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आदिवासियों के लिए बने 60 साल पुराने नियमों को बदलेगा वन विभाग
डिजिटल डेस्क,भोपाल। अपनी निजी भूमि पर लगे ईमारती वृक्षों की कटाई के लिए आदिवासियों को अब सरकारी कार्यालयों के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे। जनजाति समाज की कृषि भूमि पर मौजूद इमारती वृक्षों का शोषण रोकने बनाए गए 60 साल पुराने नियमों में राज्य सरकार सरलीकरण करने जा रही है। वृक्षों की कटाई से लेकर राशि भुगतान की प्रक्रिया को लोक सूचना गारंटी के तहत लाया जाएगा। जिसके बाद एक से डेढ़ वर्ष में होने वाली प्राक्रिया महज 45 दिन में पूरी होगी। मसलन, अब अधिनियम 1999 के तहत आवेदन पत्र प्राप्त होने के छह माह की कालावधि में कलेक्टर भूमि स्वामी को वृक्ष काटने की स्वीकृति प्रदान करेंगे। यह व्यवस्था लोक सूचना गारण्टी के अंतर्गत लाई जाएगी।
इसी तरह स्वीकृति प्रदान करने के बाद प्रकरण जिले के सामान्य (क्षेत्रीय) वन मंडल अधिकारी, उत्पादन वन मंडल अधिकारी द्वारा वृक्षों की कटाई काटे गए वृक्षों की काष्ट भंडार में परिवहन एवं उसका मूल्यांकन कर लकड़ी की कीमत का चैक पुन: कलेक्टर को प्रेषित करने की कार्रवाई भी लोक सूचना गारंटी के तहत महज 45 दिन में पूरी करनी होगी। कलेक्टर द्वारा दो तीन माह में वृक्षों की कीमत का दिए जाने वाला चैक भूमि स्वामी के बैंक खाते में एक निश्चित समय सीमा में जमा कराया जाएगा। वर्तमान में इन सभी प्रक्रियाओं में लगभग एक वर्ष से अधिक का समय लगता है। इसके अलावा तहसीलदार के कार्यालय से सत्यापित वृक्षों की सूची, खसरा, नक्शा नकल जैसे अन्य दस्तावेज प्राप्त करने से लेकर भूस्वामी द्वारा जिले के कलेक्टर को वृक्षों की कटाई के आवेदन की प्रक्रिया भी लोक सूचना गारंटी के तहत लाई जाएगी। इसी तरह भूमि स्वामी के खसरा में मौजूद 60 सेंटीमीटर गोलाई के सभी सागौन वृक्षों एवं अन्य इमारती वृक्षों की गणना की जाएगी। साथ ही वन विभाग द्वारा 60 सेंटीमीटर कर गोलाई से अधिक सभी वृक्षों की कटाई की अनुशंसा भी करेगा।
जबलपुर की शिकायत पर आयोग ने दिए थे सुझाव
जबलपुर में वनवासी विकास परिषद के अध्यक्ष हुकुम सिंह ठाकुर ने 18 अगस्त, 2017 को राष्ट्रीय जनजाति आयोग की उपाध्यक्ष अनुसुईया उईके को शिकायत की थी, जिस पर त्वरित संज्ञान लेकर दो दिन बाद ही 20 अगस्त, 2017 को सुश्री उईके ने मध्यप्रदेश शासन को पत्र लिखकर अभिमत व सुझाव प्रेषित किए। आदिम जाति वृक्षों में हित अधिनियम 1999-1956 के कठिन व पेचीदा नियमों को सरलीकरण करने आयोग की सुझाव पर अभिमत देते हुए अब वन विभाग अपने नियमों में संशोधन करने जा रहा है।
आदिवासी भूस्वामी और कलेक्टर के संयुक्त खाते में आएगी राशि
वृक्षों की कटाई से लेकर राशि भुगतान की प्रक्रिया में वनमंडल अधिकारी द्वारा आदिवासी भूमि स्वामियों की प्रबंध योजना स्वीकृत होने के बाद कलेक्टर द्वारा जांच की प्रक्रिया न करते हुए सीधे आदिवासी भूमि स्वामी एवं कलेक्टर के संयुक्त खाते में राशि जमा कराने का प्रावधान किया जाएगा। इससे आदिवासी भूमि स्वामियों के वनाच्छादित क्षेत्रों में लोक वानिकी का क्रियान्वयन सरल होगा। वर्तमान में इस पक्रिया में लोक वानिकी अधिनियम 2001 के तहत वनमंडल अधिकारी द्वारा प्रबंध योजना स्वीकृत होने के बाद अुनमोदन के लिए कलेक्टर को भेजे जाने पर कलेक्टर जांच के लिए तहसीलदार, आरआई पटवारी को भेजा जाता है, जिसमें लगभग दो वर्ष लग जाते हैं।
राष्ट्रीय अजजा आयोग उपाध्यक्ष अनुसुईया उईके का कहना है कि लगातार शिकायतें आ रही थी। मैंने पिछले दिनों मध्यप्रदेश वन विभाग को आदिवासियों की जमीन पर लगे ईमारती वृक्षों की कटाई के नियमों में सरलीकरण की अनुशंसा की थी। जिस पर वन विभाग ने सहमति जताते हुए लागू करने की बात कही है। निश्चित ही इससे आदिवासी वर्ग बिचोलियों के चंगुल से बचेगा।
मप्र वन विभाग एसीएस दीपक खाण्डेकर का कहना है कि राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष द्वारा आदिवासियों की जमीन ईमारती वृक्षों की कटाई को लेकर कुछ सुझाव दिए गए थे, जिसे वन विभाग ने सहमति जताई है। नियमों में संशोधन लागू भी किया जाएगा।
Created On :   6 Feb 2018 9:56 AM IST