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महापालिकाओं में ओबीसी के लिए आरक्षित महापौर पद भी हुए रद्द, सामान्य वर्ग से ही कराना होगा चुनाव
डि़जिटल डेस्क, नई दिल्ली। महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण समाप्त होने के बाद अब प्रदेश की महापालिकाओं में ओबीसी के लिए आरक्षित महापौर पद भी रद्द हो गए है। ओबीसी के लिए महापौर पद आरक्षित करने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देने वाले एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि प्रदेश में महापालिकाओं में ओबीसी के जितने भी महापौर पद है वह रद्द माने जायेंगे और इस पर भी चुनाव सामान्य वर्ग से ही कराने होंगे।
जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस अभय ओक और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ के समक्ष मामले पर हुई सुनवाई में पीठ ने विकास गवली केस के फैसले के हवाले से कहा है कि प्रदेश में स्थानीय निकायों में महापौर सहित जितने भी पद ओबीसी के लिए है, वहां चुनाव सामान्य वर्ग से ही कराए जायेंगे।
दरअसल, महाराष्ट्र सरकार ने महापालिकाओं में रोटेशन पद्धति से ओबीसी के लिए महापौर पद आरक्षित करने संबंधी एक एक सर्कुलर जारी किया था। धुले महापालिका की स्थायी समिति सभापति संजय जाधव ने इसे यह कहते हुए हाईकोर्ट की औरंगाबाद पीठ में चुनौति दी थी कि धुले महापालिका में अनुसूचित जाति को महापौर पद नहीं मिला है और रोटेशन पद्धति से इस वर्ग के व्यक्ति को भी प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के स र्कुलर को सही ठहराया था और मामला सुप्रीम कोर्ट आया। सुप्रीम कोर्ट ने भी हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था। इसके बाद इस मामले में धुले महापालिका के पार्षद गणेश निकम ने पिछले महीने इस मामले में यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर की थी कि विकास गवली केस में शीर्ष अदालत द्वारा दिए फैसला का राज्य सरकार का सर्कुलर उल्लंघन करने वाला है। इस लिहाज से धुले महापालिका का ओबीसी के लिए आरक्षित महापौर पद गैरकानूनी है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर मंगलवार को सुनवाई करते हुए कहा कि प्रदेश में महापालिकाओं में ओबीसी के जितने भी महापौर पद है वह रद्द माने जायेंगे और इस पर भी चुनाव सामान्य वर्ग से ही कराने होंगे। सुनवाई के दौरान ही धुले महापालिका के ओबीसी कोटे से भाजपा के महापौर प्रदीप कर्पे ने अपना इस्तीफा प्रस्तुत कर दिया है।
Created On :   18 May 2022 10:07 PM IST