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सत्ता बदलते ही बदली बोली भाषा, सरकार ने आरोप थोपा नहीं, जिम्मेदारी स्वाकारी
डिजिटल डेस्क, नागपुर। सत्ता परिवर्तन कई बदलाव लेकर आता है। उसका असर सरकार की बोली-भाषा से लेकर व्यक्तित्व पर भी पड़ता है। 5 साल पहले फडणवीस सरकार का पहला अधिवेशन नागपुर में हुआ था। सरकार नई थी। इसलिए हर सवाल का जवाब वे पुरानी सरकार पर ढकेलते रहे। सरकार इसे पिछले 15 साल का पाप बताती रही। मौजूदा 15 दिन पुरानी सरकार से भी कुछ इसी तरह के जवाब की अपेक्षा जताई जा रही थी, लेकिन 7 मंत्रियों के मंत्रिमंडल ने इस भ्रम को तोड़ा। उन्होंने जिम्मेदारियां पुरानी सरकार पर डालने की बजाए उसे सहज तरीके से स्वीकारा।
एक चर्चा के दौरान विपक्षी सदस्यों ने आक्रामकता दिखाते हुए वित्त मंत्री जयंत पाटील को घेरने की कोशिश की, लेकिन जयंत पाटील ने बड़ी सहजता से विपक्ष को जवाब देते हुए कहा कि मैं चाहूं तो इसका राजनीतिक जवाब दे सकता हूं। पांच साल आप सरकार में थे, किन्तु मैं ऐसा नहीं कहूंगा। अब यह हमारी जिम्मेदारी है। जहां पर कोई कमी या सुधार की जरूरत होगी, उसे पूरा कर समस्या को हल किया जाएगा। सामाजिक न्याय मंत्री छगन भुजबल ने भी दीक्षाभूमि के मामले में सरकार का बचाव किया।
प्रकाश गजभिये ने सरकार पर दीक्षाभूमि के विकास कार्यों की निधि रोकने का आरोप लगाया। लेकिन छगन भुजबल ने स्थिति को स्पष्ट कर कहा कि कुछ विलंब जरूर हुआ, लेकिन पहले चरण की 40 करोड़ निधि एनएमआरडीए को निर्गमित कर दी गई है। ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले, जब मंत्रियों ने विपक्ष पर पलटवार करने की बजाए उनका समाधान करने की कोशिश की। फिर मामला मिहान, मेडिकल, विदर्भ अनुशेष, मराठा आरक्षण का ही क्यों न हो। इसके विपरीत विपक्षी सदस्य ही कई बार प्रश्न पूछने में असहज नजर आए।
अंतिम सप्ताह प्रस्ताव पर विपक्ष ने जो मुद्दे उपस्थित किए, उन मुद्दों पर फडणवीस सरकार ने कई योजनाएं शुरू की। अंतिम सप्ताह प्रस्ताव पर विपक्षी सदस्यों ने इन योजनाओं पर ही सवाल उपस्थित किए। कई मर्तबा सदस्यों को बोलते-बोलते नरम होना पड़ा। जिन पर सवाल खड़े किए जा रहे थे, वे सभी योजनाएं उनके कार्यकाल की होने का अहसास होने पर विषय को ज्यादा लंबा खिंचने से बचते दिखे। कुछ फर्क, अचानक विपक्ष की भूमिका निभाने का भी था। खासकर रात में तेजी से बदले घटनाक्रम में प्रवीण दरेकर को विरोधी पक्षनेता की जिम्मेदारी सौंपी गई। इससे पहले सुबह तक सुरजीत सिंह ठाकुर को सरकार विरोधी पक्षनेता मानकर चल रही थी।
विधानपरिषद के नेता व उद्योग मंत्री सुभाष देसाई को सचिवालय से जो सूची मिली थी, उसमें सुरजीत सिंह ठाकुर का ही नाम था। हालांकि कई मुद्दों पर सरकार की भी तैयारी नहीं दिखी। नियम 93 और ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के लिखित जवाब नहीं आने से कई बार सभापति को इसे आगे बढ़ाना पड़ा। एक प्रश्न के जवाब में वित्त मंत्री जयंत पाटील को सभापति से 15 मिनट का समय तक मांगा पड़ा। उन्होंने सदन को बताया कि उन्होंने इस मामले की जानकारी नहीं ली है। 15 मिनट के लिए यह प्रश्न स्थगित रखे। अधिवेशन की तैयारी को समय नहीं मिलने से सरकार कई प्रश्न और प्रस्तावों पर बचाव की मुद्रा में दिखी। विशेष यह कि सरकार ने कम समय होने के कारण विधानपरिषद में 15 मिनट में चर्चा के साथ महानगरपालिका विधेयक भी पारित करा लिया।
Created On :   23 Dec 2019 11:32 AM IST