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राजनीतिक अस्थिरता का सरकारी महकमे में पर भी हो रहा असर, अटके काम
डिजिटल डेस्क, नागपुर । महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद सरकार बनती नहीं दिख रही है। इसे लेकर अधिकारी व कर्मचारी वर्ग में चिंता है। पिछले अनेक महीने से महत्व के प्रशासनिक सेवा कार्य से संबंधित प्रश्न प्रलंबित हैं। इस पर निर्णय नहीं होने से सभी क्षेत्र में चिंता का वातावरण है। कर्मचारी प्रतीक्षा में है कि कब राजनीतिक अस्थिरता खत्म होगी और समस्याओं का समाधान निकलेगा। फिलहाल इसके संकेत मिलते दिख नहीं रहे है। कुछ बड़े अधिकारी इसलिए भी परेशान हैं कि कहीं सत्ता परिवर्तन होता है तो उन्हें इधर से उधर न जाना पड़े।
लंबित महत्वपूर्ण प्रशासकीय कार्य
के.पी. बक्शी समिति द्वारा सातवें वेतन आयोग अनुसार वेतन त्रुटि के खंड 2 रिपोर्ट 28 अगस्त को पेश की थी। उस पर मंत्रिमंडल में निर्णय होना अावश्यक है। सातवें वेतन आयोग की सिफारिश के तहत केंद्र सरकार अनुसार भत्ता मिलना, प्रत्येक विभाग का आकृतिबंध तय करना, रिक्त पद भरना, पदोन्नति में आरक्षण का प्रश्न, विविध योजना के लिए अनुदान के अलावा सेवानिवृत्ति की उम्र 60 करना, राज्य सरकारी विभागों में पांच दिन का सप्ताह करना, बाल संगोपन अवकाश दो वर्ष करने सहित 1 जनवरी व 1 जुलाई 2019 से महंगाई भत्ते में बढ़ोतरी आदि प्रश्न पर निर्णय लंबित हैं।
उम्मीद यह थी
राज्य में सितंबर में विधानसभा चुनाव की आचार संहिता लागू हुई थी। चुनाव से पहले राज्य में स्पष्ट एक तस्वीर थी कि महायुति सत्ता में आएगी। ऐसे में अपेक्षा थी कि चुनाव के बाद तुरंत सरकार का गठन होगा और प्रस्तावित कार्यों को गति मिलेगी। लेकिन चुनाव नतीजों के 18 दिन बाद भी इसके कोई संकेत मिलते नहीं दिख रहे हैं। इस कारण कई महत्वपूर्ण कार्य और योजनाओं को हरी झंडी मिलती नहीं दिख रही है।
मनपा कर्मचारियों की स्थिति समान
नागपुर महानगरपालिका के कर्मचारी-शिक्षकों की स्थिति भी समान है। जुलाई महीने में मनपा स्थायी समिति के सभापति प्रदीप पोहाणे ने मनपा कर्मचारी-शिक्षकों को सातवें वेतन अनुसार पगार देने की घोषणा की थी। अगस्त से यह लागू होना था। चुनाव से पहले मनपा वित्त विभाग ने राज्य सराकर की मंजूरी के लिए दो बार यह प्रस्ताव भेजा था। सरकार को सिर्फ अनुमति देना था, लेकिन इस पर कोई निर्णय नहीं हो पाया। इस बीच चुनावी आचार संहिता लग गई। अब सरकार गठन का पेंच अटकने से मनपा कर्मचारी-शिक्षकों की उम्मीदों पर पानी फिरता जा रहा है।
सरकार का जल्द गठन होगा, यही अपेक्षा
जनप्रतिनिधि और प्रशासन, लोकतंत्र के रथ के दो पहिये हैं। दोनों व्यवस्था एक-दूसरे की पूरक हैं। सरकार और जनप्रतिनिधयों द्वारा लिए गए निर्णय का क्रियान्वयन करना, अधिकारी व कर्मचारियों का कर्तव्य है। कर्मचारियों की अपेक्षा रहती है कि सरकार सेवा विषयक प्रश्नों पर निर्णय लेकर उसे हल करें। पहले विधानसभा चुनाव की आचार संहिता और अब राजनीतिक अस्थिरता के कारण सरकार की व्यवस्था अस्तित्व में नहीं है, जिस कारण निर्णय प्रक्रिया स्थगित है और कर्मचारियों में चिंता का वातावरण है। -डॉ. सोहन चवरे, जिलाध्यक्ष, कास्ट्राइब जिप कर्मचारी संगठन
Created On :   11 Nov 2019 12:42 PM IST