तत्कालिन राज्यमंत्री विद्या ठाकुर के आदेश पर रोक, मेडिकल स्टोर का लाईसेंस किया था निलंबित 

On the orders of the then Minister of State Vidya Thakur
तत्कालिन राज्यमंत्री विद्या ठाकुर के आदेश पर रोक, मेडिकल स्टोर का लाईसेंस किया था निलंबित 
हाईकोर्ट तत्कालिन राज्यमंत्री विद्या ठाकुर के आदेश पर रोक, मेडिकल स्टोर का लाईसेंस किया था निलंबित 

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने राज्य की तत्कालीन अन्न व औधष प्रशासन राज्यमंत्री विद्या ठाकुर को झटका देते हुए एक केमिस्ट के लाइसेंस को दस दिन तक के लिए निलंबित करने के आदेश को रद्द कर दिया है। मामला मुंबई के केमिस्ट राज फार्मा से जुड़ा है। जिसमें तत्कालीन राज्यमंत्री ठाकुर की ओर से 12 जून 2015 को जारी किए गए आदेश की वैधता को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। जिस पर न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव के सामने सुनवाई हुई। न्यायमूर्ति ने कहा कि अपीलीय प्राधिकरण के रुप में काम करनेवाली तत्कालीन राज्यमंत्री ने भी याचिकाकर्ता की ओर से दस्तावेज के रुप में पेश की गई सामग्री को कानूनी प्रावधान के प्रकाश में नहीं देखा है। इससे पहले लाइसेंसिग प्राधिकरण ने भी याचिकाकर्ता कि ओर से पेश किए गए दस्तावेजों पर विचार नहीं किया है। इसलिए राज्यमंत्री की ओर से 12 जून 2015 व लाइसेंसिग प्राधिकरण की ओर से 28 नवंबर 2014 को जारी आदेश को रद्द किया जाता है। 

मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति ने कहा कि राज फार्मा (याचिकाकर्ता) ने नियमों के उल्लंघन के आरोपों को लेकर जो दस्तावेज व सामग्री पेश की है, वह दर्शाते हैं कि याचिकाकर्ता ने किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया है। लेकिन अपीलीय प्राधिकरण के रुप मे काम करनेवाले तत्कालीन राज्यमंत्री व लाइसेंसिंग प्राधिकरण ने उन दस्तावेजों पर विचार ही नहीं किया है। इसलिए मामले को लेकर लाइसेंसिंग प्राधिकरण व तत्कालीन राज्य मंत्री ठाकुर की ओर से जारी किए गए आदेश को रद्द किया जाता है। लाइसेंसिंग प्राधिकरण ने एम-एस राज फार्मा पर आरोप लगाया था कि वह अधिकृत व्यक्तियों को दवाएं नहीं बेचता था। अप्रैल 2014 से जून 2014 के बीच याचिकाकर्ता ने डाक्टरों को जो दवाएं दी थी उसका ब्यौरा नहीं उपलब्ध कराया गया था। याचिकाकर्ता की ओर से दवाओं की भावसूची भी नहीं पेश की गई थी। 

इन आरोपों को लेकर याचिकाकर्ता को कारण बताओं नोटिस देकर सफाई मांगी गई थी। जो याचिकाकर्ता ने दस्तावेजों के साथ विस्तार से उपलब्ध कराई थी। किंतु अन्न व औषध प्रशासन के जोन एक के सहायक आयुक्त याचिकाकर्ता की साफाई से संतुष्ट नजर नहीं आए। इसलिए उन्होंने याचिकाकर्ता के लाइसेंस को 60 दिन के लिए (29 दिसंबर 2014 से 26 फरवरी 2015) निलंबित कर दिया। एफडीए के सहायक आयुक्त के इस फैसले के खिलाफ याचिकाककर्ता ने तत्कालीन राज्यमंत्री विद्या ठाकुर के पास अपील की। जिन्होंने सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता के लाइसेंस के 60 दिनों के निलंबन को जनहित व जनसुरक्षा के मद्देनजर घटा कर दस दिनों के लिए कर दिया। इससे असंतुष्ट याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में अपील की। 

न्यायमूर्ति जाधव के सामने याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी करनेवाले वकील ने कहा कि इस मामले में मेरे मुवक्किल के लाइसेंस को रद्द करने का जो आदेश जारी किया गया है वह कानून के अनुरुप नहीं है। एफडीए के सहायक आयुक्त ने मेरे मुवक्किल को जो नोटिस जारी किया था उसका जवाब  मेरे मुवक्किल ने विस्तृत रिकार्ड दस्तावेज के साथ पेश किया था। इसलिए लाइसेंसिंग प्राधिकरण व मामले से जुड़ी अपील को सुननेवाली तत्कालीन राज्यमंत्री को इस पर विचार करना चाहिए था। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। जहां तक दवाओं की भावसूची से जुड़ी जानकारी की है तो वह दवा बनानेवाली कंपनियां उपलब्ध नहीं कराती है। इसलिए इस संबंध में एफडीए को उपयुक्त निर्देश जारी करने के लिए कहा जाए। 

वहीं सरकारी वकील ने कहा कि याचिकाकर्ता ने नोटिस के जवाब में जो उत्तर दिया था वह असंतोषजनक पाया गया था। इसलिए उसके लाइसेंस को निलंबित किया गया था। सरकारी वकील ने कोर्ट से आग्रह किया कि इस याचिका को खारिज किया जाए। किंतु मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति ने याचिकाकर्ता के पक्ष में फैसला सुनाया। 
 

Created On :   9 Nov 2022 9:21 PM IST

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