सांसद की मांग- फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी कर रहे कर्मचारियों के खिलाफ दर्ज हो एफआईआर

MPs demand- FIR should be registered against the employees working on the basis of fake caste certificate
सांसद की मांग- फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी कर रहे कर्मचारियों के खिलाफ दर्ज हो एफआईआर
महाराष्ट्र सांसद की मांग- फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी कर रहे कर्मचारियों के खिलाफ दर्ज हो एफआईआर

महाराष्ट्र में

सांसद गावित ने केन्द्र सरकार से महाराष्ट्र सरकार को निर्देश देने का किया आग्रह

डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली

पालघर से सांसद राजेंद्र गावित ने लोकसभा में कहा कि महाराष्ट्र में एक-सवा लाख से अधिक लोगों ने फर्जी जाति प्रमाणपत्र लेकर आदिवासियों के अधिकारों पर अतिक्रमण किया हुआ है। उन्होंने कहा कि इनमें 12000 से अधिक सरकारी कर्मचारी ऐसे है जिन्होंने अपनी जाति का वैधता प्रमाणपत्र कई सालों की सरकारी सेवा के बाद भी उपलब्ध नहीं करवाए है। बावजूद इसके वर्तमान महाराष्ट्र सरकार और इससे पहले की सरकारों ने भी ऐसे कर्मियों को सेवा से बर्खास्त करने के बजाय उन्हें 11 महीने का एक्सटेंशन देकर उनका बचाव कर रही है।

जनजातीय कार्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने शुक्रवार को लोकसभा में अनुसूचित जातियों को जनजातियों की सूची में शामिल करने के विधेयक को पेश किया। इस संशोधन विधेयक पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए सांसद गावित ने कहा कि वर्ष 1994 में माधुरी पाटील बनाम एडीशनल ट्राइबल डेवलपमेंट कमिश्नर और 2017 में एमडीएफसीआई बनाम जगदीश वोहरा केसेस में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में फर्जी जाति प्रमाणपत्र के आधार पर सरकारी या निम्न सरकारी संस्था में नौकरी कर रहे अधिकारी, कर्मचारियों को तत्काल बर्खास्त करने को कहा है, लेकिन आज भी महाराष्ट्र सहित पूरे देश में फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर हजारों लोग केन्द्र और राज्य सरकार में नौकरी हथियाए हुए है।

उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में सवा लाख में से 12000 ऐसे कर्मचारी जो अपनी जाति का वैधता प्रमाणपत्र भी नहीं दे सके है। उन्होंने केंद्र सरकार से अनुरोध करते हुए कहा कि वह महाराष्ट्र सरकार को पत्र लिखे कि जो फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी कर रहे है, उनके खिलाफ एफआईआर दाखिल की जाए। उन्होंने यह भी कहा कि वर्ष 1976 से अभी तक कई ऐसी कम्युनिटीज है जिन्हें प्रक्रिया का पालन न करते हुए अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया है। उच्च जातियां छद्म रूप से अनुसूची में शामिल होने का प्रयास कर रही है। इसके लिए वह प्रिंटिंग की गलती या अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग उच्चारण का बहाना लिया जा रहा है। महाराष्ट्र में ही ऐसे कई उदाहरण है। धनगर ने धनगड़ के नाम से प्रमाणपत्र लेने की कोशिश की है। हल्बी कम्युनिटी जेन्युएन ट्रइबल है, लेकिन विदर्भ में हल्बाकोष्टी ने आदिवासियों के आरक्षण पर अतक्रिमण किया हुआ है। महादेव कोली के नाम पर म. कोली के नाम से हजारों-लाखों लोगों ने लाभ लिया है।

उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में धनगर कम्युनिटी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रुप से काफी प्रभावशाली है उनका ट्राइब से कोई-लेना देना नहीं है, उन्हें महाराष्ट्र सरकार ने इन्हें साढे तीन प्रतिशत सुविधा दी गई है। उन्होंने कहा कि इसका वे विरोध नहीं करते है, लेकिन जो अति पिछड़ी आदिवासी जातियां जैसे माडियागोंड, ओलम और कातकरी है को खाना नसीब नहीं हो पाता है उनका भी सरकार ने संरक्षण करना चाहिए। 

Created On :   1 April 2022 10:33 PM IST

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