अब टेस्टिंग में खेल - रैपिड टेस्ट शुरू होते ही घट गया संक्रमण का ग्राफ, उठ रहे सवाल

Now in testing, the graph of infection decreases as soon as the rapid test starts, the questions arising
अब टेस्टिंग में खेल - रैपिड टेस्ट शुरू होते ही घट गया संक्रमण का ग्राफ, उठ रहे सवाल
अब टेस्टिंग में खेल - रैपिड टेस्ट शुरू होते ही घट गया संक्रमण का ग्राफ, उठ रहे सवाल

आरटीपीसीआर टेस्ट किए कम, एकदम से नीचे आ गया पॉजिटिविटी रेट, जाँचें बढ़ीं फिर भी घट गए संक्रमित 
डिजिटल डेस्क जबलपुर ।
दूसरी लहर में एक दिन में कोरोना पॉजिटिव आने वालों का 900 तक पहुँचा ग्राफ एक दम से नीचे आ गया है। हेल्थ बुलेटिन में शुक्रवार को मात्र 136 लोग कोविड पॉजिटिव आए। पॉजिटिविटी रेट तेजी से घटते हुए 2.68 प्रतिशत पर आ गया। एक्टिव केस सिमटकर 2602 हो गए हैं। एक तरह से जिले के लिए यह आँकड़ा राहत भरा है, लेकिन अब इस पर सवाल भी खड़े हो रहे हैं। लोगों का कहना है कि मौतों पर पर्दा डालने जैसी बाजीगिरी के बाद अब जिला प्रशासन कोरोना के संक्रमण के आँकड़ों में खेल कर रहा है। इससे खतरा और बढ़ जाएगा। डब्ल्यूएचओ की स्पष्ट गाइडलाइन है कि 70 प्रतिशत कोरोना जांचें आरटीपीसीआर से होनी चाहिए। 30 प्रतिशत जाँचें रैपिड एंटीजन टेस्ट के माध्यम से की जा सकती हैं, लेकिन आँकड़ों में ग्राफ कम दिखाने के लिए जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग ने आरटीपीसीआर के सैम्पल बेहद कम कर दिए हैं। ज्यादातर टेस्ट रैपिड एंटीजन के जरिए हो रहे हैं। इसे हास्यास्पद माना जा रहा है। जानकारों का मानना है कि संक्रमण को कम समझकर यदि लोग फिर से निश्चिंत हो गए तो कोरोना का और भी भयानक रूप सामने आ सकता है। बाद में इसे संभालना मुश्किल हो जाएगा। 
ताकि तुरंत मिले उपचार 
जिले के मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. रत्नेश कुरारिया ने बताया कि आरटीपीसीआर जाँच की रिपोर्ट आने में 2 से 3 दिन तक वक्त लगता है, ऐसे में रैपिड टेस्ट ज्यादा किए जा रहे हैं। खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में संक्रमण रोकने के लिए, रैपिड जाँच कर तुरंत मरीजों को उपचार दिया जा रहा  है, ताकि संक्रमण की चेन को तोड़ा जा सके। रैपिड टेस्ट और आरटीपीसीआर जाँच की एफीसिएंसी में 10-12 फीसदी का ही फर्क है। 
डब्ल्यूएचओ का नियम ही ताक पर 8 80 फीसदी से ज्यादा मामलों मेें मरीजों का हो रहा रैपिड एंटीजन टेस्ट
उल्लेखनीय है कि पिछले 1 पखवाड़े में जहाँ जाँचें बढ़ीं हैं, वहीं नए संक्रमितों की संख्या में कमी आई है। लोगों के मन में अब यही सवाल आ रहा है कि कोरोना संक्रमण के घटने की वजह रैपिड टेस्ट होना तो नहीं है? अप्रैल माह से तुलना करें तो यह बात कहीं न कहीं सच साबित होती दिख रही है। अप्रैल के दूसरे पखवाड़े में जब मरीजों की संख्या 800 के पार जा रही थी, तब 80 फीसदी तक जाँचें आरटीपीसीआर टेस्ट के जरिए हो रहीं थीं, वहीं अब मई माह में जाँचें अप्रैल माह से ज्यादा हो रहीं हैं, लेकिन नए मरीज घटकर 300 के नीचे तक आ गए हैं। इस दौरान 80 से 85 फीसदी जाँचें रैपिड एंटीजन टेस्ट के जरिए की जा रहीं हैं। ऐसे में यह सवाल उठ रहे हैं कि पहली लहर में जहाँ आरटीपीसीआर जाँचों को प्राथमिकता दी गई, तब दूसरी लहर में रैपिड टेस्ट को प्राथमिकता क्यों दी जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि आरटीपीसीआर टेस्ट, रैपिड टेस्ट की तुलना में कई गुना ज्यादा सटीक होता है। इधर स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि रैपिड जाँच बढ़ाने के पीछे का मकसद, तेजी से ज्यादा से ज्यादा सैम्पलिंग और रिजल्ट है, ताकि संक्रमण की चेन को ब्रेक किया जा सके।  
 

Created On :   22 May 2021 4:42 PM IST

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