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लखन भैय्या मुठभेड़ मामले में सरकार को झटका - 11 पुलिसकर्मियों की सजा निलंबित करने का आदेश रद्द
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने छोटा राजन के करीबी रामनरायण गुप्ता उर्फ लखन भैय्या फर्जी मुठभेड मामले में राज्य सरकार को तगड़ा झटका दिया है। बुधवार को हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के उस आदेश को रद्द कर दिया है जिसके तहत मामले में दोषी पाए गए 11 पुलिसकर्मियों की अजीवन कारावास की सजा को सरकार ने निलंबित कर दिया था। सरकार के इस निर्णय के खिलाफ लखन भैय्या के भाई राम प्रसाद ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर उसे चुनौती दी थी। याचिका में सरकार के फैसले को अवैध व कानून के खिलाफ बताया गया था।
न्यायमूर्ति बीपी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति रेवती मोहिते ढेरे की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। सुनवाई के बाद खंडपीठ ने कहा कि आरोपियों की सजा को निलंबित करने से जुड़े सरकार का आदेश खामीपूर्ण है। यह कानून की कसौटी में खरा नहीं उतरता है। मामले से जुड़े तथ्यों को देखकर प्रतीत होता है कि आरोपियों को जेल से बाहर निकालने के लिए सरकारी एजेंसियों ने पक्षपात पूर्ण रिपोर्ट तैयार कि जिससे आरोपियों की रिहाई सुनिश्चित हो सके। कानून का राज कायम रखने के लिए प्रशासकीय अादेश की समीक्षा जरुरी है। अन्यथा इसका परिणाम न्यायिक विफलता के रुप में होगा। खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में सत्र न्यायालय के न्यायाधीश के साथ ही अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक व पुलिस आयुक्त ने सरकार को अपनी राय सौपते वक्त विवेक का इस्तेमाल नहीं किया है।
खंडपीठ ने कहा कि इस तरह के मामले को लेकर जब सरकार न्यायाधीश से राय मंागती है तो उसका उद्देश्य होता है कि न्यायाधीश अपनी राय देते समय अपराध के स्वरुप, मुजरिमों की पृष्ठभूमि व उससे जुड़े सभी प्रासंगिक पहलूओं पर विचार करेगा। क्योेंकि न्यायाधीश की राय के आधार पर ही सरकार तय करती है कि सजा को निलंबित किया जाए की नहीं। इसलिए न्यायाधीश अपने दायित्व के निर्वाह में लापरवाही नहीं बरत सकता है। किंतु इस मामले में लापवाही नजर आ रही है। जेल प्रशासन ने इस मामले में राय के लिए न्यायाधीश से संपर्क किया था। लेकिन जेल प्रशासन ने राय के लिए गलत न्यायाधीश का चुनाव किया था। नियमानुसार जेल प्रशासन को उसी न्यायाधीश से संपर्क करना चाहिए, जिसने इस मामले में फैसला सुनाया था। यदि फैसला सुनाने वाला न्यायाधीश उपलब्ध न हो तो उसके स्थान पर आए न्यायाधीश से राय ली जानी चाहिए।
गौरतलब है कि नवंबर 2006 में मुंबई के अंधेरी इलाके में हुई मुठभेड़ में लखन भैय्या की हत्या की गई थी। 13 पुलिसकर्मियों सहित 22 पुलिसवालों को इस मामले में आरोपी बनाया गया था। साल 2013 में सत्र न्यायालय ने इस मामले में 21 लोगों को अजीवन कारावास की सजा सुनाई। न्यायालय ने सबूत के आभाव में पुलिस अधिकारी प्रदीप शर्मा को बरी कर दिया। दो साल बाद राज्य सरकार ने 11 दोषी पुलिसकर्मियों की सजा निलंबित कर दिया था।
Created On :   7 March 2019 3:32 PM IST