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बोलने की स्वतंत्रता को प्रभावित कर रहे IT के नए नियम
- अदालत की दहलीज पर कलम
- आईटी से जुड़े नए नियम काफी कठोर
- बोलने की स्वतंत्रता कर रहे प्रभावित
डिजिटल डेस्क, मुंबई। सूचना प्रौद्योगिकी(आईटी) से जुड़े नए नियम काफी कठोर हैं। यह अभिवक्ति व बोलने की स्वतंत्रता को प्रभावित कर रहे हैं। इससे मीडिया की गतिशीलता प्रभावित हो रही है। सोमवार को पत्रकार निखिल वागले व न्यूज वेबसाईट ‘लिफलेट’ की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने बांबे हाईकोर्ट में यह दावा किया। न्यूज पोर्टल की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता डेरिस खंबाटा ने मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति गिरीष कुलकर्णी की खंडपीठ के सामने दावा किया कि नए आईटी नियम काफी कठोर अस्पष्ट हैं। इसलिए नए नियम के अमल पर अंतरिम रोक लगाई जाए। उन्होंने कहा कि नए नियम पत्रकार द्वारा प्रकाशित की जानेवाली व डिजिटल मीडिया की ओर से उपलब्ध कराई जानेवाली सामग्री पर कई तरह का पांबदिया लगाते हैं।
केंद्र सरकार की ओर से पैरवी कर रहे एडिशनल सालिसिटर जनरल अनिल सिंह ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ताओं को अंतरिम राहत न दी जाए। उन्होंने याचिका के जवाब में हलफनामा दायर करने के लिए समय की भी मांग की। उन्होंने कहा कि इस विषय पर देशभर की कई हाईकोर्ट में याचिकाएं दायर की गई हैं। इसलिए केंद्र सरकार ने इन्हें सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में आवेदन किया है। जिस पर मंगलवार को सुनवाई होगी। इस बात को जानने के बाद खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 10 अगस्त 2021 तक के लिए स्थगित कर दी। खंडपीठ ने कहा कि यदि सुप्रीम कोर्ट हमें सुनवाई करने से नहीं रोकेगा तो हम आगे इस पर सुनवाई करेंगे।
अस्पष्ट हैं डिजिटल मीडिया को लेकर नियम
उन्होंने कहा कि डिजिटल मीडिया में उपलब्ध कराई जानेवाली सामग्री को नियंत्रित करने को लेकर जो मानक तय किए गए हैं, वे काफी अस्पष्ट हैं। इसके साथ ही ये संविधान के अनुच्छेद 19 के प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं। यहीं नहीं नए नियम सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम का भी दमन करते हैं। नए नियम काफी कठोर व अस्पष्ट हैं। वहीं वागले की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता अभय नेवगी ने कहा कि आईटी नियम अवैध व मनमानीपूर्ण हैं। यह नागरिकों की निजता,अभिव्यक्ति की अजादी का हनन करते हैं।
उदाहरण के तौर पर उन्होंने कहा कि नए नियम बिना प्रमाण के स्टिंग ऑपरेशन करने की इजाजत नहीं देते हैं। नए नियम की मांग है कि किसी लोकप्रिय हस्ती के खिलाफ मानहानिपूर्ण सामग्री प्रसारित व प्रकाशित न की जाए। यह नियम आलोचना करने से भी रोकते हैं। उन्होंने कहा कि ये नियम यह स्पष्ट नहीं करते हैं कि पर्याप्त सबूत का अर्थ क्या है और किसे मानहानिपूर्ण सामग्री माना जाएगा। उन्होंने कहा कि यह नियम मंत्री के मातहत काम करने वाली कमेटी को मीडिया पर निगरानी व बोलने की स्वतंत्रता पर सेंसरसिप का अधिकार देते हैं। वर्तमान समय का ये सबसे कठोर नियम है।
Created On :   9 Aug 2021 8:12 PM IST