कोचिंग क्लास को फायर ब्रिगेड से मंजूरी लेने की जरूरत नहीं - हाईकोर्ट

No need to permission of Fire brigade for coaching classes - HC
कोचिंग क्लास को फायर ब्रिगेड से मंजूरी लेने की जरूरत नहीं - हाईकोर्ट
कोचिंग क्लास को फायर ब्रिगेड से मंजूरी लेने की जरूरत नहीं - हाईकोर्ट

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में स्पष्ट किया है कि निजी तौर पर चलने वाली कोचिंग क्लास को अग्निशमन विभाग से मंजूरी लेने की जरुरत नहीं है। यह कोचिंग क्लास वाली इमारत के मालिक का दायित्व है कि वह अग्निशमन विभाग से जरुरी मंजूरी ले। कोचिंग क्लास को अग्निशन विभाग से मंजूरी लेने की जरुरत नहीं है। हाईकोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता सपन श्रीवास्तव की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद दिए गए आदेश में इस बात को स्पष्ट किया है। याचिका में श्रीवास्तव ने कहा था कि उन्होंने सूचना के अधिकार के तहत स्थानीय निकाय से जानकारी मांगी थी कि उसके पास कितने कोचिंग क्लास ने फायर ब्रिगेड की मंजूरी के लिए आवेदन किया है। जवाब में स्थानीय निकाय ने बताया कि उसके पास किसी भी कोचिंग क्लास ने एनओसी के लिए आवेदन नहीं किया है। याचिका में कहा गया था कि महाराष्ट्र फायर प्रिवेंशन एंड लाइप सेफ्टी एक्ट 2006 के तहत कोचिंग क्लास फायर ब्रिग्रेड से मंजूरी नहीं ले रहे हैं। जबकि ऐसा करना नियमों के तहत जरुरी है। मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नांदराजोग व न्यायमूर्ति एनएम जामदार की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने याचिका दायर करने से पहले पर्याप्त शोध नहीं किया है। क्योंकि याचिका में इस बात का जिक्र नहीं है कि किस-किस कोचिंग क्लास ने फायर बिग्रेड की मंजूरी नहीं ली है। इसके अलावा जिन व्यावसायिक इमारतों में कोचिंग क्लास चलता है, यह उस इमारत के मालिक की जिम्मेदारी है कि वह फायर ब्रिगेड की मंजूरी के लिए आवेदन करे। कोचिंग क्लास को अलग से फायर ब्रिग्रेड के पास मंजूरी के लिए आवेदन करने की जरुरत नहीं है। यह कहते हुए खंडपीठ ने याचिका को खारिज कर दिया। 

हाईकोर्ट ने दी 24 सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात की इजाजत

वहीं बांबे हाईकोर्ट ने भ्रूण में विसंगति को देखते हुए एक महिला को 24 सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात की इजाजत दे दी है। महिला ने सोनोग्राफी रिपोर्ट के आधार पर दावा किया था कि उसके पेट में पल रहे भ्रूण के हृदय में विसंगति है। इससे जन्म के बाद बच्चे को काफी दिक्कते आएगी। इसलिए उसके गर्भपात की अनुमति दी जाए। न्यायमूर्ति एससी धर्माधिकारी की खंडपीठ के सामने महिला की याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने पुणे के बीजे मेडिकल कालेज के डीन को महिला की जांच के लिए मेडिकल बोर्ड के गठन का निर्देश दिया था। मेडिकल बोर्ड ने महिला की जांच के बाद खंडपीठ के सामने रिपोर्ट सौपी। रिपोर्ट में महिला के दावे को सही पाया गया था। इसके साथ ही रिपोर्ट में महिला को गर्भपात की सलाह दी गई थी। रिपोर्ट पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने महिला को गर्भपात की अनुमति प्रदान कर दी। नियमानुसार 20 सप्ताह से अधिक के भ्रूण का गर्भपात अदालत की अनुमति के बिना नहीं किया जा सकता है। इसलिए महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। 
 

Created On :   3 May 2019 7:17 PM IST

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