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मम्मी-पापा पीटते और दारू बनवाते थे इस बच्चे से, कोर्ट ने लिया बड़ा फैसला
डिजिटल डेस्क बालाघाट। जो बच्चे अपने परिवार वालों या फिर आता पिता से प्रताडि़त हैं तो वे भी बाल न्यायालय की शरण ले सकते हैं । ऐसा ही एक उदाहरण यहां देखने को मिला । जिले का एक 7 वर्षीय बालक जो विगत एक माह से महाराष्ट्र के बाल गृह में रह रहा था। गत दिवस महाराष्ट्र विशेष किशोर पुलिस इकाई द्वारा उसे बालाघाट लाकर बाल न्यायालय समिति को सौंपा गया था । न्यायपीठ अध्यक्ष प्रकाशचंद्र बाघरेचा ने बताया कि बालक के स्वहित में लिया गया यह फैसला देश का पहला फैसला है। उन्होंने कहा कि ऐसे बालक जो अपने माता-पिता तथा परिवार से शोषित या उपेक्षित महसुस करते है वे बालक समिति के पास आ सकते है। समिति द्वारा ऐसे बालकों का पुर्नवास किया जाता है।
समित सदस्य डॉ. नीरज अरोरा और सरला कांकरिया ने संयुक्त रूप से बताया कि ऐसे संवेदनशील मामले में न्यायपीठ सातो दिन 24 घंटे में तत्काल निर्णय लेकर बालकों के सर्वोत्तम हितों का ध्यान रखती है। सदस्यद्वय का कहना था कि ऑपरेशन मुस्कान के तहत भीख मांगने वाले बालकों का सर्वे कराकर ऐसे बालकों को समझाईश और माता-पिता को चेतावनी देकर बालको को समिति द्वारा पढऩे-लिखने के लिए प्रेरितकिया जाता है । बाल न्यायालय समिति अध्यक्ष प्रकाशचंद्र बाघरेचा ने बताया कि बच्चे की जानकारी के बाद समिति के सदस्यों की मौजूदगी में बच्चे से उसके घर से चले जाने और घर नहीं जाने के बारे में चर्चा की गई तो बच्चे ने बताया कि वह अपनी मम्मी-पापा के साथ नहीं जाना चाहता। बच्चे का कहना था कि मुझे मम्मी-पापा मारते, पीटते है, मेरे से दारू बनवाते है, मैं पढऩा चाहता हुॅं। बच्चे की इस व्यथा के बाद न्यायपीठ के अध्यक्ष प्रकाशचंद्र बाघरेचा, सदस्य सुशील जैन, शीलासिंह ने मामले में संवेदशीलता दिखाते हुए बालक की बातों पर निर्णय लेकर आदेश पारित किया। जिसमें बच्चे को बाल गृह में प्रवेश कराकर उसका स्कूल में दाखिला करवाया गया है।
Created On :   19 Sept 2017 5:08 PM IST