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कैदियों को है अपनी मेडिकल रिपोर्ट पाने का अधिकारः हाईकोर्ट
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत सभी कैदी अपना मेडिकल रिकॉर्ड पाने का अधिकार रखते हैं। यह उनका मूलभूत अधिकार है। इस रिकॉर्ड में मेडिकल टेस्ट रिपोर्ट व दवाओं का समावेश है। कोर्ट ने भीम कोरेगांव के एल्गार परिषद मामले में आरोपी सुधा भारद्वाज को उनकी मेडिकल रिकॉर्ड उपलब्ध कराने का निर्देश देते हुए उपरोक्त बात कही।भारद्वाज की बेटी ने अपनी मां की सेहत ठीक न होने के आधार पर अंतरिम जमानत दिए जाने की मांग को लेकर कोर्ट में जमानत आवेदन दायर किया है। शुक्रवार को न्यायमूर्ति एस जे काथावाला व न्यायमूर्ति एसपी तावड़े की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान आरोपीकी बेटी की ओर से पैरवी कर रहे अधिवक्ता युग चौधरी ने कहा कि भारद्वाज को उपयुक्त उपचार मिल चुका है। लेकिन उनका मेडिकल रिकॉर्ड नहीं मिला है। यह संविधान के प्रावधान के तहत कैदी का अधिकार है। यदि यह रिकॉर्ड मिल जाए तो काफी हद तक मुकदमेबाजी भी कम हो जाएगी।
वहीं राष्ट्रीय जांच एजेंसी की ओर से पैरवी कर रहे एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने जमानत का विरोध करते हुए कहा कि मेडिकल रिकॉर्ड व जेल राज्य सरकार का विषय है। इसलिए वे इस बारे में कुछ नहीं कहेंगे। मामले से जुड़े सभी पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि मेडिकल रिकॉर्ड पाना कैदी का अधिकार है। यह अधिकार हर कैदी का है। खंडपीठ ने कहा कि अस्पताल जाने के बाद हर कैदी अस्पताल के नियमों के तहत अपने घर वालो से भी फोन पर बात करने का हक रखता हैं। यह बात कहते हुए खंडपीठ ने याचिका को समाप्त कर दिया।
विप की राज्यपाल कोटे वाली सीटों पर क्यो नहीं हुई नियुक्ति: हाईकोर्ट
विधानपरिषद की 12 सीटों पर विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान देने वालो को मनोनीत करने के बारे में अब तक निर्णय क्यो नहीं किया गया है? 6 नवंबर 2020 को राज्य मंत्रिमंडल राज्यपाल से 12 नामों की सिफारिश की थी। अदालत ने पूछा कि राज्यपाल ने अब तक क्यो फैसला नहीं लिया ? शुक्रवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने यह सवाल किया। न्यायमूर्ति एस जे काथावाला व न्यायमूर्ति एसपी तावड़े की खंडपीठ ने दो सप्ताह के भीतर राज्य सरकार व अन्य प्रतिवादियों को इस बारे में जवाब देने का निर्देश दिया है। खंडपीठ ने याचिकाकर्ता को याचिका में राज्यपाल के सचिव को पक्षकार बनाने की छूट दी है। और याचिका पर सुनवाई 9 जून 2021 को रखी है। इस बारे में नाशिक निवासी रतन सोली ने याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि मंत्रिमंडल की इस विषय पर भेजी गई सिफारिश को 6 माह का समय बीत गया है लेकिन अब तक इस बारे में निर्णय नहीं किया गया है। इसलिए इस बारे में उचित निर्णय लेने का निर्देश दिया जाए। गौरतलब है कि संविधान के तहत राज्यपाल के पास कला, साहित्य, विज्ञान, समाज सेवा सहित विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान देने वालों 12 लोगों को विधान परिषद के लिए मनोनीत करने का अधिकार है। लेकिन सरकार व राज्यपाल के बीच इस बारे में गतिरोध कायम है और अभी तक कोई निर्णय नहीं हो सका है।
Created On :   21 May 2021 8:33 PM IST