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NIT ने आरक्षित जमीन बेची 20 साल से लीजधारक परेशान
डिजिटल डेस्क, नागपुर। एनआईटी ने 1999 में आरक्षित जगह कई लोगों को बेचने का मामला सामने आया है। नासुप्र ने संबंधितों से उसी वक्त लाखों रुपए ले लिए और अब तक जमीन की लीज डीड नहीं बना कर दी। संबंधित लोग खुद को ठगा सा महसूस कर रहे है। जमीन के नाम पर इन लोगों के लाखों रुपए चले गए और नासुप्र के चक्कर भी काटने पड़ रहे है।
गलती ध्यान में आने के बाद एपीएमसी को लिखा पत्र
प्लाट धारक जब नासुप्र के पास सेल डीड (रजिस्ट्री) के लिए पहुंचे तो एपीएमसी के लिए यह जमीन आरक्षित होने का खुलासा हुआ। गलती ध्यान में आने के बाद नासुप्र ने आरक्षण हटाने का भरोसा दिया। आरक्षण हटाने के लिए सरकार को पत्र लिखने का जवाब दिया। नासुप्र ने एपीएमसी को पत्र लिखकर जमीन की जरूरत है या नहीं इस बारे में पूछा। एपीएमसी ने नासुप्र को पत्र लिखकर जमीन की जरूरत बताई। इस पत्र से नासुप्र को झटका लग गया है।
लाखों रुपए लिए अब जमीन दो
अनाज कारोबारी अजयकुमार अग्रवाल ने बताया कि विलंब शुल्क समेत 12 लाख 75 हजार रुपए का भुगतान नासुप्र को किया। इसके अलावा ग्राउंड रेट व मनपा का टैक्स भी भर रहे है। 30 साल के लिए यह जमीन हमें दी थी। 20 साल हो गए, लेकिन अभी तक नासुप्र ने सेल डीड नहीं बना दी। कार्यालय के चक्कर काट रहे हैं। सेल डीड नहीं होने से सैंक्शन प्लान नहीं बना रहे। यहां निर्माण कार्य भी नहीं कर पा रहे हैं। नासुप्र ने हमारे साथ धोखा किया है। श्याम कंजवानी ने बताया कि नासुप्र ने जमीन की सारी राशि ले ली। नासुप्र सही जवाब नहीं दे रही। नासुप्र के चक्कर काटकर थक गए। जमीन आरक्षित थी तो नीलामी क्यों की। नीलामी प्रक्रिया के दौरान के अधिकारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
नासुप्र ने 1999 में मौजा चिखली, खसरा नं. 109, कलमना एरिया में एक साथ 7-8 प्लॉट की नीलामी की थी। एक-एक प्लॉट 6 हजार वर्गफीट से ज्यादा है। अग्रवाल परिवार ने कलमना मार्केट के सामने का प्लॉट 149 नीलामी में 12 लाख 75 हजार रुपए में खरीदा था। अनाज कारोबारी अग्रवाल परिवार ने जुगलकिशोर केदारनाथ अग्रवाल एंड संस के नाम से 6800 वर्गफीट की यह जमीन खरीदी थी। 2001 विलंब शुल्क समेत राशि का भुगतान किया आैर 2008 में इसका ग्राउंड रेट भरा। जमीन पर लगनेवाला मनपा का टैक्स भी अग्रवाल परिवार ही भर रहा है।
श्याम कंजवानी ने भी 1999 में 8900 वर्ग फीट का प्लॉट नासुप्र से 11 लाख 11 हजार में निलामी में खरीदा था। अग्रवाल व कंजवानी ने लीज डीड के लिए नासुप्र से संपर्क किया तो यह प्लाट कृषि उत्पन्न बाजार समिति (एपीएमसी) के लिए आरक्षित होने का खुलासा हुआ। नासुप्र के पास शहर के विकास नियोजन (डीपी) का सारा डाटा उपलब्ध रहता है। लीज की डीड 30 साल के लिए बनती है आैर समय-समय पर इसका नवीनीकरण किया जाता है। अग्रवाल व कंजवानी के अलावा अन्य 5-6 लोग भी नासुप्र से नीलामी में प्लॉट खरीदकर बुरे फंस गए है।
यूजर चेंज करने के लिए सरकार को प्रस्ताव भेजा
डीपी यूजर में एपीएमसी का रिजर्वेशन बताया गया है। एपीएमसी ने इस जमीन की जरूरत होने का जवाब दिया है। यूजर चेंज करने के लिए राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजा गया है। नीलामी के वक्त जो अधिकारी थे, वही सही जवाब दे सकते हैं।
-लोभा चव्हाण, वरिष्ठ क्लर्क, नासुप्र
Created On :   10 Feb 2020 12:22 PM IST