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1500 से अधिक भिखारी और मानसिक रोगी बने सिरदर्द
डिजिटल डेस्क, नागपुर। रेलवे स्टेशन परिसर में भिखारियों और मानसिक रोगियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। 1500 से अधिक भिखारी व मानसिक रोगियों का जमावड़ा लोहमार्ग पुलिस व रेल प्रशासन के लिए सिरदर्द बन गया है। यह भिखारी रेलवे स्टेशन के भीतर प्लेटफार्म पर भी कब्जा जमाए रहते हैं। रात्रि के वक्त अधिकांश भिखारी व विक्षिप्त टिकट आरक्षण केंद्र परिसर व यात्री विश्राम कक्ष परिसर में डेरा जमा लेते हैं। इन भिखारियों के शरीर से उठती दुर्गंध यहां मौजूद यात्रियों के लिए परेशानी का सबब बन जाती है। दूसरी समस्या इन भिखारियों की वजह से यात्रियों को विश्राम के लिए जगह नहीं मिल पाती। इस मामले में रेलवे प्रशासन भी मूकदर्शक की भूमिका में नजर आता है। इन अतिक्रमणकारियों को बाहर खदेड़ने के मामले में रेसुब, लोहमार्ग पुलिस पल्ला झाड़ लेते हैं।
डीएनए जांच कर संबंधी को ढूंढ़ने का प्रयास
कुछ मामलों में रेलवे स्टेशन परिसर से बरामद लावारिस लाश की शिनाख्त के लिए उनके डीएनए जांच भी करनी पड़ती है। मृतक के डीएनए से उसके संदिग्ध संबंधी का मिलान करने का प्रयास किया जाता है। अमूमन कभी-कभार इस तरह मृतक की शिनाख्त हो पाती है। डीएनए जांच के लिए लगने वाले समय तक लाश को सुरक्षित रखना भी जटील समस्या है।
टिकट आरक्षण केंद्र व यात्री विश्राम कक्ष में रहता है जमावड़ा
रात्रि के वक्त अधिकांश भिखारी व विक्षिप्त टिकट आरक्षण केंद्र परिसर व यात्री विश्राम कक्ष परिसर में डेरा जमा लेते हैं। इन भिखारियों के शरीर से उठती दुर्गंध यहां मौजूद यात्रियों के लिए परेशानी का सबब बन जाती है। दूसरी समस्या इन भिखारियों की वजह से यात्रियों को विश्राम के लिए जगह नहीं मिल पाती। इस मामले में रेलवे प्रशासन भी मूकदर्शक की भूमिका में नजर आता है। इन अतिक्रमणकारियों को बाहर खदेड़ने के मामले में रेसुब, लोहमार्ग पुलिस पल्ला झाड़ लेते हैं।
रेलवे स्टेशन परिसर में सो जाते हैं
रात के वक्त रेलवे स्टेशन परिसर में भिखारी और विक्षिप्त जहां-तहां सोए नजर आते हैं। इन्हें हटाया नहीं जाता। संख्या इतनी अधिक है कि इन्हें हवालात में रखना मुश्किल है। लोहमार्ग पुलिस के अनुसार पिछले 10 माह में रेलवे स्टेशन परिसर में 50 भिखारियों की मौत हुई है। परिसर में लावारिस पड़ी लाश को ठिकाने लगाने में पुलिस को भारी मशक्कत करनी पड़ती है। शिनाख्त न होने पर शव काे पोस्टमार्टम के लिए भेजा जाता है। जांच के दौरान पुलिसकर्मी यह पता लगाने का प्रयास करते हैं कि मृतक के किसी संबंधी का पता मिल जाए ताकि वे लाश को उसके हवाले कर सके। संबंधी का पता नहीं लगने पर अंतिम संस्कार की जिम्मेदारी पुलिसकर्मियों को पूरी करनी पड़ती है। अंतिम संस्कार के लिए लगने वाला खर्च भी जांच करने वाले पुलिसकर्मी को ही उठाना पड़ता है। चंदा इकट्ठा कर अथवा किसी मददगार के सहयोग से अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूर्ण करनी पड़ती है।
पुलिसकर्मियों पर करते हैं हमला
एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि प्लेटफार्म पर बैठे भिखारियों, विक्षिप्तों को हटाने का प्रयास करने पर वे पुलिस कर्मियों पर ही हमला बोल देते हैं। गाली-गलौज करने वाले भिखारी आम लोगों से भी इसी तरह बर्ताव करते हैं। यात्री के सामने हाथ फैलाकर खान-पान के पदार्थों की मांग करते हैं और नहीं देने पर जबरन यात्री के लगेज को पकड़ लेते हैं। कभी-कभी उग्र रूप दिखाते हुए यात्रियों से मारपीट पर उतारू हो जाते हैं। मैले-कुचैले और बदबूदार कपड़े पहने ये लोग रेलवे स्टेशन परिसर को दूषित कर रहे हैं। खास बात यह है कि इन लोगों की पहचान कर पाना बेहद मुश्किल होता है। इन्हें अपना ही नाम पता मालूम नहीं होता। समस्या तब उत्पन्न होती है जब कोई भिखारी अथवा विक्षिप्त की मौत हो जाती है। मृतक का आधार कार्ड, परिचय पत्र आदि न मिलने पर उसका अंतिम संस्कार करना पड़ता है। अंतिम संस्कार करने में पुलिसकर्मियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
Created On :   18 Nov 2021 4:43 PM IST