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सिर्फ आपराधिक मामला दर्ज होने पर रद्द नहीं कर सकते परफार्मेंस लाइसेंस
डिजिटल डेस्क, मुंबई। सिर्फ आपराधिक मामला दर्ज होना होटल को मनोरंजन के लिए दिए जानेवाले "परफार्मेंस लाइसेंस' को रद्द करने का आधार नहीं हो सकता है।बांबे हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में यह बात स्पष्ट की है। हाईकोर्ट ने कहा है कि कानून के मुताबिक जब तक किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जाता है तब तक ऐसे व्यक्ति को बेकसूर माना जाता है। इसलिए केवल आपराधिक मामला का दर्ज होना लाइसेंस को रद्द करने का आधार नहीं हो सकता है। सार्वजनिक मनोरंजन व परफार्मेंस नियमावली(सिनेमा के अलावा) के तहत होटलों को परफार्मेंस लाइसेंस लेने का प्रावधान किया गया है।
मामला मुंबई के गोरेगांव इलाके में स्थित गीता लंच होम से जुड़ा है। जिसे साल 2014 में परफार्मेंस लाइसेंस जारी किया गया था। साल 2016 में इस लाइसेंस को रद्द कर दिया गया गया था जिसके खिलाफ याचिकाकर्ता ने गृह विभाग के प्रधान सचिव(अपील) के पास अपील की थी। प्रधान सचिव ने पहले याचिकाकर्ता को अंतरिम राहत दी थी किंतु साल 2018 में गीता लंच होम का लाइसेंस रद्द करने को लेकर पुलिस उपायुक्त की ओर से जारी किए गए आदेश को पुष्ट कर दिया था। जिसके खिलाफ गीता लंच होम की मालकिन सीता शेट्टी ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी।
न्यायमूर्ति एसके शिंदे के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी कर रहे वकील आरडी सोनी ने कहा कि याचिकाकर्ता के लाइसेंस को सिर्फ इसलिए रद्द किया गया है क्योंकि उसके मालिक व वहां पर काम करनेवाले नौकरों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया है। यह आपराधिक मामला साल 2017 में भारतीय दंड संहिता की धारा 294, 34 व महिला के अशोभनीय चित्रण पर प्रतिबंध लगानेवाले वाले कानून की धारा 3,8(1) के तहत मामला दर्ज किया गया था। ऐसा ही एक और मामला पुलिस की समाजसेवा शाखा नेयाचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज किया था। लेकिन अब तक दोनों मामलों में किसी कोर्ट ने किसी को दोषी नहीं ठहराया है। उन्होंने राज्य सरकार की ओर से 23 जनवरी 2019 को जारी एक शासनादेश का हवाला देते हुए कहा कि आपराधिक मामले का प्रलंबित होना लाइसेंस रद्द करने का आधार नहीं हो सकता है। बशर्ते लाइसेंसधारक व उसके संस्थान में काम करनेवाले किसी नौकर को दोषी न ठहराया गया हो। इसलिए इस मामले में साल 2018 में गृह विभाग के प्रधान सचिव की ओर से जारी किए गए आदेश को रद्द कर दिया जाए।
वहीं सरकारी वकील ने हलफनामा दायर कर याचिका का विरोध किया। सरकारी वकील की ओर से दिए गए हलफनामे पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति ने पाया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ जो मामला दर्ज कियागया है उसमें अभी तक किसी को दोषी नहीं ठहराया गया है। इस मामले में याचिकाकर्ता के लाइसेंस को रद्द करने के लिए मुख्य रुप से लाइसेंसधारक व वहां पर काम करनेवालों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को आधार बनाया गया है। लेकिन साल 2019 को जारी शासनादेश के तहत सिर्फ आपराधिक मामला दर्ज होने के आधार पर लाइसेंस रद्द नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा लाइसेंस को रद्द करने का आदेश एकतरफा जारी किया गया है। इसलिए याचिकाकर्ता के लाइसेंस को रद्द करने के आदेश निरस्त किया जाता है और सक्षम प्राधिकरण (पुलिस उपायुक्त) को नए सिरे से इस पूरे मामले को लेकर 25 नवंबर 2022 तक निर्णय लेने का निर्देश दिया जाता है।
Created On :   19 Nov 2022 9:15 PM IST