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एमआईडीसी की 140 कंपनियों को लगा ताला, श्रमिक बेसहारा, अधिकारियों को भी ढूंढना पड़ रहा है सहारा
डिजिटल डेस्क, नागपुर। एशिया की दूसरी सबसे बड़ी एमआईडीसी में पिछले 5 वर्षों में अलग-अलग कारणों से 140 कंपनियों को ताला लग चुका है। इन कंपनियों में काम करने वाले उच्च अधिकारियों को जहां ‘सहारा’ खोजना पड़ रहा है, वहीं श्रमिक ‘बेसहारा’हो गए हैं। दर-दर की ठोकरें खाने की नौबत आन पड़ी है। बुटीबोरी स्थित एमआईडीसी में शेष ‘जिंदा’ कंपनियों के श्रमिक भी हलाकान हैं। मानधन व वेतन में इजाफे के दूर-दूर तक आसार नजर नहीं आ रहे। पिछले एक दशक से ऐसी स्थिति बनी हुई है।
कार्यरत कंपनियां अपना उत्पादन लगातार बढ़ा रही है, इससे काम का बोझ भी बढ़ता जा रहा है, लेकिन प्रबंधन मानधन बढ़ाने राजी नहीं।
यूनियनबाजी के चलते भी कई कंपनियां बंद हो चुकी हैं। तनातनी होते ही तथाकथित नेता अपनी रोटी सेंकने लगते हैं। इससे भी प्रबंधन त्रस्त है।
रोजगार के अवसर बनाए जा सकते हैं
बंद कंपनियों की इमारतें जीर्ण होते जा रही हैं। अगर इन कंपनियों को दूसरे प्रबंधन के हाथ दे दिया जाए, तो रोजगार के सैकड़ों अवसर बनाए जा सकते हैं।
स्वास्थ्य सुविधा नहीं
लगातार 16-24 घंटे काम करने के कारण श्रमिकों के स्वास्थ्य पर विपरीत परिणाम हो रहा है। मिरगी आना, चक्कर आना सामान्य होता जा रहा है। इसके अलावा भी कई बीमारियां पैर पसार रही हैं। बावजूद इसके न तो एम्बुलेंस की व्यवस्था है और न ही बेहतर स्वास्थ्य सुविधा। दुर्घटना होने पर ठेकेदार के अथवा किसी की चार पहिया वाहन द्वारा श्रमिकों को अस्पताल पहुंचाया जाता है। कई बार श्रमिकों के जान पर बन आई है।
चप्पल पहनकर ड्यूटी
श्रमिकों को सेफ्टी शूज, हाथ के दास्ताने, हार्ड हेठ (हेलमेट), चष्मा, मास्क मुहैया कराना जरूरी है, परंतु सेफ्टी शूज तक नहीं मिल पाता है। श्रमिक चप्पल पहन कर काम करते नजर आते हैं। स्पष्ट है कि श्रमिकों की जान से प्रबंधन खिलवाड़ कर रहा है, चाहे वह कोई भी हो।
नहीं हैं अग्निशमन यंत्र
कारखानों में सुरक्षा की अनदेखी इससे अधिक और क्या होगी कि अग्निशमन यंत्र तक उपलब्ध नहीं। आग लगने पर मदद के लिए गुहार लगाई जाती है और तब तक बहुत कुछ स्वाहा हो चुका होता है। कही-कहीं छोटे अग्निशमन यंत्र हैं भी तो वे आउट डेटेड हो चुके हैं। आडिट के समय इन अग्निशमन यन्त्रों को साफ कर तारीख बदल दी जाती है।
बगैर लाइसेंस कैंटीन
बगैर लाइसेंस कैंटीन चलाई जा रही है। अन्न व औषधि विभाग ने कोई अनुमति नहीं दी है, लेकिन कैंटीन में सड़ा-गला भोजन, नाश्ता उपलब्ध कराया जा रहा है। इसी वर्ष जून में मोरारजी कंपनी में ंदाल में मरी छिपकली पाई गई थी, जिसके चलते 20 श्रमिकों की जान पर बन आई थी। श्रमिकों को जैसे-तैसे बचा तो लिया गया, लेकिन कारखाना प्रबंधन या संचालकों ने सबक नहीं लिया।
दिहाड़ी 200 रुपए
यहां की कंपनियों में दिहाड़ी 20 रुपए है। इस राशि से घर चलाना संभव नहीं। घर खर्च चलाने के लिए श्रमिक दो-दो, तीन-तीन पालियों में लगातार काम करने मजबूर हैं। इससे उनेक स्वास्थ्य पर विपरीत परिणाम पड़ रहा है।
प्रबंधन की मनमर्जी
कितने घंटे श्रमिकों से काम लेना चाहिए, इसका कोई पैमाना तय नहीं। उत्पादन और मुनाफे के चक्कर में प्रबंधन मनमर्जी पर उतारू है।
Created On :   15 Nov 2019 1:28 PM IST