आईपीएस अधिकारी पठान के खिलाफ जांच के लिए चाहिए और समय

Need more time for investigation against IPS officer Pathan
आईपीएस अधिकारी पठान के खिलाफ जांच के लिए चाहिए और समय
हाईकोर्ट आईपीएस अधिकारी पठान के खिलाफ जांच के लिए चाहिए और समय

डिजिटल डेस्क, मुंबई। राज्य सरकार ने बांबे हाईकोर्ट से भ्रष्टाचार के कथित मामले को लेकर आईपीएस अधिकारी अकबर पठान के खिलाफ दर्ज की गई शिकायत की जांच में हुई प्रगति की रिपोर्ट पेश करने के लिए समय की मांग की है। इसके बाद न्यायमूर्ति एसएस शिंदे व न्यायमूर्ति एनजे जमादार की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई को स्थगित कर दिया। पिछले दिनो इस मामले को लेकर पूर्व मुंबई पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह, पुलिस उपायुक्त पठान सहित सात लोगों के खिलाफ उगाही व भ्रष्टाचार के आरोप को लेकर मरीनड्राइव पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई थी। यह शिकायत बिल्डर श्यामसुंदर अग्रवाल ने दर्ज कराई है। अग्रवाल ने इस मामले में सिंह व पठान पर 50 लाख रुपए व भायंदर में टूबीएचके फ्लैट मांगने का आरोप लगाया है। अग्रवाल के मुताबिक उसके खिलाफ महाराष्ट्र संगठित अपराध कानून के तहत आरोप न लगाने के लिए यह पैसे मांगे गए थे। इससे पहले पठान की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता नीतिन प्रधान ने लिखित रुप से अपना जवाब खंडपीठ को सौपा। वहीं राज्य सरकार की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता डेरिस खंबाटा ने भी अपना जवाब खंडपीठ को दिया और कहा कि उन्हें इस मामले की जांच में हुई प्रगति की रिपोर्ट देने के लिए समय दिया जाए।  इसके बाद खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 29 सितंबर तक के लिए स्थगित कर दी। पठान ने खुद के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर को रद्द करने की मांग को लेकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में दावा किया गया है कि नियमों का उल्लंघन करके यह मामला दर्ज किया गया है।

Khwaja Yunus Case, Victim Mother Files Contempt Plea In Highcourt Against  Delhi Top Cop - ख्वाजा यूनुस मामला: मुंबई के पुलिस आयुक्त के खिलाफ दायर हुई  अवमानना याचिका - Amar Ujala Hindi

ख्वाजा युनुस हिरासत में मौत मामला - सरकारी वकील की नियुक्ति में देरी पर विफरा हाईकोर्ट

मुंबई सत्र न्यायालय ने मंगलवार को बहुचर्चित ख्वाजा युनुस के हिरासत में मौत मामले में मुकदमे की सुनवाई के लिए विशेष सरकारी वकील की नियुक्ति में हो रही देरी को लेकर राज्य सरकार व स्टेट सीआईडी को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के गंभीर मामले में अभियोजनपक्ष का रुख संवेदनशील नहीं लग रहा है। साल 2008 में 27 वर्षीय ख्वाजा युनुस की पुलिस हिरासत में मौत का मामला सामने आया था। इस मामले को करीब 12 साल बीत गए हैं। फिर भी पुलिस व अभियोजन पक्ष की ओर से मामले को लेकर कोई तत्परता नहीं दिखाई जा रही है। साल 2015 में पहले अधिवक्ता धीरत मिरजकर की इस मामले की पैरवी के लिए विशेष सरकारी वकील के तौर पर नियुक्ति की गईथी लेकिन साल 2018 में राज्य सरकार ने अधिवक्ता मिरजकर की नियुक्ति को रद्द कर दिया था। साल 2018 से विशेष सरकारी वकील की नियुक्ति न किए जाने से नाराज न्यायाधीश यूजे मोरे ने कहा कि अभियोजन पक्ष की ओर से इस मामले की सुनवाई में देरी हो रही है। मामले को लेकर पुलिस व अभियोजन पक्ष को कई बार नोटिस जारी करने के बावजूद मामले में कोई प्रगति नहीं हुई है। इस मामले में बर्खास्त पुलिस अधिकारी सचिन वाझे,पुलिसकर्मी राजेंद्र तिवारी,राजाराम निकम व सुनील देसाई को आरोपी बनाया गया है। इन आरोपियों के खिलाफ साल 2017 में मुकदमे की सुनवाई की शुरुआत हुई थी जो अब तक पूरी नहीं हुई है।

Created On :   21 Sep 2021 3:29 PM GMT

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