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लैंडफिल एरिया समस्या बन रहा, रिसाइक्लिंग जरूरी : डॉ. पीयू असनानी
डिजिटल डेस्क, नागपुर। महानगरों में लैंडफिल एरिया समस्या बनते जा रहे हैं। महानगर पालिकाओं को तय करना चाहिए कि कुल शहर से संकलित कचरे का 10-20 फीसदी ही लैंडफिल तक पहुंचे, शेष को श्रेणी के अनुसार चुनकर रिसाइक्लिंग के लिए भेजा जाना चाहिए। सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट का अर्थ शहरों के बाहर कचरे का पहाड़ बनाना नहीं है। ये विचार सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ व सुप्रीम कोर्ट की ओर से साॅलिड वेस्ट मैनेजमेंट पर बनाई गई कमेटी के सदस्य डॉ. पीयू असनानी ने व्यक्त किए।
डॉ. असनानी नीरी में आयोजित क्लोजिंग द लूप : म्यूनिसपल सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट, स्टेट्स, चैलेंज एंड वे फॉरवर्ड विषय पर आयोजित कार्यशाला में म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट में नीति संबंधी समस्याओं पर बोल रहे थे। कार्यशाला में विशेषज्ञों ने इस क्षेत्र में अध्ययन हेतु आंकड़ा संकलन की कमी, पर्यावरण संबंधी नियम कानूनों में अस्थिरता और समस्या के निराकरण के लिए सही रोड मैप की कमी जैसे मुद्दे भी उठाए। कार्यशाला में एनजीटी के पूर्व तकनीकी सदस्य डॉ. अजय देशपांडे, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वेस्ट मैनेजमेंट की कार्यकारी निदेशक डॉ. पी बिनिशा, मैंनेजमेंट नीरी के निदेशक डॉ. राकेश कुमार, चीफ साईंटिस्ट डॉ. एएन वैद्य, स्वच्छ एसोसिएशन की अनुसूया छाबरानी उपस्थित थे।
छंटाई में सुधार की जरूरत
कार्यशाला में विशेषज्ञों ने कचरा निपटान के लिए जरूरी अलग-अलग तरह के कचरे की छंटाई की समस्या पर जाेर देते हुए कहा कि सबसे पहले तो डोर स्टेप पर ही अलग-अलग तरह के कचरे को अलग-अलग देने की व्यवस्था पर जोर दिया जाना जरूरी है। इसके लिए केवल गीला-सूखा कचरा ही नहीं बल्कि दूसरी श्रेणियां भी बनाए जाने की जरूरत है। बायो ग्रेडेबल, स्वास्थ्य के लिए खतरनाक कचरा जैसी श्रेणियां बनाए जाने की जरूरत है।
डॉ. असनानी ने कहा कि कचरे से ऐसी सभी चीजों की छंटाई होनी चाहिए, जिन्हें रिसाइकिल किया जा सकता है या कंपोस्ट बनाने के लिए भेजा जा सकता हो। इसके बाद शेष बचे 10 से 20 फीसदी कचरे को ही डंपिंग यार्ड भेजा जाना चाहिए। डॉ. देशपांडे ने पारा जैसे स्वास्थ्य के लिए खतरनाक पदार्थों को भी अलग किए जाने पर जोर दिया।
व्यावहारिक नीतियों की जरूरत
विशेषज्ञों ने हर स्तर पर व्यावहारिक नीतियों और उन पर स्थानीय निकायों के साथ आम नागरिकों की भागीदारी से काम किए जाने की जरूरत बताई। डॉ. असनानी ने अहमदाबाद का उदाहरण देते हुए बताया कि शहर ने सिर्फ तीन माह में कचरे के अलग-अलग संकलन का लक्ष्य प्राप्त करने में सफल रहा। इस तरह के उदाहरण के लिए शहर प्रशासन के साथ चुने गए प्रतिनिधियों को कठोर कानून बनाने, उसके पूरी तरह पालन किए जाने और आम जनता की भागीदारी की जरूरत होती है।
डॉ. देशपांडे ने बताया कि कोलंबो में कचरे के ढेर के ढह जाने से कई घर नष्ट हो गए और तीन लोगों की जान चली गई। कोलंबो में हजारों टन कचरे को परिवहन साधनों से दूर भेजे जाने की व्यवस्था की गई। यह व्यावहारिक उपाय नहीं है। छंटाई के बाद बचे हुए कचरे के लिए यह व्यवस्था अपनाई जानी चाहिए।
Created On :   14 March 2019 12:35 PM IST