प्राचीन ज्ञान को आधुनिक शिक्षा से जोडने पर आम जन होगा संस्कारित भारतीयता और भारतीय ज्ञान परम्परा को बढ़ाने वाली होगी नई शिक्षा नीति -राज्यपाल

District Mineral Fund is not being used in Gadchiroli!
गड़चिरोली में जिला खनिज निधि का नहीं हो रहा कोई उपयाेग!
प्राचीन ज्ञान को आधुनिक शिक्षा से जोडने पर आम जन होगा संस्कारित भारतीयता और भारतीय ज्ञान परम्परा को बढ़ाने वाली होगी नई शिक्षा नीति -राज्यपाल

डिजिटल डेस्क, जयपुर। 22 सितम्बर। राज्यपाल श्री कलराज मिश्र ने कहा है कि बहुविषयी शिक्षा, सम्पूर्ण विकास, जड़ से जग तक, मानव से मानवता तक की बात राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में समावेशित है। नई शिक्षा नीति में आधुनिक शिक्षा से प्राचीन भारतीय ज्ञान को जोड़ने से आम जन संस्कारित होगा। शिक्षा के साथ संस्कार का होना आवश्यक है। राज्यपाल ने कहा कि भारत में सांंस्कृतिक रूप से बेशुमार भाषाओं और बोलियों के साथ-साथ, शास्त्रीय नृृत्य एवं संगीत, लोक कला की विकसित परंपराएं, उम्दा वास्तु कला सहित जीवन के सभी क्षेत्रों में भारत की समग्रता, भारतीय संस्कृति में विविधता में एकता को प्रदर्शित करती है। उन्होंने कहा कि विश्व धरोहर के लिए इन समृद्ध विरासतों को न केवल भावी पीढ़ी के लिए पोषित और संरक्षित किया जाना आवश्यक है बल्कि हमारी शिक्षा प्रणाली के जरिए इन्हें बढ़ाना और इन्हें नये तरीके से उपयोग में भी लाना जरूरी है। राज्यपाल ने कहा कि 185 वर्षों के बाद भारतीयता पर यह शिक्षा नीति बनी है, जो आज के संदर्भ में ज्ञान की प्राचीन परम्परा को बतायेगी। राज्यपाल श्री मिश्र ने नई शिक्षा नीति को भारतीयता और भारतीय ज्ञान परम्परा को बढाने वाली बताया है। राज्यपाल श्री मिश्र मंगलवार को यहां राजभवन से वाराणसी के बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के अन्तर विश्वविद्यालयीय अध्यापक शिक्षा केन्द्र द्वारा आयोजित राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 ः प्राचीन ज्ञान परम्परा एवं आधुनिक शिक्षा पर आयोजित एक दिवसीय वेबिनार को वीडियो कान्फ्रेन्स के माध्यम से संबोधित कर रहे थे। राज्यपाल ने इस अवसर पर संविधान की प्रस्तावना और कर्तव्यों का वाचन भी कराया। राज्यपाल ने कहा कि भारत की सोच व्यापक रही है। विश्व गुरू का स्थान भारत ने ज्ञान से ही प्राप्त किया था। भारत की ज्ञान परम्परा इतनी समृद्व है कि वह पुस्तकों के जलाने और पुस्तकालयों को समाप्त करने से भी समाप्त नही हो पाई। राज्यपाल श्री कलराज मिश्र ने कहा कि भारतीय शिक्षा के इतिहास पर दृष्टिपात करने से ज्ञात होता है कि प्राचीन काल में शिक्षा का मूल उद्देश्य ज्ञान की प्राप्ति रहा है। इस उद्देश्य के अनुरुप शिक्षा का स्वरुप और विषय निर्धारित किये जाते थे। उन्होंने कहा कि आज जरूरत है आध्यात्म को विज्ञान से, परमार्थ को व्यवहार से, परंपरा को आधुनिकता से जोड़ते हुए वैयक्तिक, सामाजिक एवं वैश्विक जीवन में समरसता के लिये एकता के सूत्र खोजे जायें। राज्यपाल ने कहा कि ऋग्वेद की ऋचाओं में कहा गया है कि सात्विक विचारों को हर दिशा से आने दो। स्वयं को किसी चीज से वंचित न करो, अच्छी बातों को ग्रहण करो, तभी भला होगा। प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा की आवश्यकता को पूरा विश्व महसूस कर रहा है। आवश्यकता है कि इस पर विस्तृत विचार मंथन किया जाये। राज्यपाल ने कहा कि प्राचीन काल से ही हमारा देश उच्च मानवीय मूल्यों एवं विशिष्ट वैज्ञानिक परंपराओं का देश रहा है। भारत की संस्कृति रही है कि भारत ने दुनिया को अलग-अलग देश के रुप में माना ही नहीं है। भारत दुनिया को एक परिवार मानता हैं। इस सदी के उत्तरार्ध से पश्चिमी सभ्यता वाले देश भारतीय संस्कृति और सभ्यता को अपनाने और जानने पर जोर देने लगे हैं। भारत की परंपराओं को आज विश्व भी अपना रहा है। हमें और हमारी भावी पीढ़ियों को भी भारत की प्राचीन मूल्य को यथोचित महत्व देना होगा। इसके लिए आंतरिक ज्ञान, गुण, शक्ति एवं आदशोर्ं को ठीक रूप से पहचानना एवं सही दिशा प्रदान करना होगा। समारोह को श्री रजनीश कुमार शुक्ल, श्री सच्चिदानन्द जोशी, श्री विनोद कुमार त्रिपाठी और श्री आर पी शुक्ल ने भी सम्बोधित किया। ———

Created On :   23 Sept 2020 2:43 PM IST

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story