के साथ कई सैनिक राजा शंकरशाह और कुंवर रघुनाथ शाह से मिलने आते थे।

राजा शंकर शाह एवं कुंवर रघुनाथ शाह ने अंग्रेजों के विरुद्ध शक्तिशाली संगठन तैयार कर लिया था। राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह ने मध्य प्रांत के रजवाड़े परिवार जमींदारों और मालगुजारों को एकत्रित करने के लिए रोटी और कमल की जगह दो काली चूड़ियों की पुड़िया जिसमें संदेश लिखा होता था कि "अंग्रेजों से संघर्ष के लिए तैयार रहो या चूड़ियाँ पहन कर घर बैठो"। जो रजवाड़े परिवार, जमींदार और मालगुजार इस पुड़िया को स्वीकार कर लेते थे तो इसका आशय होता था कि वे अंग्रेजों के विरुद्ध संग्राम में शामिल हैं और जो स्वीकार नहीं करते थे तो यह मान लिया जाता था कि वे साथ नहीं है।

इस तरह से मध्य प्रांत में राजा शंकर शाह और रघुनाथ शाह के नेतृत्व में अंग्रेजों के विरुद्ध एक मोर्चा तैयार हो गया था। उनका झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे तथा कुंवर साहब से भी संपर्क था। महारथी मंगल पांडे ने 29 मार्च सन् 1857 में बैरकपुर छावनी में 34 वीं नेटिव इन्फेंट्री की ओर से प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का शंखनाद कर दिया। कानपुर, लखनऊ और दिल्ली से होने वाली भयंकर घटनाओं के समाचार भी राजा शंकरशाह और रघुनाथशाह तक पहुँचे। उत्तेजित हुए राजा शंकर शाह ने भी 10 सितंबर 1857 को जबलपुर में गढ़ा पुरवा में बैठक बुलाई और मध्य प्रांत में स्वतंत्रता संग्राम का श्रीगणेश करने की योजना भी बना ली, जिसमें मध्य प्रांत के अधिकांश रजवाड़े, जमींदार एवं मालगुजार एकत्रित हुए %

Created On :   17 Sep 2021 11:05 AM GMT

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