विचाराधीन रहते काट दी आधे से अधिक सजा, साढ़े चार साल जेल में बिताए

More than half the sentence was cut while under consideration, the High Court gave relief
विचाराधीन रहते काट दी आधे से अधिक सजा, साढ़े चार साल जेल में बिताए
हाईकोर्ट से राहत विचाराधीन रहते काट दी आधे से अधिक सजा, साढ़े चार साल जेल में बिताए

डिजिटल डेस्क, नागपुर. अंग्रेजी में एक कहावत है जस्टिस डिलेड इस जस्टिज डिनाइड' यानी न्याय में देरी न्याय नहीं मिलने के समान है। भारत की जेलों में ऐसे कई विचाराधीन कैदी हैं, जिनका मुकदमा वर्षों तक कोर्ट में विचाराधीन होता है। कई मामलों में तो अपराध की सजा उतनी नहीं होती, जितना वक्त विचाराधीन कैदी जेल में बिता देता है। कई बार कोर्ट का फैसला तब आता है, जब कैदी आधे से ज्यादा सजा पहले ही काट चुका होता है। ऐसे ही एक मामले में संज्ञान लेकर बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने दो आरोपियों की सजा पर रोक लगाते हुए उन्हें जमानत प्रदान की है।

कोर्ट में दी थी चुनौती

आरोपियों के नाम परितोष पोद्दार (34) और हरिदास बिसवास (29) है। ये दोनों ओडिशा राज्य के निवासी हैं। दोनों वर्ष 2018 में ऑनलाइन धोखाधड़ी के आरोप में पकड़े गए। नागपुर के ट्रायल कोर्ट ने उन्हें भादवि 420, 468, आईटी एक्ट व अन्य धाराओं में दोषी करार देकर कुल 6 साल की सजा और 80 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई, जिसे आरोपियों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी। आरोपियों के वकील ने हाईकोर्ट में दलील दी कि निचली अदालत ने उन्हें वर्ष 2018 में 6 साल की जेल की सजा सुनाई थी। अब तक उन्होंने जेल में 4 साल 6 महीने का वक्त काट लिया है, जबकि इस मामले में राज्य सरकार का यह तर्क था कि दोनों आरोपी राज्य के बाहर के होने के कारण उन्हें जमानत पर रिहा किया, तो उनके फरार होने की संभावना है।

1 लाख के मुचलके पर रिहा

मामले में सभी पक्षों को सुनकर हाईकोर्ट ने माना कि आरोपी पहले ही आधे से ज्यादा समय जेल में बिता चुके हैं। अगर उन्हें जेल में रखा गया, तो उनकी ऐसी क्षति होगी, जिसकी भरपाई करना संभव नहीं होगा। आरोपियों ने विचाराधीन कैदी के रूप में इतना वक्त जेल में बिता लिया है, केवल इतना ही कारण उन्हें जमानत पर रिहा करने के लिए काफी है। हाईकोर्ट ने उन्हें 1 लाख रुपए के मुचलके पर रिहा करने का आदेश दिया है।

 

Created On :   31 Aug 2022 7:20 PM IST

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