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अडानी द्वारा पावर दुरूपयोग की साजिश विफल - एमपी के साथ एपी सरकार को रखा गया अंधेरे में
- अप्रेजल कमेटी ने बताया किस कदर जनसुनवाई सहित अन्य रिपोर्ट का बनाया गया मजाक
- पैसे और एप्रोच के बल पर आंखों में धूल झोंकने का किया गया था प्रयास
डिजिटल डेस्क सिंगरौली वैढऩ। एमओईएफ की अप्रेजल कमेटी ने एपीएमडीसी की सिंगरौली में कोल प्रोजेक्ट की फाइल को लौटाकर अडानी द्वारा पावर के दुरूपयोग की साजिश को ही विफल नहीं किया बल्कि उसने बता दिया कि पैसे और एप्रोच का खेल मोदी राज में नहीं चलने वाला। कमेटी द्वारा जिन 15 बिन्दुओं पर रिपोर्ट देने कहा गया है, उससे यह साफ हो गया है कि अडानी ने केवल अप्रेजल कमेटी ही नहीं बल्कि केन्द्र की आंखों में धूल झोंकने का काम सीना ठोंककर किया था। कोल सेक्टर में काम कर चुके एक अधिकारी की मानें तो रिपोर्ट पढ़कर लग रहा है कि मानो अडानी को अपना प्रस्ताव देते समय इस बात की जरा सी भी शर्म नहीं थी कि वो आखिर क्या कागजात? किसके सम्मुख पेश करने जा रहे हैं। हद है, यह गल्तियां तो इस सेक्टर का कोई नौसिखिया भी नहीं करेगा। लेकिन, अडानी द्वारा रिपोर्ट को केन्द्र के पास भेजा जाना इस बात की ओर इशारा कर रहा है मानो उन्हें अपने संपर्कों और संबंधों का जरूरत से ज्यादा गुमान था।
उल्लेखनीय है कि सिंगरौली में सुलियरी का कोल ब्लॉक आंध्र प्रदेश मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन लिमिटेड यानी एपीएमडीसी को मिला था। एपीएमडीसी ने इस काम को खुद न कर माइंस डेवलमेंट ऑपरेटर यानी एमडीओ के रूप में अडानी को अप्वाइंट किया। जानकार बताते हैं कि सिंगरौली में कदम जमाने के लिए अडानी ने एपीएमडीसी को चुना था, यही कारण है कि पहले उसने एमडीओ की रेस जीती और इसके बाद जल्द प्रोजेक्ट शुरू करने जोर लगाया।
संदेह के दायरे में आ गए बड़े-बड़े
जानकार कहते हैं कि अडानी ने न केवल मध्यप्रदेश बल्कि आंध्र प्रदेश सरकार को भी अंधेरे में रखकर काम किया। जिस तरह से पर्यावरण क्लीयरेंस के लिए आधी अधूरी रिपोर्ट एमओईएफ के पास भेजी गई, उससे संदेह के दायरे में बड़े-बड़े भी आ गए हैं। जानकारों का कहना है कि अडानी का प्रस्ताव, सीधे अडानी के द्वारा केन्द्र को नहीं भेजा गया बल्कि यह सरकारी विभागों और अफसरों की टेबल से होकर गुजरा है। फिर लचर रिपोर्ट पर कोई सवालिया निशान क्यों नहीं लगाया गया? क्यों नहीं रिपोर्ट को सिंगरौली में ही रोका गया? या भोपाल से फाइल आगे कैसे बढ़ी? आंध्र प्रदेश के अफसर और एपीएमडीसी के जिम्मेदार क्यों खामोश रहकर तमाशा देखते रहे? क्या अडानी के पावर और रूतबे को देखते हुए सभी हाथ पर हाथ धरे सिंगरौली के लुटने का इंतजार कर रहे थे या अडानी के जरिए काम शुरू होने की स्थिति में लूट के भागीदार बनने का उन्हें भी बेसब्री से इंतजार था। ऐसे तमाम सवाल अब चीख-चीख कर जवाब मांग रहे हैं।
फिर से हो जनसुनवाई
सुलियरी कोल ब्लॉक की जनसुनवाई में भी सिर्फ औपचारिकता की गई। जानकारों का कहना है कि जनसुनवाई के लिए जिस तरह से हर प्रभावित तक संदेश पहुंचाया जाना था, न तो वैसा जतन किया गया और ना ही इसके लिए समय। आरोप है कि जनसुनवाई में अपने आदमी खड़े किए गए जो संबंधित क्षेत्र के भी नहीं थे। आदिवासियों सहित स्थानीय ग्रामीण, जो बातें रख रहे थे, उन्हें सिरे से अनुसना किया गया। लोगों के विरोध को भले ही अडानी अगस्त 19 में दबाने में सफल रह कर रिपोर्ट केन्द्र के लिए मूव कराने में सफल हो गया लेकिन अब जब एमओईएफ की अप्रेजल कमेटी ने सुलियरी के प्रस्ताव को बैरंग वापस कर दिया है तो नए सिरे से जनसुनवाई की मांग प्रबल होने लगी है। जनसुनवाई का विरोध करने वालों में देवसर विधायक सुभाष वर्मा, भाजपा जिलाध्यक्ष वीरेन्द्र गोयल, एडवोकेट आशीष पांडेय भी शामिल थे। उस समय इन लोगों ने जनसुनवाई करने वाले अफसरों को काले झंडे भी दिखाए थे। अब देखना है कि ये सभी विरोधकर्ता केन्द्र के रूख बाद क्या जिला प्रशासन और राज्य सरकार पर दबाव बनाने का प्रयास करेंगे? यदि लोग केन्द्र की रिपोर्ट को आधार बनाकर फिर से जनसुनवाई की मांग करते हैं तो कोई वजह नहीं कि प्रशासन को यह प्रक्रिया नए सिरे से शुरू करने मजबूर न होना पड़े।
Created On :   19 Feb 2020 2:21 PM IST