कोरबा : कभी गाना तो कभी कहानी सुनाकर खिलाया खाना, श्वेता का बढ़ गया वजन, खत्म हुआ कुपोषण : जो तीन साल में नहीं हो सका वो एक साल में हो गया

District Mineral Fund is not being used in Gadchiroli!
गड़चिरोली में जिला खनिज निधि का नहीं हो रहा कोई उपयाेग!
कोरबा : कभी गाना तो कभी कहानी सुनाकर खिलाया खाना, श्वेता का बढ़ गया वजन, खत्म हुआ कुपोषण : जो तीन साल में नहीं हो सका वो एक साल में हो गया

डिजिटल डेस्क, कोरबा। अपने घर में या अमगांव के आंगनबाड़ी केन्द्र में कभी गाना गाते-सुनते, तो कभी कहानी किस्सा सुनते अण्डा-मूंगफली के लड्डू खाती श्वेता की मुस्कुराहट सभी के मन मस्तिष्क को प्रफुल्लित कर देती है। अपनी अठखेलियों और बाल हठों से सभी को अपनी तरफ आकर्षित कर लेने वाली श्वेता का वजन अब साढ़े तेरह किलो हो गया है। आज की श्वेता को देखकर कोई नहीं कह सकता कि एक साल पहले तक वह कमजोर-कुपोषितों की श्रेणी में शामिल थी। दो सितंबर 2015 को जन्मी कम वजन की श्वेता चार साल की उम्र तक कुपोषण की शिकार थी। माता-पिता ने दैनिक मजदूरी करके घर परिवार चलाने से ना तो उसे पौष्टिक भोजन मिल पा रहा था ना ही कोई उसका पूरा ध्यान रख पा रहा था। उसकी मां का स्वास्थ्य भी ठीक नहीं था जिससे स्तनपान से भी पर्याप्त दूध श्वेता को नहीं मिल पाता था। ऐसे ही समय निकलता गया। खान-पान में अनियमितता, स्वास्थ्य के प्रति जानकारी का अभाव आदि के चलते श्वेता चार साल तक कुपोषण की जद में रहने पर मजबूर थी। उसका वजन लगातार घट रहा था। ऐसे में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने श्वेता की मां श्रीमती सरिता दुबे से मुलाकात कर उन्हें स्वयं तथा बच्ची के उचित खानपान, नियमित स्तनपान, टीकाकरण और आंगनबाड़ी से मिलने वाली पूरक पोषण आहार रेडी-टू-ईट खिलाने की सलाह दी। बीच में बच्ची का चिरायू टीम द्वारा चेकअप भी कराया गया तथा मुख्यमंत्री बाल संदर्भ मेला में भी उसे टाॅनिक आदि दिलवाई गई। इन सबके सेवन के बाद भी श्वेता के स्वास्थ्य में अपेक्षित सुधार नहीं हो रहा था। तीन वर्ष की उम्र से उसने आंगनबाड़ी में आना शुरू किया और एकीकृत बाल विकास परियोजना के तहत उसे आंगनबाड़ी की सभी सेवाएं मिलनी शुरू हुई। लेकिन वर्ष 2019 में शुरू हुए मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान ने श्वेता के स्वास्थ्य में आमूल-चूल परिवर्तन किया। अभियान के तहत उसे प्रत्येक बच्चा लक्ष्य हमारा ‘प्रबल‘ कार्यक्रम से जोड़ा गया। श्वेता को पूरक पोषण आहार और घर पर भोजन के साथ ही आंगनबाड़ी में हफ्ते में तीन दिन अण्डा व तीन दिन फल्ली-गुड़ के लड्डू खाने को दिए गए। पहले-पहले श्वेता को अण्डा-मूंगफली लड्डू खाना अरूचिकर लगा तब कभी गाना गाकर तो कभी कहानी सुनाकर खेल-खेल में उसे पौष्टिक भोजन के लिए पे्ररित किया गया। आंगनबाड़ी के खिलौनों और अन्य रोचक खेलों से आकर्षित होकर श्वेता रोज आंगनबाड़ी आने लगी और उसका खानपान ठीक हो गया। आंगनबाड़ी कार्यकर्ता ने भी श्वेता की मां सरिता दुबे से समय-समय पर मिलकर खानपान का उचित तरीका, पौष्टिक व गर्म भोजन आदि के साथ साफ-सफाई का महत्व समझाया। सुपोषण अभियान के अण्डा और मूंगफली के लड्डू से श्वेता के स्वास्थ्य में सुधार होने लगा। आज श्वेता का वजन साढ़े तेरह किलो हो गया है और वह कुपोषण की स्थिति से निकलकर सुपोषण श्रेणी में आ गई है। श्वेता के जन्म के बाद से ही उसके स्वास्थ्य तथा शारीरिक-मानसिक विकास के लिए चिंतित माता-पिता की पूरी परेशानी अब काफूर हो गई है। श्रीमती सरिता दुबे बताती है कि जन्म के समय श्वेता मात्र ढाई किलो की थी और सुपोषण अभियान से जुड़ने के बाद उसका वजन तेजी से बढ़ा है और अब वह साढ़े तेरह किलो की हो गई है। सरिता दुबे कहती है कि श्वेता का जो वजन पिछले तीन साल में नहीं बढ़ पाया था, सुपोषण अभियान से वह अब एक साल में बढ़ गया है। सरिता दुबे ने अपनी बच्ची के स्वास्थ्य सुधार के लिए छत्तीसगढ़ सरकार के सुपोषण अभियान के प्रति आभार व्यक्त किया है।

Created On :   8 Dec 2020 3:27 PM IST

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story