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मां जीवित इसलिए उसके बच्चों को नहीं माना जा सकता अनाथ, आरक्षण का लाभ देने से इंकार
डिजिटल डेस्क, मुंबई, कृष्णा शुक्ला। बांबे हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में साफ किया है कि मां के जीवित रहने बच्चों को अनाथ नहीं माना जा सकता। अदालत मे कहा कि जब तक कानून के तहत बनाई गई सक्षम कमेटी जांच के बाद किसी बच्चे को त्यागा हुआ बच्चा नहीं घोषित कर देती तब तक बच्चे को परित्यक्त बच्चा नहीं माना जा सकता है। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने खुद को त्यागा हुआ बच्चा बतानेवाले दो लड़कियों को फिलहाल अनाथ के लिए तय किए गए एक प्रतिशत आरक्षण का लाभ देने से मना कर दिया है।दरअसल वर्ष 2008 से चार व पांच साल की उम्र से चाइल्ड केयर होम रहनेवाली दो बच्चियों से जुड़ा है जिन्हें हाईकोर्ट ने त्यागा हुआ बच्चा घोषित करने की मांग को लेकर सक्षम कमेटी के पास आवेदन करने की छूट दे दी है और कमेटी को 14 नवंबर 2022 तक बच्चियों के आवेदन पर निर्णय लेने का निर्देश दिया है। यहीं नहीं हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद मामले से जुड़े याचिकाकर्ता को अनाथों को शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले व सरकारी नौकरी में एक प्रतिशत आरक्षण देने के नियम की वैधता को चुनौती देने की भी छूट दे दी है। कोर्ट ने कहा कि बच्चियों की मां जीवित है। इसलिए इन बच्चियों को किशोर न्याय अधिनियम के तहत अनाथ नहीं माना जा सकता है।
दी नेस्ट इंडिया फाउंडेशन ने इन दोनों बच्चियों के नाम का अनाथ प्रमाणपत्र जारी करने की मांग को लेकर सरकार के संबंधित विभाग के पास आवेदन किया था। किंतु अब तक इन्हें यह प्रमाणपत्र नहीं जारी हुआ है। लिहाजा फाउंडेशन ने इन दो लड़कियों के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। न्यायमूर्ति एसवी गंगापुरवाला व न्यायमूर्ति आरएन लद्धा की खंडपीठ के सामने फाउंडेशन की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई हुई।
इस दौरान सरकारी वकील पूर्णिमा कंथारिया ने कहा कि मामले से जुड़ी दोनों बच्चियों को अनाथ व त्यागा हुआ बच्चा नहीं माना जा सकता है। क्योंकि दोनों लड़कियों की मां जीवित है। इसके अलावा सक्षम कमेटी ने अब तक मामले से जुड़ी बच्चियों को त्यागा हुआ बच्चा नहीं घोषित किया है। इसके अलावा जिस चाइल्ड केयर होम में ये बच्चियां रहती है वह पंजीकृत संस्था नहीं है। इसके लिए संस्था को कई बार नोटिस जारी की जा चुकी है।
वहीं फाउंडेशन की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता अभिनव चंद्रचूड ने कहा कि भले ही बच्चियों की मां जीवित है फिर भी उन्हें किशोर न्याय कानून 2015 की धारा 2(42) के तहत अनाथ माना जा सकता है। उन्होंने कहा कि बच्चियों को अनाथ का प्रमाणपत्र जारी नहीं किया गया है फिर भी उन्हें त्यागा हुआ बच्चा घोषित किया जा सकता है। किशोर न्याय कानून में इसका प्रावधान है। क्योंकि बच्चियां चार व पांच साल की उम्र में साल 2008 से चाइल्ड केयर होम में रह रही है। इस दौरान बच्चियों की मां कभी कभार उनसे मिलने आयी है। संस्था ने पंजीयन के लिए आवेदन किया है। उन्होंने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों में दाखिलों के लिए अनाथ के लिए तय किए गए आरक्षण का लाभ इन बच्चियों को मिलना चाहिए। इन बच्चियों ने स्वास्थय विज्ञान पाठ्यक्रम में प्रवेश के लिए आवेदन किया है। अधिवक्ता चंद्रचूड ने कहा कि अनाथ के लिए तय किए गए आरक्षण में त्यागे हुए बच्चे को भी शामिल किया जा सकता है।
मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि मामले से जुड़ी बच्चियों को किशोर न्याय कानून के तहत अनाथ नहीं माना जा सकता है। क्योंकि उनकी मां जिंदा है। इसके अलावा किसी भी बच्चे को तभी त्यागा हुआ बच्चा माना जा सकता है जब उसके नैसर्गिक अथवा दत्तक माता-पिता व संरक्षक अभिभावक ने बच्चे को स्वयं परित्यक्त घोषित किया हो। इसके साथ ही सक्षम कमेटी द्वारा भी जांच के बाद बच्चे को त्यागा हुआ बच्चा घोषित करना जरुरी है। वर्तमान में हमारे सामने कमेटी की ओर से बच्चियों को लेकर जारी किया गया कोई घोषणापत्र नहीं है। इसलिए जब तक कानून के तहत बनाई गई सक्षम कमेटी जांच के बाद किसी बच्चे को परित्यक्त बच्चा नहीं घोषित कर देती, तब तक किसी को त्यागा हुआ बच्चा नहीं माना जा सकता है। इसलिए फिलहाल हम बच्चियों को कोई राहत नहीं दे सकते है। खंडपीठ ने अब 15 नवंबर को इस याचिका पर अगली सुनवाई रखी है।
Created On :   29 Oct 2022 8:50 PM IST