- Home
- /
- राज्य
- /
- महाराष्ट्र
- /
- नागपुर
- /
- आयुष्मान भारत योजना के तहत...
आयुष्मान भारत योजना के तहत स्वास्थ्य केंद्रों में 1200 बीएएमएस चिकित्सकों की नियुक्ति का विरोध
डिजिटल डेस्क, नागपुर। राज्य में आयुष्मान भारत योजना के तहत हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर(एचडब्ल्यूसी) के प्रमुख के रूप में 1200 बीएएमएस (बैचलर ऑफ आयुर्वेदिक मेडिसिन एंड सर्जरी) चिकित्सकों की प्रस्तावित नियुक्ति विवादों में घिर चुकी है। महाराष्ट्र आईएमए प्रमुख डॉ. जयेश लेले के बाद आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. शांतनु सेन भी खुलकर इसका विरोध कर रहे हैं। उन्होंने महाराष्ट्र सरकार से तत्काल इस पहल को रोकने की अपील करते हुए कहा है कि उपरोक्त पदों पर स्थायी रूप से केवल एमबीबीएस डॉक्टरों की ही नियुक्ति की जानी चाहिए। उन्होंने राज्य सरकार पर आधिकारिक रूप से क्रॉसपैथी को बढ़ावा देने का भी आरोप लगाया। (आयुर्वेद, होमियोपैथ और यूनानी चिकित्सकों द्वारा एलोपैथी दवा लिखे जाने के लिए क्रॉसपैथी शब्द का उपयोग किया जाता है।) डॉ. सेन ने इस पर अफसोस जताते हुए इसे हजारों लोगों की जान के साथ खिलवाड़ बताया है। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार की ओर से बीएएमएस चिकित्सकों को इन पदों पर नियुक्त करने के लिए विशेष रूप से छह माह का पाठ्यक्रम बनाया गया था। राज्य के 36 अस्पतालों में अक्टूबर 2018 में शुरू हुए इस पाठ्यक्रम की अंतिम परीक्षा 6 या 7 मार्च को होने वाली है।
आईएमए के खिलाफ एनआईएमए का कानूनी नोटिस
आईएमए के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. शांतनु सेन के वक्तव्य से नाराज एनआईएमए ने कानूनी नोटिस भेजकर बीएएमएस डॉक्टरों से बिना शर्त माफी मांगे जाने की मांग की है। एनआईएमए के नेशनल काउंसिल के अध्यक्ष वीडी टेंभुरकर ने डॉ. सेन के वक्तव्य पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि सेंट्रल काउंसिल ऑफ मेडिसिन के आईएमसीसी एक्ट 1970 व समय–समय पर जारी अन्य नोटिफिकेशन के अनुसार के तहत यह साफ है कि आयुर्वेदिक व अन्य भारतीय पद्धति से चिकित्सा करने वाले अपनी पद्धति के साथ-साथ आधुनिक चिकित्सा पद्धति का उपयोग करने के योग्य हैं। भारतीय पद्धति से चिकित्सा करने वाले चिकित्सकों के राष्ट्रीय संगठन नेशनल इंटरग्रेटेड मडिकल एसोशियसन पहले ही बीएएमएस डॉक्टरों की नियुक्ति के लिए विशेष रूप से छह माह के पाठ्यक्रम बनाए जाने और प्रशिक्षण का विरोध कर रही है। उनके अनुसार बीएएमएस डॉक्टर पहले ही एलोपैथी दवाएं लिखने के प्राधिकृत हैं। इनके लिए फिर से पाठ्यक्रम की कोई जरूरत नहीं है।
मुख्यमंत्री से परीक्षा रद्द करने की मांग
एमसीआईएम के प्रतिनिधि मंडल ने एक मार्च को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात कर परीक्षा रद्द किए जाने की मांग कर चुका है। सीमए के परीक्षा रद्द करने पर विचार के आश्वासन के बावजूद इस संबंध में कोई सूचना नहीं है। पाठ्यक्रम तैयार करने वाले महाराष्ट्र यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साईंस के परीक्षा नियंत्रक डॉ. अजीत पाठक के अनुसार राज्य सरकार की ओर से इस बारे में अब तक कोई आदेश नहीं प्राप्त हुआ है। इसका अर्थ है परीक्षा होगी। आईएमए, नागपुर के अध्यक्ष डॉ. आशीष दिसावल के अनुसार यह मामला मरीजों के अधिकार से भी जुड़ा है। सरकारी स्वास्थ्य केंद्र पर चिकित्सा करवाने आने वाले मरीज को लगता है कि वे एक एमबीबीएस डॉक्टर से चिकित्सा करवा रहे हैं। बीएएमएस चिकित्सकों की योग्यता पर सवाल उठाने का प्रश्न नहीं है, पर हर डिसिप्लिन के चिकित्सकों को अपने डिसिप्लिन में ही सेवा देनी चाहिए। इससे मरीजांे का भरोसा बना रहेगा।
स्वास्थ्य उपकेंद्रों में डॉक्टरों की भर्ती प्रक्रिया रद्द
उधर ग्रामीण क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवकों के भरोसे चल रहे स्वास्थ्य उपकेंद्रों में डॉक्टरों की नियुक्ति को ग्रहण लग गया है। राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन अंतर्गत जिले में बीएएमएस तथा बीयूएमएस डॉक्टरों की भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई थी। स्वास्थ्य विभाग आयुक्त तथा अभियान संचालक ने जिप के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को पत्र भेजकर भर्ती प्रक्रिया रद्द किए जाने की सूचना दी है। जिन उम्मीदवारों ने आवेदन किए हैं, उन्हें आवेदन के साथ जमा किया गया शुल्क वापस करने के निर्देश दिए गए हैं। स्वास्थ्य उपकेंद्र में 474 बीएएमएस तथा बीयूएमएस डॉक्टरों की नियुक्ति होनी थी। 28 फरवरी आवेदन की अंतिम तिथि रखी गई थी। अंतिम तिथि तक 600 डॉक्टरों के आवेदन प्राप्त हुए हैं। चयन के लिए साक्षात्कार प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई थी। स्वास्थ्य उपकेंद्रों में डॉक्टरों की िनयुक्ति प्रक्रिया शुरू होने से ग्रामीण क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवा में सुधार की उम्मीद जगी थी। नियुक्ति प्रक्रिया रद्द किए जाने से ग्रामीण क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवा में सुधार का सपना, सपना ही रह गया है। आवेदन के साथ आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों से 200 और अनारक्षित वर्ग के उम्मीदवारों से 300 रुपए शुल्क वसूल किया गया था। चयन किए जाने वाले डॉक्टरों को पहले 6 महीने प्रशिक्षण देने का तय हुआ था। इसके बाद 25 हजार रुपए प्रति माह वेतन और 15 हजार रुपए प्रोत्साहन भत्ता देने का आश्वासन मिला था।
इसलिए लिया था फैसला
जिले में 59 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, 316 उपकेंद्र कार्यरत हैं। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में मरीजों की सेवा एमबीबीएस डॉक्टरों के कंधों पर है। उपकेंद्रों में स्वास्थ्य सेवक तथा सेविका के माध्यम से मरीजों को प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा दी जाती है। स्वास्थ्य उपकेंद्र और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के बीच काफी अंतर रहने से मरीजों को समय पर उपचार नहीं मिल पाता। उपचार में देर होने पर मरीज रास्ते में दम तोड़ देते हैं। इस असुविधा का हल निकालने के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन अंतर्गत स्वास्थ्य उपकेंद्रों में डॉक्टरों की नियुक्ति करने का निर्णय लिया था। यह निर्णय वापस लेकर भर्ती प्रक्रिया रद्द कर दी गई है।
Created On :   6 March 2019 6:03 PM IST