हाईकोर्ट : पेंशन देना मृतक की पत्नी को अनुकंपा नियुक्ति से वंचित करने का आधार नहीं

Pension is not the basis for denying compassionate appointment - HC
हाईकोर्ट : पेंशन देना मृतक की पत्नी को अनुकंपा नियुक्ति से वंचित करने का आधार नहीं
हाईकोर्ट : पेंशन देना मृतक की पत्नी को अनुकंपा नियुक्ति से वंचित करने का आधार नहीं

डिजिटल डेस्क, मुंबई। मृतक की पेशन के लाभ से जुड़ा विवाद उसकी पत्नी को अनुकंपा नियुक्ति से वंचित करने का आधार नहीं हो सकता है। बांबे हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में यह बात कही है। हाईकोर्ट में रुपाली वानखेडकर की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई चल रही है। रुपाली के पति किशोर महाराष्ट्र स्टेट पावर जनरेशन कंपनी लिमिटेड (महाजेनको) में कार्यरत थे। नौकरी के नौकरी  26 मार्च 2015 को उनका निधन हो गया था। लिहाजा रुपाली ने महाजेनको के पास उपयुक्त अनुकंपा नियुक्ति दिए जाने की मांग को लेकर आवेदन किया था। लेकिन किशोर के माता-पिता ने महाजेनको को पत्र लिख कर रुपाली को अनुकंपा नियुक्ति दिए जाने को लेकर आपत्ति जताई थी। रुपाली व उसके सास-ससूर के बीच किशोर के पेंशन के लाभ को लेकर विवाद चल रहा है। इस विवाद व अपत्ति के मद्देनजर महाजेनको ने रुपाली को 20 जुलाई 2018 को पत्र लिखकर सूचित किया है कि वह पहले अपने सास-ससूर के बीच पेंशन को लेकर जारी विवाद को निपटाए। इसके बाद उसकी अनुकंपा नियुक्ति के बारे में विचार किया जाएगा। महाजेनको की ओर से जारी किए गए इस पत्र को रद्द किए जाने की मांग को लेकर रुपाली ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। न्यायमूर्ति आरवी मोरे व न्यायमूर्ति सुरेंद्र तावडे की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान रुपाली के वकील ने खंडपीठ को सूचित किया कि मेरे मुवक्किल के अलावा दूसरा कोई शख्स अनुकंपा नियुक्ति के लिए पात्र नहीं है। इस पर कोई आपत्ति नहीं है। इस बात को जानने के बाद खंडपीठ ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता अनुकंपा नियुक्ति के लिए पात्र है तो मृतक कर्मचारी के पेंशन के लाभ को लेकर जारी विवाद अनुकंपा नियुक्ति से वंचित करने का आधार नहीं हो सकता है। खंडपीठ के इस रुख को देखते हुए महाजेनको की वकील ने कहा कि उन्हें याचिका में उठाए गए मुद्दे के बारे में जरुरी निर्देश लेने के लिए वक्त दिया जाए। इसके बाद खंडपीठ ने मामले की सुनवाई 16 जनवरी 2020 तक के लिए स्थगित कर दी। अगली सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने महाजेनको को हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया। 

सड़क दुर्घटना में मारे गए बेटे के माता-पिता को दिए गए मुआवजे के आदेश को हाईकोर्ट ने रखा बरकरार

