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महाराष्ट्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ नागपुर जिला परिषद के कर्मी पहुंचे सुप्रीम कोर्ट
डिजिटल डेस्क, नई दिल्ली। नागपुर जिला परिषद के चार कर्मियों ने सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र सरकार के उस अध्यादेश को चुनौती दी है, जिसमें ऐसे कर्मियों को सेवा से बर्खास्त करने के बजाय उन्हें अस्थायी रूप से 11 महीने का एक्सटेंशन दिया है, जिनके जाति प्रमाणपत्र फर्जी है। यह याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता सुहास कदम के माध्यम से दायर की गई है। गौरतलब है कि इससे पहले अकोला जिला परिषद के कुछ कर्मियों ने भी इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, जिस पर 30 नवंबर 2021 को कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी कर मामले को जुलाई में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है। बुधवार को फिर इसी मामले में नागपुर जिला परिषद के चार कर्मियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है।
दरअसल, राज्य में अनुसूचित जनजाति कोटे के तहत फर्जी जाति प्रमाणपत्र के जरिए हजारों लोगों ने नौकरी हासिल की है। इनमें फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नौकरी पाने वाले तमाम ऐसे कर्मचारी हैं, जो करीब 2-3 दशकों तक नौकरी कर चुके हैं। क्लर्क के तौर पर भर्ती किए गए कई लोग ऐसे भी हैं, जो राज्य सरकार में अधिकारी पद पर पहुंच गए। नौकरी लगने के बाद कईयों के जाति वैधता समिति की पड़ताल में जाति प्रमाणपत्र फर्जी पाए गए। कईयों को बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर और औरंगाबाद खंडपीठ में राहत भी दी है। वहीं कुछ लोग मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे।
इन सभी एकत्रित याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई 2017 में चेयरमैन एन्ड मैनेजिंग डायरेक्टर, एफसीआई और अन्य बनाम जगदीश बालाराम बहीरा मामले में फैसला सुनाया कि फर्जी जाति प्रमाणपत्रों के आधार पर नौकरी पाने वाले लोगों की नौकरी छीने जाने के अलावा उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी की जानी चाहिए। लेकिन हैरत की बात यह है कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन करने के बजाए 21 दिसंबर 2019 को एक जीआर निकाला। इसके तहत जिनके जाति प्रमाणपत्र फर्जी पाए गए उन लोगों को अधिसंख्य पद पर कायम रखा। राज्य सरकार ने इस जीआर के तहत उस समय 11,000 से भी अधिक लोगों को 11 महीने का एक्सटेंशन देकर राहत दी, जिन्होंने एसटी कोटे से नौकरी हथियाई। राज्य सरकार के इसी आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।
Created On :   26 May 2022 3:28 PM IST