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कर्मचारी के खिलाफ कार्रवाई में हस्तक्षेप नहीं कर सकता राष्ट्रीय अनुसूचित आयोग- हाईकोर्ट
डिजिटल डेस्क, मुंबई। संस्थान की ओर से कर्मचारी के खिलाफ की गई कार्रवाई के मामले में राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। क्योंकि यह आयोग के क्षेत्राधिकार के दायरे में नहीं आता है। बांबे हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के रक्षा मंत्रालय की ओर से दायर की गई याचिका पर यह फैसला सुनाया है। मंत्रालय ने आयोग की ओर से मार्च 2022 में जारी किए गए उस आदेश को चुनौती दी थी जिसके तहत आयोग ने नाशिक के कैंटोनमेंट बोर्ड में स्टाफ नर्स के खिलाफ की गई अनुशासनात्मक कार्रवाई की दोबारा जांच करने निर्देश दिया था। न्यायमूर्ति आरडी धानुका व न्यायमूर्ति कमल खाता की खंडपीठ ने साफ किया कि आयोग के पास नियोक्ता की ओर से कर्मचारी के खिलाफ की गई कार्रवाई के मामले में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है।
याचिका के मुताबिक चंद्रप्रभा केदारे की जनवरी 1973 में नाशिक स्थित देवलाली के कैंटोनमेंट बोर्ड में स्टाफ नर्स के रुप में नियुक्ति की गई थी। साल 2013 में केदारे के खिलाफ मिली शिकायत के बाद अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई थी। जिसके तहत केदारे को नौकरी से अनिवार्य रुप से सेवानिवृत्ति लेने का निर्देश दिया गया था। रक्षा मंत्रालय के संबंधित विभाग की ओर से की गई इस कार्रवाई के खिलाफ केदारे ने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग में आवेदन दायर किया था। आवेदन में केदारे ने दावा किया था कि उसके साथ अन्याय हुआ है। इसके बाद आयोग ने कहा कि रक्षा मंत्रालय ने कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना ही केदारे के खिलाफ कठोर कार्रवाई की है। किंतु खंडपीठ ने आयोग के आदेश को रद्द करते हुए कहा है कि आयोग इस तरह के मामले में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। खंडपीठ ने कहा कि आयोग अपीलीय प्राधिकरण के रुप में काम नहीं कर सकता है। वह नियोक्ता की ओर से केदारे के खिलाफ की गई कार्रवाई में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं रखता है। क्योंकि नियोक्ता के पास अपने कर्मचारी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का अधिकार है। इसलिए केदारे के मामले में आयोग की ओर से दिए गए आदेश को रद्द किया जाता है। खंडपीठ ने कहा कि केदारे ने अपने सारे कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल किया है। जब उसे कही सफलता नहीं मिली तो उसने आयोग में आवेदन दायर कर दिया।
Created On :   5 Aug 2022 9:03 PM IST