बांबे हाईकोर्ट ने सड़क हादसे में जानगंवानेवाले एक युवक के माता-पिता को दिए गए मुआवजे के आदेश को बरकरार रखा है। मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्युनल ने रिलांयस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को सड़क हादसे में जानगवांनेवाले विजंय सावंत के माता-पिता को मुआवजे के तौर पर 17 लाख 99 हजार रुपए देने का आदेश दिया था। ट्रिब्यूनल के इस आदेश के खिलाफ रिलांयस जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड ने हाईकोर्ट में अपील किया था। जिसे तथ्यहीन करार देते हुए हाईकोर्ट ने मुआवजे के संबंध में दिए गए आदेश को बरकरार रखा और बीमा कंपनी को सावंत के माता-पिता को और 80 हजार रुपए साढे सात प्रतिशत के ब्याज के भुगतान करने का निर्देश दिया। सावंत 16 फरवरी 2014 को अपनी मोटर साइकिल से मुंबई-नाशिक हाइवे से कही जा रहे थे। इस दौरान पीछे आ रहे एक ट्रक(ट्रेलर) ने उनकी मोटर साइकिल को पीछे  से धक्का मार दिया। इस सड़क हदासे में 29 वर्षीय सावंत की घटना स्थल पर ही मौत हो गई। इसके बाद सावंत के माता-पिता ने मुआवजे के लिए ट्रिब्युनल में आवेदन दायर किया। आवेदन के मुताबिक सावंत महाराष्ट्र पुलिस में प्रशिक्षक के रुप में कार्यरत थे। इसके अलावा बेटे के अपना निजी कारोबार भी था। ट्रक ड्राइवर की लापरवाही के चलते दुर्घटना घटी है। मामले से जुड़े सभी पहलूओं पर गौर करने के बाद ट्रिब्यूनल ने सावंत के माता-पिता को मुआवजे के रुप में 17 लाख 99 हजार रुपए देने का निर्देश दिया। इस आदेश के खिलाफ बीमा कंपनी ने हाईकोर्ट में अपील की। न्यायमूर्ति आरडी धानुका के सामने बीमा कंपनी की अपील पर सुनवाई हुई। इस दौरान बीमा कंपनी के वकील ने कहा कि जिस ट्रक से सड़क दुर्घटना हुई थी उसने बीमा पालिसी की कई शर्तों का उल्लंघन किया था। ट्रक के मालिक ने ट्रक को लेकर फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं लिया था। ड्राइवर के पास जरुरी परमिट व लाइसेंस नहीं था।इसलिए उसे मुआवजे देने के लिए नहीं कहा जा सकता है। इसके साथ ही ट्रिब्युनल ने मुआवजे की रकम तय करने के तरीके में खामिया है। किंतु न्यायमूर्ति ने बीमा कंपनी की अपील को सारहीन करार दिया और मुआवजे के आदेश को बरकरार रखा। 

व्याभिचार के आधार पर विवाह खत्म होने की स्थिति में महिला गुजारेभत्ते की हकदार नहीं

व्याभिचार के आरोप साबित होने के बाद विवाह खत्म होने की स्थिति में महिला गुजारेभत्ते पाने की हकदार नहीं है। बांबे हाईकोर्ट ने  गुजाराभत्ते की मांग को लेकर एक महिला की ओर से दायर याचिका को खारिज करते हुए यह बात स्पष्ट की है। मामले से जुड़े दंपत्ति का विवाह 1980 में हुआ था। बाद में याचिकाकर्ता(महिला: के पति ने साल 2000 में व्याभिचार के आरोप को आधार बनाकर तलाक ले लिया था। इस बीच याचिकाकर्ता (महिला) ने गुजारेभत्ते के लिए आवेदन किया। कोर्ट ने शुुरुआत में महिला को 150 रुपए व उसके बेटे को गुजारेभत्ते के रुप में 25 रुपए देने का निर्देश दिया। कुछ समय बाद महिला ने गुजारेभत्ते को बढाने का आग्रह किया। जिसे कोर्ट ने बढा कर नौ सौ रुपए कर दिया। इसके खिलाफ पति ने सागली सत्र न्यायालय में अपील की। सागली कोर्ट ने पति के पक्ष में फैसला सुनाया। जिसके खिलाफ पत्नी ने हाईकोर्ट में अपील की। न्यायमूर्ति नितिन सांब्रे के सामने महिला की अपील पर सुनवाई हुई। इस दौरान महिला ने अपनी अपील में कहा कि भले ही वह तलाकसुदा है फिर भी वह महिला होने के नाते आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125(4) के तहत भरणपोषण के लिए गुजारेभत्ते की हकदार है। वहीं इस दौरान पति के वकील ने कहा कि निचली अदालत ने मेरे मुवक्किल के तलाक के आवेदन को मंजूर कर लिया है। मेरे मुवक्किल ने अपनी पत्नी पर व्याभिचार का आरोप लगाया था। जो साबित हुआ और कोर्ट ने मेरे मुवक्किल के तलाक के आग्रह को स्वीकार कर लिया था। इसलिए इस परिस्थिति में याचिकाकर्ता गुजारेभत्ते की हकदार नहीं है। क्योंकि कानून याचिकाकर्ता को गुजाराभत्ता मांग करने का अधिकार नहीं देता है। इस बात से सहमत न्यायमूर्ति ने महिला की याचिका को खारिज कर दिया। 
 

Created On :   24 Dec 2019 6:22 PM IST

Tags

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story