जो प्रोफेसर मुंबई में पढ़ा रहे थे, उसी समय 50 करोड़ के पीओए पर हुए उनके फर्जी हस्ताक्षर

Professor who was teaching in Mumbai, at the same time his forged signature on the PoA of 50 crores
जो प्रोफेसर मुंबई में पढ़ा रहे थे, उसी समय 50 करोड़ के पीओए पर हुए उनके फर्जी हस्ताक्षर
जमीन मामले में नया खुलासा जो प्रोफेसर मुंबई में पढ़ा रहे थे, उसी समय 50 करोड़ के पीओए पर हुए उनके फर्जी हस्ताक्षर

डिजिटल डेस्क, नागपुर। मानेवाड़ा स्थित स्वराज नगर की 50 करोड़ की जमीन को लेकर आंबेकर परिवार के अनुसार फर्जी दस्तावेजों से हड़पने के आरोप में अब एक-एक कर नए खुलासे हो रहे हैं। अजनी थाने में चल रही पुलिस की जांच में भी हैरान करने वाली जानकारी मिल रही है। जिस पावर ऑफ अटॉर्नी पर आंबेकर के चार सदस्यों के हस्ताक्षर हैं और जिसके आधार पर करीब 50 करोड़ की जमीन ली गई, उसमें से तीन सदस्य पहले ही अपने फर्जी हस्ताक्षर की शिकायत पुलिस में कर चुके हैं। इसमें से एक प्रकाश आंबेकर (मुंबई के लाला लाजपत राय कॉलेज में प्रोफेसर) 18 अगस्त 1998 को अपने कॉलेज में पढ़ा रहे थे, जबकि उसी दिन उनके फर्जी हस्ताक्षर पावर ऑफ अटॉर्नी में कर दिए गए। उनके पास इसके पूरे सबूत भी हैं। जो साबित करते हैं, सब गोलमाल है। वहीं, दूसरी तरफ आंबेकर परिवार शुक्रवार को उस समय चौंक गया, जब उक्त जमीन का एक और कथित दस्तावेज सामने आया, जो पावर ऑफ अटर्नी (पीओए) आंबेकर परिवार ने कैंसल करवा दी थी। बिल्डर के वकील का दावा है कि उस कैंसल पीओए को वापस से आंबेकर परिवार की एक सदस्य शांताबाई ने उसे रिवोकेशन (कैंसल को कैंसल) करवा दी थी। आंबेकर परिवार ने इसे पूरी तरह फर्जी बताया, जिसके आधार पर करीब 200 से अधिक लोगों काे उक्त जमीन बेच दी गई और करीब सात एकड़ की बची जमीन बेचने की तैयारी है। 

फर्जी हस्ताक्षर का खुलासा हुआ, तो फिर फर्जी हस्ताक्षर कर दूसरी पावर ऑफ अटॉर्नी तैयार कर ली

बिल्डर विजय डांगरे की ओर से मानेवाड़ा के 14 एकड़ खेत पर मालिकाना अधिकार होने का दावा हो रहा है। यह मालिकाना अधिकार 18 अगस्त 1998 में दुय्यम निबंधक कार्यालय में रजिस्टर किया गया है। इसमें से शांताबाई, प्रकाश और वामन ने अपने हस्ताक्षर होने से इनकार किया और बाकायदा इसकी शिकायत थाने में भी की थी। पता जब परिवार को चला तो विलास आंबेकर द्वारा दी गई पावर ऑफ अटॉर्नी को  18 अक्टूबर 2002 को दुय्यम निबंधक काार्यालय में रद्द कराया गया। अब पुलिस के पास इसके मालिकाना हक को लेकर जांच चल रही है। इसी दौरान शुक्रवार को बिल्डर के वकील ने एक और पावर ऑफ अटॉर्नी बताई, जिसमें कैंसल पावर को शांताबाई ने कैंसल करवा दिया था, जिसके कारण उन्हें जमीन का हक मिल गया। इस बात को आंबेकर परिवार ने पूरी तरह खारिज कर इसे फर्जी दस्तावेज बताया। उनका कहना है कि इसमें वही फर्जी हस्ताक्षर हैं, जिसमें हैंडराइटिंग की रिपोर्ट में पहले ही फर्जी बताया गया था। दूसरी ओर बिल के अनुसार, शांताबाई को वैसे भी जमीन बेचने का अधिकार नहीं था। ऐसे में उक्त दस्तावेज भी संदेह के घेरे में है। परिवार के सदस्यों के बीच जब शुक्रवार को यह नया कथित दस्तावेज आया तो सभी चौंक गए।

प्रकाश वामन आंबेकर के मुताबिक18 अगस्त 1998 को 14 एकड़ जमीन को विकसित करने के अधिकार विजय डांगरे को देने की पावर ऑफ अटॉर्नी बनाई गई है, इस दिन मैं अपने कॉलेज में अध्यापन कर रहा था। इस आशय के दस्तावेज और कॉलेज व्यवस्थापन के प्रमाणित सबूत भी मौजूद हैं। ऐसे में नागपुर में उपस्थित रहकर पावर ऑफ अटॉर्नी पर हस्ताक्षर करने का सवाल ही नहीं उठता है। मेरे फर्जी हस्ताक्षर होने का जब पता चला तो रजिस्ट्रार कार्यालय में आपत्ति ली। वकील के माध्यम से नोटिस भी भेजा। इसके बाद परिवार की सहमति से हमने पावर ऑफ अटॉर्नी को रद्द भी करवा दिया। इसके बार हमारे परिवार से किसी ने भी कोई भी पावर ऑफ अटॉर्नी बिल्डर डांगरे को नहीं दी। जो दस्तावेज शुक्रवार को हमारे  सामने आया, वह पूरी तरह फर्जी हैं। 
 

 

Created On :   10 Oct 2021 5:43 PM IST

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