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राजस्व-वन विभाग के सामने दावा पेश करें मेलघाट टाईगर रिजर्व के आदिवासी - हाईकोर्ट
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने मेलघाट टाइगर रिजर्व व अभ्यारण्य सहित राज्य के अन्य वन क्षेत्रों में बसे आदिवासियों को तीन महीने के भीतर अपने अधिकारों से जुड़े दावों व शिकायतों को राज्य के आदिवासी व राजस्व तथा वन विभाग के पास रखने का निर्देश दिया है। हाईकोर्ट में वन्य जीवों के लिए मुक्त विचरण क्षेत्र तय किए जाने की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही है। वनशक्ति नामक गैर सरकारी संस्था ने यह याचिका दायर की है। सामाजिक कार्यकर्ता पूर्णिमा उपाध्याय ने भी इस विषय पर कोर्ट में एक आवेदन दायर किया है। जिसमें उन्होंने कहा है कि वर्षों से वनों में रहनेवाले आदिवासियों के अधिकारों व दावो को सुुनने के बाद वन्य जीवों के लिए मुक्त विचरण क्षेत्र तय किया जाए। न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी व न्यायमूर्ति रियाज छागला की खंडपीठ के सामने सामाजिक कार्यकर्ता पूर्णिमा उपाध्याय ने कहा कि मेलघाट अभ्यारण्य से सात गांवों को स्थानांतरित किया जा चुका है। जिन गावों को हटाया गया है उन गांवों में डोलर, केलपानी, धरगाध, गलरघट, सेसमना, चुरनी व वैरट का नाम शामिल है। उन्होंने कहा कि प्रकृति के करीब रहनेवाले आदिवासियों को उनके मूलस्थान से दूसरी जगह स्थानांतरित करने से उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। क्योंकि वे जंगल के बाहर की दुनिया के तौर तरीकों से वाकिफ नहीं होते हैं। आदिवासियों के अधिकारों पर विचार किए बिना उन्हें जंगल से निकाला जा रहा है। यह वन अधिकार कानून के प्रावधानों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि वन्य जीव मुक्त विचरण क्षेत्र तय करने की प्रक्रिया में जल्दबाजी न की जाए। इस मामले में कानून के मुताबिक कदम उठाए जाएं और सभी पक्षों को निष्पक्षता से सुना जाए। क्योंकि एक बार वन्य जीव मुक्त विचरण क्षेत्र तय हो गया तो वहां पर फिर से आदिवासियों के लिए जाना मुश्किल हो जाएगा।
इस दौरान सरकारी वकील प्रियभूषण काकडे ने कहा कि प्राणियों के विचरण क्षेत्र को तय करने के लिए विशेषज्ञ कमेटी गठित की गई है। 54 संरक्षित क्षेत्र तय किए जाएंगे। इसमे से 22 क्षेत्र पश्चिम महाराष्ट्र में 23 नागपुर ईस्ट और 9 मेलघाट टाइगर रिजर्व में होंगे। इस मामले को अतिरिक्त प्रधान मुख्य वन संरक्षक अधिकारी देखेंगे और विशेषज्ञों की समिति के परामार्श के बाद प्रस्तावित संरक्षित वन्य जीव विचरण क्षेत्र को अधिसूचित किया जाएगा। यहां पर इंसानों का कोई दखल नहीं होगा। मामले से जुड़ी जानकारी आदिवासी व राजस्व तथा वन विभाग की वेबसाइट पर अपलोड की गई है।
मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि मुक्त वन्य जीव क्षेत्र चिन्हित किए जाने के चलते खुद को प्रभावित महसूस करनेवाले तीन महीने के भीतर अपने अधिकारों के दावों व शिकायतों की जानकारी राजस्व व वन विभाग के साथ ही आदिवासी विभाग को दें। खंडपीठ ने दोनो विभाग को अपनी वेबसाइट पर इस विषय से जुड़ी ताजा जानकारी उपलब्ध कराने को कहा है। खंडपीठ ने फिलहाल मामले की सुनवाई 11 मार्च 2020 तक के लिए स्थगित कर दी है।
Created On :   26 Dec 2019 6:45 PM IST