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जिले में मंडई मेले की धूम, पारंपारिक वेशभूषा धारण करते हैं कलाकार
डिजिटल डेस्क, गोंदिया। मनोरंजन के अनेक अत्याधुनिक संसाधन उपलब्ध होने एवं युवा पीढ़ी के उसकी ओर आकर्षित होने के बावजूद आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में कलाकारों ने पीढ़ी दर पीढ़ी से चली आर ही अपनी पारंपरिक कलाओं को जीवित रखा है और इनका प्रदर्शन प्रतिवर्ष दिवाली के बाद से ग्रामीण क्षेत्रों में शुरू होने वाले मंडई मेलों के आयोजन के दौरान होने वाले दंडार, तमाशा, नौटंकी के माध्यम से किया जाता है। आज भी इन कार्यक्रमों में हजारों की तादाद में ग्रामीणों की उपस्थिती यह दर्शाती है कि हमारी संस्कृति की जड़े सामान्य नागरिकों के दिल में गहराई तक जमी हुई है। दंडार, तमाशा, लोकगीत, नाैटंकीयों के माध्यम से आज भी लोक साहित्य का प्रचार-प्रचार के साथ समाज प्रबोधन का कार्य किया जाता है। गोंदिया जिले में अर्जुनी मोरगांव क्षेत्र में अनेक नाट्य कलाकार है। जो अपनी हावभाव भरी कलाओं के प्रदर्शन से सीधे दर्शकों के दिल में अपनी जगह बना लेते है। तमाशा, गायन, नृत्य, नकल जैसे कार्यक्रम यह लोकनाट्य का एक प्रकार ही है। गांव-गांव में होने वाले मंडई-मेलों के दौरान तंबुओं में इनका आयोजन किया जाता है।
इन कार्यक्रमों के कलाकार पारंपारिक वेशभूषा धारण करते है। जिससे नई पिढ़ी को अपने पुराने इतिहास की जानकारी होती है। कई नाटक ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित होते है। जो दर्शकों को अपने इतिहास की जानकारी कराने के साथ ही गर्व का एहसास भी कराते है। इन कार्यक्रमों के दौरान ढोलक, झांज, बाजा पेटी जैसे पारंपारिक वाद्यों का भी उपयोग किया जाता है। महाराष्ट्र में अत्यंत लोकप्रिय लावणी नृत्य एवं गायन गोंदिया-भंडारा जिले में उतना प्रसिद्ध नहीं है। गणेश वंदना से अक्सर यह कार्यक्रम शुरू किए जाते है। विघ्नहर्ता गणेश से प्रार्थना की जाती है कि कार्यक्रम नििर्वघ्न संपन्न हो। दंडार आदि में पुरूष पात्र महिलाओं का भी वेश धारण करते है। नाटक आदि प्रस्तुत करने से पूर्व कलाकारों काे कई-कई दिनों तक कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। दो-तीन घंटे तक चलने वाले कार्यक्रमों के दौरान दर्शकों का मिला प्रतिसाद को ही यह कलाकार अपनी मेहनत की सफलता मानते है। तमाशा लोकनाट्य का ही एक प्रकार है। इन कार्यक्रमों के माध्यम से सामाजिक बुराईयों को दुर करने का प्रयास सामाजिक संदेश देकर किया जाता है।
आधुनिक युग में मनोरंजन के अनेक साधन उपलब्ध हो गए है। वॉट्सअप, इंस्टाग्राम, टयूटर, टेलिविजन, यूट्युब आदि बातचीत एवं जानकारी के माध्यम बन गए है। नई पिढ़ी का इस ओर झुकाव भी नजर आता है और इसका असर अब ग्रामीण क्षेत्रोें में होने वाले कार्यक्रमों में भी थोड़ा-थोड़ा दिखाई पड़ने लगा है। अक्सर नाटकों आदि में फिल्मी गीत आदि शामिल करना आम बात हो गई है। इक्के-दुक्के उदाहरण छोड़ दिए जाए तो आज भी इन कलाकारों ने अपनी कला को जीवित रख समाज प्रबोधन का कार्य जारी रखा है। जो नई पीढ़ी को अपनी परंपराओं एवं इतिहास की जानकारी देती है।
Created On :   29 Nov 2021 6:53 PM IST