पैसा खाऊ पीएसआई, गिरफ्तार नहीं करने के बदले 50 हजार रुपए मांगे

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नागपुर पैसा खाऊ पीएसआई, गिरफ्तार नहीं करने के बदले 50 हजार रुपए मांगे

डिजिटल डेस्क, नागपुर. मध्य नागपुर में एक थाने के थानेदार, पीएसआई और हवलदार की चर्चा इन दिनों खूब हो रही है। थाने के पीएसआई ने एक मामूली से प्रकरण को बड़ा बताकर चार युवकों को गिरफ्तार नहीं करने के बदले 50 हजार रुपए मांगे। पैसा खाऊ इस पीएसआई ने 40 हजार रुपए लेने के बाद धारा 324 में चारों युवकों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया। चारों युवकों को जमानत लेनी पड़ी। इस बीच एक हवलदार को उन युवकों पर दया आ गई या यूं कह लें कि उसे शायद हिस्सा नहीं मिला, तो उसने चारों युवकों को पैसे वापस मिलने की मुफ्त में तरकीब बता दी, जबकि कुछ पुलिस वाले किसी को मुफ्त में कुछ भी नहीं बताते। हवलदार की बात मानकर चारों युवक पुलिस आयुक्तालय पहुंचे और पुलिस आयुक्त से आपबीती बयां की। फिर क्या था, सीपी ने थानेदार, थाने के डीबी स्क्वॉड और हवलदार को बुलाकर लानत-मलानत की और 40 हजार रुपए वापस करवाए।

सफलता की बरसी

दिन विशेष के आयोजन की अनोखी पहल। 23 मार्च। शहीद दिन। जनाब के लिए सफलता का दिन। परिजन, मित्रजन व नातेदार, रिश्तेदारों के साथ घर पर ही सफलता का उत्सव। नारा मार्ग निवासी मोरेश्वर मुटकुरे के लिए 23 मार्च विशेष दिन रहा। 1973 की इसी तिथि को उन्होंने घर-गांव छोड़ा था। 18 की आयु। सफलता के मार्ग पर अबोध कदम। कक्षा 4 के बाद कापी-पुस्तक से भी नाता तोड़ लिया था। शहर में सफलता के स्पर्धकों का कारवां सा चलता है। मोरेश्वर के मन में कुछ कर गुजरने की चाह हिलोरे मार रही थी। कर्मपथ पर पहला कदम पीठ पर बोरियों के बोझ के साथ बढ़ा। 9 वर्ष बाद पढ़ने भी लगे। कारीगरी का गुण बढ़ाने आईटीआई कर ली। गणित में पकड़ बढ़ाने बी-कॉम में दाखिला लिया। प्रदूषण, रसायन उत्पादन, कूलर निर्माण के क्षेत्र में कुशलता पाई। मुंबई, इंदौर की कंपनियों में नौकरियां कीं। बाद में बुटीबोरी क्षेत्र में कल-कारखाने की नींव रख दी। अभियांत्रिकी के क्षेत्र में पहचान बढ़ाई। सफलता के साथ संपन्नता आई। संबंधों का दायरा बढ़ता गया। लिहाजा सफलता को स्मरण करने लगे। इस वर्ष मुटकुरे ने सफलता की 50वीं बरसी बकायदा आमंत्रण पत्र देकर मनाई। सबने कहा-हैव-ए-हैपी सक्सेस-डे।

फलक लगाने से काम नहीं चलेगा

शहर में आयोजित सी-20 की बैठक के लिए किए गए सौंदर्यीकरण का 95 प्रतिशत हिस्सा कायम रखा जाएगा, ऐसा दावा किया गया है। इसकी जिम्मेदारी स्थानीय संस्थाओं या प्राधिकरण को दी जाने वाली है। मनपा ने कुछ साल पहले शहर के कुछ चौराहों और पुतले के परिसर का सौंदर्यीकरण किया है। बाद में स्थानीय संस्थाओं को पालकत्व दिया गया। अधिकतर संस्थाओं ने पालकत्व लेकर अपने नाम के फलक लगा दिए। बावजूद अधिकतर स्थान बदहाली के शिकार हो चुके हैं। संबंधित संस्थाएं जिम्मेदारी निभाने में कितनी खरी उतरी हैं, यह देखने के लिए कोई टीम नहीं होती। कभी पूछो, तो जवाब मिलता है कि यह जिम्मेदारी प्रशासन की नहीं, पालकत्व लेने वाली संस्था की है। सी-20 के सौंदर्यीकरण के मामले में ऐसा नहीं होगा, इसकी उम्मीद की जा सकती है। उम्मीद तब खरी होगी, जब प्रशासन द्वारा संस्थाओं की जवाबदेही तय करने के साथ निगरानी भी की जाएगी, क्योंकि सिर्फ फलक लगाने से काम नहीं चलेगा।

फंस गए काम करके

सरकार की माली हालत ठीक नहीं है। कोरोना के पहले आैर कोरोनाकाल में जिन ठेकेदारों ने इलेक्ट्रिक, फर्नीचर, गार्डन, पेंटिंग व दुरुस्ती और निर्माणकार्य का काम किया, वे अब तक निधि के इंतजार में हैं। पिछले दो साल से इन ठेकेदारों को टुकड़ों में निधि मिल रही है। कभी 10 फीसदी, तो कभी 20 फीसदी निधि ही मिल रही हैै, लेकिन अभी तक इनका पूरा भुगतान नहीं हुआ है। सरकार ने हाल ही में 24 करोड़ की निधि जारी की। इसमें से कुछ निधि मिल जाए, इसके लिए ठेकेदार मशक्कत कर रहे हैं। मार्च एंडिंग होने से लोक कर्म विभाग के अधिकारी पूरी मुस्तैदी से काम में लगे हुए हैं। ठेकेदार अधिकारी के पास आकर अपना रोना रो रहे हैं। कुछ ठेकेदार काम करके फंस गए का रोना रो रहे हैं।

साहब लंच ब्रेक पर गए हैं

लंच ब्रेक के समय अधिकारियों के लिए आराम का समय होता है। कुछ अधिकारी लंच ब्रेक के नाम घर चले जाते हैं और आराम फरमाते हैं। कुछ तो आ जाते हैं, कुछ लौटते ही नहीं हैं। केबिन के बाहर बैठा चपरासी शाम 5 बजे तक कहते नहीं थकता कि साहब लंच ब्रेक पर गए हैं। रेलवे व वन विभाग के कार्यालय में कुछ ऐसा ही चल रहा है। यहां कुछ अधिकारी लंच बॉक्स नहीं लाते हैं, लेकिन लंच ब्रेक के नाम पर 3 बजे केबिन से बाहर निकलते हैं और शासकीय वाहन से वह घर चले जाते हैं। फिर आराम करने के बाद शाम 5 बजे ऑफिस बंद होने के समय वापस आते हैं। कुछ फील्ड में जाने की बात कहकर वापस नहीं लौटते हैं। इनसे मुलाकात करने वाले बस इंतजार करते रहते हैं। लोगों का कहना है कि बहुत कम अधिकारी ही लंच ब्रेक के बाद मिलते हैं। हालांकि कुछ अधिकारी ईमानदारी से कार्यालय में मौजूद रहते हैं।


 

Created On :   27 March 2023 7:16 PM IST

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