पानी की तलाश में गांव तक पहुंची नीलगाय को श्वान ने किया घायल

Nilgai wandering in village in search of water attacked by dogs
पानी की तलाश में गांव तक पहुंची नीलगाय को श्वान ने किया घायल
पानी की तलाश में गांव तक पहुंची नीलगाय को श्वान ने किया घायल

डिजिटल डेस्क, नागपुर। दिन ब दिन सूरज आग उगलते जा रहा है। इंसान ही नहीं जंगलों में रहनेवाले वन्यजीव भी हलाकान हो गये हैं। जंगलों में रहनेवाले अधिकांश जलस्रोत सूखने की कगार पर पहुंच गये हैं। जिससे वन्यजीव जंगलों के बाहर निकल कर पानी की तलाश कर रहे हैं। इसी तरह एक घटना सामने आई है, जिसमें हिंगणा वनपरिक्षेत्र अंतर्गत एक नीलगाय पानी की तलाश में गांव तक  पहुंच गई। लेकिन उस पर श्वानों ने हमला कर दिया जिससे वह बुरी तरह जख्मी हो गई। वन विभाग को घटना की जानकारी मिलते ही नीलगाय को श्वानों से छुड़ाकर उसका इलाज किया गया। सलाईन आदि लगाकर उसे निसर्गमुक्त किया गया।

जानकारी के अनुसार हिंगणा वनपरिक्षेत्र अंतर्गत मोहगांव झिलपी में एक नीलगाय जंगल इलाके को पार कर गांव की सीमा में आ गई थी। ऐेसे में गांव में पलनेवाले श्वान की उस पर नजर पड़ी। देर रात से बड़ी तादाद में श्वान उसके पीछे पड़ गये। नीलगाय अपनी जान बचाती यहां से वहां भाग रही थी। लेकिन समय बीतते श्वान की संख्या बढ़ते जा रही थी। ऐसे में कई श्वानों ने एक साथ नीलगाय पर हमला भी कर दिया। जिससे वह बुरी तरह से जख्मी हो गई। सुबह नीलगाय पर नजर पड़ते ही गांववालों ने वनपरिक्षेत्र अधिकारी आशीष निनावे को इसकी जानकारी दी गई। जिसके तुरंत बाद ही नागपुर के ट्रान्सिक ट्रीटमेंट सेंटर को घटना के बारे में अवगत कराया गया।  डॉ. बिलाल के नेतृत्व में एक टीम यहां पहुंची। जिसके बाद नीलगाय पर इलाज करना शुरू कर उसे सलाइन लगाई गई। कुछ देर छांव में आराम कराया गया। पूरी तरह से ठीक होने पर पास ही में निसर्गमुक्त किया गया। इस काम को डॉ. विवेक गाजरे, वनपाल जामगडे, वनरक्षक इंगले, वनमजदूर संजय परतेकी, आशीष महल्ले आदि का सहयोग रहा।

सूखने लगे हैं, जल स्रोत  
आंकड़ों के अनुसार विदर्भ के पेंच व्याघ्र प्रकल्प के अंतर्गत आनेवाले बोर व्याघ्र प्रकल्प, उमरेड-पवनी-करांडला अभयारण्य, टिपेश्वर अभयारण्य, पैनगंगा अभयारण्य शामिल है। जिसमें कुल 179 नैसर्गिक जलस्रोत बने हैं। जिसमें 76 नैसर्गिक स्रोत में हर माह पानी उपलब्ध रहता है। बचे 103 जलस्रोत में बढ़ती गर्मी के अनुसार पानी सूखते जाता है। अनुमान रहता है, कि मई के आखिर तक 50 से ज्यादा जलस्रोत सूख जाते हैं। जिससे वन्यजीवों को पानी की कमी पड़ने लगती है। परिणामस्वरूप वह जंगल क्षेत्र से बाहर निकलते हैं। इसमें कई बार वन्यजीव गांव तक पहुंच जाते हैं। जिससे या तो वह शिकारियों का शिकार बन जाते हैं, या श्वान उन्हें मार डालते हैं। यही नहीं कई वन्यजीव सड़कों पर पहुंच जाते हैं। जिससे कि वाहनों की टक्कर से उनकी मौत भी हो जाती है। गत कुछ महीनों की बात करें तो ऐसी कई घटनाएं सामने आई है। जिसमें शाकाहारी नहीं बल्कि तेंदुए व बाघ भी शामिल है।

Created On :   13 May 2019 4:37 PM IST

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