मान्यता नहीं, पर हर साल जिले के 100 छात्र यूक्रेन से डॉक्टर की डिग्री लेते हैं

Not recognized, but every year 100 students of the district take doctors degree from Ukraine
मान्यता नहीं, पर हर साल जिले के 100 छात्र यूक्रेन से डॉक्टर की डिग्री लेते हैं
नागपुर मान्यता नहीं, पर हर साल जिले के 100 छात्र यूक्रेन से डॉक्टर की डिग्री लेते हैं

डिजिटल डेस्क, नागपुर. यूक्रेन और रूस के बीच जारी जंग से दुनिया भर में चिंता का माहौल बना है। सर्वाधिक चर्चा वहां एमबीबीएस की डिग्री लेने गए छात्रों की हो रही है। जानकारी के अनुसार, पिछले पांच साल में नागपुर जिले से 500 छात्र एमबीबीएस करने यूक्रेन गए हैं। यूक्रेन की डिग्री को यहां मान्यता नहीं है। इसलिए छात्रों को यहां प्रैक्टिस करने व डॉक्टरी लाइसेंस के लिए एग्जिट  टेस्ट अंतर्गत स्क्रीनिंग या फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट टेस्ट देना पड़ता है। लेकिन इस टेस्ट में केवल 10 फीसदी छात्र ही पास हो पाते हैं। 90 फीसदी छात्र फेल हो जाते हैं, इसलिए उन्हें लाइसेंस नहीं मिल पाता है। ऐसे में इन छात्रों के लिए यूक्रेन की डिग्री किसी काम की नहीं रह जाती। हालांकि उन्हें दो मौके और दिए जाते हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं कि वह पास हो जाएंगे। ऐसे में यूक्रेन से एसबीबीएस करने वाले कई छात्रों को देश में प्रैक्टिस करने का मौका नहीं मिल पाता है। इसलिए वे किसी डॉक्टर के सहायक बनकर सेवा में लग जाते हैं। पिछले पांच साल में 50 छात्र ही यह परीक्षा पास कर पाए हैं, ऐसा अनुमान है। शेष 450 में से कुछ ही छात्र दूसरे और तीसरे मौके में पास हो पाते हैं। 

बीमारी व उपचार की पद्धति में अंतर

सूत्रों ने बताया कि देश के विकासशील देशों में एमबीबीएस की डिग्री पाने के लिए अलग-अलग फीस भुगतान करनी पड़ती है। भारत में यह कोर्स करने के लिए 1 से 1. 50 करोड़ रुपए लगते हैं। जबकि यूक्रेन, उज्बेकिस्तान, कजाकिस्तान, अजरबैजान, बिस्बैक, किर्गिस्तान आदि देशों में 25 से 30 लाख रुपए में एमबीबीएस की पढ़ाई हो जाती है। यहां की महंगी शिक्षा को देखते हुए छात्र दूसरे देशों का रुख करते हैं। भारत और यूक्रेन दोनों देशों के पाठ्यक्रम में अंतर होने से अधिकतर छात्र स्थानीय स्तर पर लिए जाने वाले टेस्ट में फेल हो जाते हैं। बताया जाता है कि यूक्रेन देश ठंडा स्थान है, जबकि हमारे देश में गर्मी अधिक होती है। इसलिए यहां और वहां की बीमारियों में अंतर होता है। इस कारण दवाओं व उपचार के तरीके में भी अंतर है।  

डिग्री को मान्यता नहीं
यूक्रेन में ली गई एमबीबीएस की डिग्री को यहां मान्यता नहीं है। इसलिए उन्हें यहां की एग्जिट टेस्ट देना पड़ता है। इस टेस्ट में अधिकतम 10 फीसदी छात्र ही पास हो पाते हैं। जो टेस्ट पास करता है, उन्हें ही प्रैक्टिस करने का मौका और लाइसेंस मिलता है। 

-डॉ. सचिन गाठे, सचिव, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन नागपुर

यहां है महंगी शिक्षा इसलिए...

हमारे देश में मेडिकल शिक्षा काफी महंगी है। इसलिए छात्रों का रुझान यूक्रेन की तरफ होता है। जिस कोर्स को करने में यहां 1 से 1.50 करोड़ रुपए लगते हैं, वहीं कोर्स यूक्रेन में 25 से 30 लाख रुपए में हो जाता है। जिले से हर साल 100 छात्र यूक्रेन जाने का अनुमान है। लौटने वालों की संख्या भी इतनी ही हाेती है। इनमें से 10 फीसदी ही टेस्ट पास कर पाते हैं। 

-डॉ. अनिल लद्धड, कार्यकारी सचिव, महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल

Created On :   6 March 2022 12:22 PM IST

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