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मेडिकल में सामाजिक अधीक्षकों के बैठने की स्थायी जगह नहीं, भटक रहे मरीज
डिजिटल डेस्क, नागपुर। मेडिकल में समाजसेवा विभाग भी है यह जानकारी यहां आने वाले अधिकतर लोगों को पता नहीं है। समाजसेवा विभाग में सेवा देने वाले सामाजिक अधीक्षक होते हैं। आने वाले मरीजों व उनके परिजनों को उचित मार्गदर्शन करने की जिम्मेदारी सामाजिक अधीक्षकों की होती है, लेकिन इनका बैठने का कोई निश्चित स्थान नहीं है। इसलिए सामाजिक अधीक्षक इधर-उधर बैठे रहते हैं। एेसे में उन तक पहुंच पाना मरीजों के लिए मुश्किल होता है। पूरे राज्यभर के सरकारी अस्पतालों में यह विभाग है। इस विभाग में सेवा देने वाले सामाजिक अधीक्षक कहलाते हैं। इनकी जिम्मेदारी मरीजों व उनके परिजनों को उनके मर्ज के अनुसार मार्गदर्शन करना होता है। मौका आने पर भागदौड़ भी करनी पड़ती है। मेडिकल में 12 और सुपर में 4 सामाजिक अधीक्षक हैं, लेकिन इनके लिए बैठने की स्थायी जगह नहीं है। इस कारण मरीजों, उनके परिजनों व आम लोगों को इस विभाग की जानकारी नहीं है।
मरीज और डॉक्टरों के बीच का दुआ कहलानेवाले अधिकतर सामाजिक अधीक्षक दोपहर बाद इमारत में दिखाई नहीं देते हैं। जब कोई परिचित या कर्मचारी उन्हें सूचना देता है कि मरीज आया है, तब यह भीतर आकर उसका मार्गदर्शन करते हैं। मेडिकल में रोज ऐसा होता है। उनके बैठने की स्वतंत्र व्यवस्था नहीं होने से सारी समस्याएं पैदा हो चुकी हैं। बरसों से मेडिकल प्रशासन से उनके बैठने के लिए अलग से व्यवस्था करने का आश्वासन दिया जा रहा है, लेकिन यह व्यवस्था कब होगी, इस पर कोई कुछ कहने को तैयार नहीं है। सूत्रों के अनुसार 82 नंबर ओपीडी के पास एक कमरा है, वहां स्वतंत्र व्यवस्था करने का आश्वासन मेडिकल प्रशासन द्वारा दिया गया था, लेकिन आश्वासन पूरा नहीं किया गया।
समाजसेवा विभाग के सामाजिक अधीक्षकों का सरोकार सीधे मरीज के आने से उपचार तक की व्यवस्था करने से होता है। जब कोई मरीज या उनके परिजन आते हैं तो उससे बीमारी पूछना, उस आधार पर संबंधित डॉक्टरों का नाम, वार्ड क्रमांक आदि की जानकारी देना। मरीजों के लिए व्हील चेयर, स्ट्रेचर आदि की व्यवस्था कर देना। वार्डों में नियमित दौरा कर वहां मरीजों से संवाद करना आदि काम सामाजिक अधीक्षक के जिम्मे होता है। 50 साल से भी अधिक समय से सामाजिक अधीक्षक काम कर रहे हैं। पहले इन्हें मेडिकल सोशल वर्कर कहा जाता था। 10 साल पहले इनका श्रेणीवर्धन कर सामाजिक अधीक्षक का दर्जा दिया गया है। स्वास्थ्य संचालक ने उनके बैठने की स्वतंत्र व्यवस्था करने को कहा है, लेकिन मेडिकल में उनके बैठने के लिए स्वतंत्र व्यवस्था नहीं है।
शहर का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल होने से मेडिकल में दिनभर मरीजों का अाना लगा रहता है। सामान्य सेवा व आपात सेवा दोनों में ही भागदौड़ शुरू रहती है। यहां गरीब व निर्धन मरीज अधिक आते हैं। इतने बड़े अस्पताल में आने पर उपचार कराने के लिए क्या प्रक्रिया करनी पड़ती है, किससे मिलना पड़ता है आदि जानकारी नहीं होती। तब उन्हें सामाजिक अधीक्षकों की मदद लेनी पड़ती है। मेडिकल के डॉक्टर्स व अन्य कर्मचारी उन्हें सामाजिक अधीक्षक के पास भेजकर उपचार के संबंध में मार्गदर्शन के लिए भेजते हैं, ताकि मरीजों को सही मार्गदर्शन मिल सके। हालांकि सामाजिक अधीक्षक के संपर्क में मरीज व उनके परिजन आने पर पूरा मार्गदर्शन किया जाता है।
डॉ. उदय नार्लावार, विभाग प्रमुख, जनऔषधि शास्त्र विभाग के मुताबिक मेडिकल के समाजसेवा विभाग के सामाजिक अधीक्षकों को बैठने के लिए स्वतंत्र व्यवस्था नहीं है। स्वास्थ्य संचालक ने उनका श्रेणीवर्धन कर बैठने की स्वतंत्र व्यवस्था करने को कहा है। इस संबंध में अधिष्ठाता को पत्र दिया है।
डॉ. सुधीर गुप्ता, अधिष्ठाता मेडिकल के मुताबिक सामाजिक अधीक्षकों के बैठने के लिए स्वतंत्र व्यवस्था करने का कोई औचित्य नहीं है। मेडिकल में आने वाले मरीजों से सीधा संपर्क करना उनका काम है। हमारे पास स्वतंत्र व्यवस्था को लेकर कोई पत्र आने की जानकारी मुझे नहीं है। इस बारे में पूरी जानकारी लेने के बाद ही कुछ बता पाऊंगा।
Created On :   26 Dec 2021 2:52 PM IST