खेलकूद को बढ़ावा देने के लिए संसाधनों का अभाव, नए पदों के लिए प्रयास नहीं

Lack of resources to promote sports, no effort for new positions
खेलकूद को बढ़ावा देने के लिए संसाधनों का अभाव, नए पदों के लिए प्रयास नहीं
40 प्रतिशत स्कूलों में मैदानों की कमी खेलकूद को बढ़ावा देने के लिए संसाधनों का अभाव, नए पदों के लिए प्रयास नहीं

डिजिटल डेस्क सिवनी । टोक्यो ओलंपिक में भारत को एथेलेटिक्स में गोल्ड मैडल तो मिला लेकिन इसने हमें बहुत कुछ सीख दे दिया। जिले में खेलकूद गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए न तो संसाधन है और न ही सुविधाएं। हालात यह है कि 40 फीसदी से अधिक स्कूलों में  मैदानों की कमी है तो वहीं खेल शिक्षक पर्याप्त नहीं हैं। इतना ही नहीं स्कूल गेम्स  में अलग अलग वर्ग के लिए 64 में से तो आधे से अधिक भी नहीं हो पाते। सरकारी संस्थाएं प्राइवेट स्कूलों से खेल मैदान को अनिवार्य कर रही है लेकिन उनके ही सरकारी स्कूलों में मैदान की कमी है।
पीटीआई की स्थिति
क्षेत्र            स्वीकृत   कार्यरत
शिक्षा विभाग   38       16
ट्रायबल विभाग 36       15
कुल           74       31
खेल मैदानों की कमी
खेल के लिए नर्सरी स्कूलों से ही शुरु होती है लेकिन सरकारी स्कूलों में ही खेल मैदानों की कमी है। आदिवासी विभाग के 64 हाईस्कल और 64 हायर सेकेण्डरी और शिक्षा विभाग के 55 हाईस्कूल और 38 हायर सेकण्डरी स्कूलों में 40 प्रतिशत स्कूलों में ही खेल मैदान है। जिला मुख्यालय के ही उत्कृष्ट  स्कूल में सुविधायुक्त खेल मैदान नहीं है। यही हाल नेताजी सुभाषचंद्र बोस हायर सकेण्डरी,तिलक और अन्य स्कूलों के हैं। ये स्कूल  दूसरे स्कूलों के खेल मैदान पर ही प्रतियोगिताएं कराते हैं। नगर में पुलिस लाइन मैदान, स्टेडियम फुटबॉल मैदान और पॉलीटेक्निक कॉलेज के मैदान ही बचे हैं जहां पर स्पर्धाएं होती है।
एथेलेक्टिस के लिए संसाधन नहीं
सरकार ने स्कूल गेम्स में 64 खेल शामिल किए हैं। 36 तो एथेलेटिक्स में आते हैं लेकिन उस अनुसार संसाधनों की कमी है। प्राइमरी के लिए 20 बाई 40 मीटर, मिडिल के लिए 100 बाई 60 मीटर और हायर सेकेण्डरी स्कूल के लिए 130 बाई 100 मीटर का मैदान होना चाहिए।  ऐसे मैदान कम ही स्कूलों में है। प्राइमरी स्कूल में मैदान न के बराबर हैं। वहीं दूसरी और इंडोर स्टेडियम एक मात्र है। जबकि हॉकी के लिए एक मात्र एस्ट्रोटर्फ खैल मैदान हैं। जबकि हॉकी के लिए पुलिस लाइन और एस्ट्रोटर्फ पर ही स्पर्धाएं होती हैं।
2005 से नई भर्ती नहीं
स्कूलों में खेलों के लिए पीटीआई यानी खेल शिक्षकों की भर्ती 2005 से नहीं हुई। एक पीटीआई पूरे गेम्स नहीं करा पाता। जबकि हाईस्कूल और  हायर सेकेण्डरी स्कूल में खेल शिक्षक जरूरी है। अदिवासी विकास विभाग के ब्लॉक में कहीं एक तो कहीं दो पीटीआई ही हैं। इसके पीछे खेल सामाग्री और मैदान का हवाला दिया जाता है। जिले में तो खेल कैलेंडर के अनुसार दस से 11 खेल ही हो पाते हैं। कई खेल ऐसे हैं जो तो बच्चे भी नहीं जानते  और न ही उनका नाम सुना है। स्कूलों में खेल के लिए क्लास भी नियमित नहीं लगी हैं। कभी कभार ही खेलकूद की गतिविधियां कराई जाती रही हैं।
इनका कहना है
जो खेल सुविधाएं हैं उसके अनुसार बेहतर खेल कराए जा रहे हैं। पूरी कोशिश की जा रही है कि अधिक से अधिक खेल प्रतिभाओं को निखारा जा सके।
सतेंद्र मरकाम, सहायक आयुक्त, आदिवासी विकास विभाग
 

Created On :   13 Aug 2021 3:25 PM IST

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