निजीकरण का विरोध करने पर गोरेवाड़ा में वन मजदूरों को नो एंट्री

No entry for forest laborers in Gorewada for opposing privatization
निजीकरण का विरोध करने पर गोरेवाड़ा में वन मजदूरों को नो एंट्री
निजीकरण का विरोध करने पर गोरेवाड़ा में वन मजदूरों को नो एंट्री

डिजिटल डेस्क, नागपुर।  गत दो दिनों से गोरेवाड़ा में वन मजदूरों को एंट्री नहीं दी जा रही है। निजीकरण का विरोध करने पर उन्हें प्रशासन ने ऐसी सजा दी है। दो दिन से मजदूर वर्ग प्रवेश द्वार पर ही सुबह से शाम तक शांतिपूर्ण तरीके से बैठकर अपना विरोध जता रहे  हैं। बावजूद इसके संबंधित विभाग निजीकरण के लिए जोर डाल रहा है। ऐसी स्थिति से एक ओर मजदूरों पर बेरोजगारी का संकट आ रहा है। वही दूसरी ओर निजी कंपनी से प्रशासन की सांठगांठ की आशंका व्यक्त हो रही है। हालांकि इस संदर्भ में प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारी नंदकिशोर काले से बार-बार संपर्क करने पर उन्होंने कोई प्रतिसाद नहीं दिया है।

वर्षों से काम कर रहे मजदूर
नागपुर शहर से कुछ ही दूरी पर काटोल रोड पर गोरेवाड़ा रैेस्कयू सेंटर बना है। जहां 15 किमी में जंगल सफारी का भी निर्माण किया गया है। यहां तेंदुए से लेकर भालू तक वन्यजीव रहते हैं। जंगल के कुछ हिस्से में नियमित सफाई होती है। जिसके लिए यहां 50 से ज्यादा मजदूरों को रखा गया है। वन विभाग से आपसी तालमेल बने रहने के उद्देश्य से आसपास के गांव के ही यह मजदूर हैं। हालांकि यह वन विभाग की ओर से सीधे तौर पर काम नहीं करते हैं। लेकिन अस्थाई तौर पर वन विभाग ही इन्हें काम का पैसा देती है। आनेवाले समय में वन मजदूरों की भरती निकलने पर विभाग इन्हें ही प्राथमिकता देने का विश्वास इनमें है। बिना किसी संसाधन वर्षों से यह मजदूर वर्ग यहां काम कर रहे हैं।

बावजूद इसके इन दिनों इन्हें एक कंपनी के अंतर्गत काम करने के लिए कहा जा रहा है। सूत्रों के अनुसार कंपनी हाथों में यह ठेका जाने पर मजदूरों को कभी-भी यहां से निकाला जा सकता है। वही ठेकेदार इन्हें मनमाने ढंग से काम कर सकता है। शहर के कई सरकारी महकमे में निजी ठेकेदारों की मनमानी के कारण मजदूर वर्ग निजी तौर पर काम करने से इंकार कर रहे हैं। हालांकि संबंधित प्रशासन इन पर लगातार दबाव बना रहा है। गत दो दिनों से शर्ते नहीं मानने की बात को लेकर प्रशासन ने इन्हें गोरेवाड़ा प्रकल्प के अंदर भी नहीं आने दिया है। ऐसे में सभी मजदूरों ने दरवाजे पर बैठकर ही अपना दिन गुजारा है। दूसरे दिन यानी शनिवार को भी यही हाल देखने मिला है। आरोप है कि, निजी ठेकेदारों के साथ प्रशासन के कुछ अधिकारियों की साठगांठ है, जिसके लिए मजदूरों को निजी हाथों में जाने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
 
गांववालों का नहीं रहेगा वन विभाग से अपनापन
सूत्रों के अनुसार इस क्षेत्र के आस-पास कई गांव बसे हैं। जहां आये दिन तेंदुए से लेकर कई तरह के वन्यजीव आते रहते हैं। ग्रामीण निवासी लोगों को वन विभाग के साथ किसी तरह का कोई लेना-देना नहीं रहने से वह वन्यजीवों के प्रति संवेदना नहीं दिखाते हैं। ऐसे में कई बार वन विभाग को बताये बगैर ही वन्यजीवों को मार भी देते हैं। ऐसे में कुछ साल पहले वन विभाग इस क्षेत्र के आस-पास रहनेवाले गाव के लोगों को यहां काम करने का मौका दिया है। जिससे की उनका वन विभाग के साथ आपसी तालमेल बना रहे। लेकिन निजीकरण में दुसरे लोगों को शामिल करने की वजह से यह तालमेल बिगड़ सकता है। जिसका सीधा असर वन्यजीवों पर भी पड़ सकता है।
 
प्रबंधक से नहीं हो सका संपर्क
इस संदर्भ में वन विभाग का पक्ष जानने के लिए गोरेवाड़ा प्रकल्प के विभागीय व्यवस्थापक नंदकिशोर काले से संपर्क करने की कोशिश की गई। लेकिन उनके द्वारा किसी तरह का प्रतिसाद नहीं दिया गया। 

Created On :   4 Jan 2020 3:25 PM IST

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