बुजुर्ग ने पत्नी मानने से किया इनकार, तो कोर्ट ने दिलाया दर्जा

Old man refused to accept his wife, then the court gave her status
बुजुर्ग ने पत्नी मानने से किया इनकार, तो कोर्ट ने दिलाया दर्जा
नागपुर बुजुर्ग ने पत्नी मानने से किया इनकार, तो कोर्ट ने दिलाया दर्जा

डिजिटल डेस्क, नागपुर. बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने खामला निवासी एक 60 वर्षीय महिला को सिविल लाइंस निवासी एक 79 वर्षीय बुजुर्ग की पत्नी का दर्जा प्रदान किया है। दरअसल संपत्ति और मेंटेनेंस के विवाद में यह वृद्ध, पीड़ित महिला को अपनी पत्नी मानने से ही इनकार कर रहा था, लेकिन कोर्ट में इस बात के ठोस सबूत थे कि दोनों लंबे वक्त तक पति-पत्नी की तरह साथ रहे थे। लिहाजा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा एक प्रकरण के फैसले को उदाहरण मान कर नागपुर खंडपीठ ने महिला को वृद्ध की पत्नी का दर्जा दिया। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि अगर दोनों का विवाह नहीं हुआ हो या फिर विवाह वैध नहीं हो, तो भी कुछ परिस्थितियों में महिला को पत्नी का दर्जा दिया जा सकता था। जैसे अगर दोनों विवाह योग्य उम्र के हों और स्वेच्छा से साथ रहते हुए समाज में एक-दूसरे के पति-पत्नी के रूप में पेश कर रहे हों, तो इस संबंध को विवाह जैसा ही संबंध मानना चाहिए।

यह था मामला : पीड़िता ने सबसे पहले साल 2015 में जेएमएफसी कोर्ट में अर्जी दायर करके अपने साथ घरेलू हिंसा की शिकायत की। कोर्ट को बताया गया कि उसने साल 1975 में सामाजिक रीतियों के अनुसार विवाह किया। विवाह से उन्हें एक बेटा भी है। आगे चल कर पति ने खामला में एक घर बनाया, जहां महिला अभी रह रही है। पति अलग सिविल लाइंस में निवास कर रहा है। महिला के अनुसार इस उम्र में आकर न तो पति उसकी देखभाल कर रहा है और न ही उसे गुजारे के लिए कोई पैसे दिए जा रहे हैं। जनवरी 2015 में पति ने खामला का घर बेचने के लिए एक व्यक्ति से करार भी कर लिया, जिस पर रोक लगाने की प्रार्थना कोर्ट से की गई थी। कोर्ट ने पति को आदेश दिया कि वह महिला को 1 लाख रुपए मुआवजा और 5 हजार रुपए प्रतिमाह मेंटेनेंस दें, साथ ही उसे खामला के घर से न निकालें। इस आदेश को पति ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।

निजली अदालत का फैसला कायम

इस मामले में पति ने महिला को अपनी पत्नी मानने से इनकार कर दिया। दलील दी कि उसका विवाह 1966 में हो चुका था। उसकी पत्नी की मृत्यु 1988 में हुई थी। ऐसे में उक्त महिला के साथ उसका विवाह वैध नहीं था, इसलिए निचली अदालत उसे महिला को मेंटेनेंस देने का आदेश नहीं दे सकती, लेकिन हाईकोर्ट ने मामले में सभी पक्षों को सुनकर पति की याचिका खारिज करके निचली अदालत का फैसला कायम रखा।

Created On :   28 Nov 2022 6:55 PM IST

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