शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की जरूरत - श्रीधर

Need for change in education system said sridhar
शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की जरूरत - श्रीधर
शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की जरूरत - श्रीधर

डिजिटल डेस्क, नागपुर। भारत की शिक्षा व्यवस्था विकसित देशों की शिक्षा व्यवस्था से मुकाबला करने के लिए  कई बड़े बदलावों की जरूरत है। इसी का ध्यान रखते हुए नई शिक्षा नीति में विविध मुद्दों का समावेश किया गया है। इसमें प्रमुख रूप से स्कूली और उच्च शिक्षा के प्रारूप में बदलाव की तैयारी हो रही है, जिसके फायदे अगले 20 वर्षों में नजर आएंगे। इसमें पहले 10 वर्ष विविध बदलावों को लागू करने में और अगले 10 वर्ष परिणाम का आंकलन करने में लगेंगे। इसी के तहत देश के कॉलेजों को स्वायत्त बनाने की तैयारी है। ऐसा होने पर यूनिवर्सिटी के अलावा कॉलेज भी डिग्रियां जारी करेंगे। नई शिक्षा नीति की ड्राफ्टिंग कमेटी के सदस्य प्रो. एम. के. श्रीधर ने महाराष्ट्र पशु व मत्स्य विज्ञान विश्वविद्यालय (माफसू) में आयोजित चर्चा सत्र व संवाद कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता अपने विचार रखे। 

नीति अब तक मंजूर नहीं
 प्रो. श्रीधर ने कहा कि नई शिक्षा नीति अब तक मंजूर नहीं हुई है, लेकिन ऐसा किसी भी क्षण हो सकता है। जब तक शिक्षा के प्रारूप को पूरी तरह से बदला नहीं जा सकता, तब तक फायदा नहीं होगा। ऐसे में शिक्षा के किसी एक पहलू को नहीं, बल्कि पूरे प्रारूप को बदलने की जरूरत है। नई शिक्षा नीति 360 डिग्री विचार के साथ सर्वांगीण विकास के लिए लाई जा रही है। 

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 11वीं-12वीं कक्षा में वर्गीकरण गलत
प्रो. श्रीधर ने प्राथमिक से लेकर उच्च माध्यमिक शिक्षा के स्वरूप में होने जा रहे बदलाव की भी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि हमारी प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था में भी कई खामियां हैं। मुख्य बात यह है कि भारत में अलग-अलग कारणों से कुछ बच्चे जल्दी और कुछ देर से स्कूल में प्रवेश लेते हैं। 10वीं के बाद उन्हें आर्ट्स, कॉमर्स, साइंस और वोेकेशनल शाखा में विभाजित कर दिया जाता है। इससे 12वीं की बोर्ड परीक्षा अत्यंत कठिन आैर डरावनी हो जाती है। यह वर्गीकरण ही गलत है। इतनी कम उम्र में विद्यार्थियों के वर्गीकरण से वे कई जरूरी विषय नहीं पढ़ पाते। नई शिक्षा नीति में इस प्रारूप को भी बदला जा रहा है।  कार्यक्रम में भारतीय शिक्षा मंडल के मुकुल कानिटकर और माफसू कुलगुरु डॉ. आशीष पातुरकर बतौर विशेष अतिथि उपस्थित थे। कार्यक्रम मंे बड़ी संख्या मंे शिक्षकों और संबंधित वर्ग की उपस्थिति थी। 

विश्वविद्यालयों का प्रारूप बदलेगा
उच्च शिक्षा में कॉलेजों को स्वायतता देने के साथ ही विश्वविद्यालयों के प्रारूप को बदला जाएगा। मौजूदा वक्त में विश्वविद्यालयों को मालिकाना हक के आधार पर विभाजित किया गया है। केंद्रीय विश्वविद्यालय, राज्य विश्वविद्यालय, निजी विश्वविद्यालय और डीम्ड विश्वविद्यालय। इसकी उच्च शिक्षा के आधार पर विश्वविद्यालयों का वर्गीकरण किया जाना चाहिए। पूरी कोशिश है कि कृषि, पारंपारिक और तकनीकी पाठ्यक्रमों की शिक्षा एक ही कैंपस मंे संभव हो सके।

Created On :   15 Feb 2020 2:16 PM IST

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