- Home
- /
- राज्य
- /
- महाराष्ट्र
- /
- नागपुर
- /
- अपनों के बीच भी पराए मनोरोगी,...
अपनों के बीच भी पराए मनोरोगी, संपत्ति के लालच में परिजन पहचानने से कर देते हैं इनकार
डिजिटल डेस्क, नागपुर। सड़कों पर मिलने वाले अधिकांश मनोरोगी घर पहुंचाने के बाद एक सप्ताह बाद फिर से लापता हो जाते हैं। अधिकतर मामले मे मनोरोगियों काे संपत्ति से बेदखल करने का मामला होता है। नागपुर जिले में हर महीने 50 से अधिक मनोरोगी मिलते हैं। इनमें से आधे लोगों के साथ ऐसा होता है। इन लोगों का पुनर्वसन करने वाली संस्थाओं द्वारा जांच करने पर इसका खुलासा हुआ है।
केस 1 - अमित (बदला हुआ नाम) काेराड़ी रोड के पास रहता है। कुछ महीने पहले विक्षिप्त अवस्था में एक संस्था को मिला था। संस्था संचालकों ने उसे अपने केंद्र में लाया और उसका उपचार किया। उसके मां-बाप का देहांत हो चुका था, इसलिए संस्था ने उसे उसकी विवाहित बहन के घर छोड़ा था। एक सप्ताह बाद वह फिर से विक्षिप्त अवस्था में संस्था को मिला। पता चला कि बहनोई ने उसे भगा दिया था। बहन भी मां-बाप की संपत्ति के लालच में भाई काे पागल ही बनाए रखना चाहती थी।
केस 2- बेलतरोड़ी का युवा मनीष (बदला हुआ नाम) हालात के कारण मनोरोगी हो गया। शहर की एक संस्था को वेल्लुर में होने की जानकारी मिली। इस युवक की बहन झांसी मंे होने का पता संस्था को चला। संस्था ने उस बहन का नाम और नंबर पता लगाया। उसे फोन कर बताया कि उसका भाई मनोरोगी मिला है। उसे ले जाए। बहन ने जवाब दिया कि वह पहचानती नहीं। जब दोबारा पुलिस बनकर फोन किया गया, तो बहन अपने भाई को पहचानने लगी। पता चला कि मां-बाप की संपत्ति हड़पने के चक्कर मंे भाई के प्रति बहन की भावना बदल गई थी।
केस 3- कलमेश्वर में मिले विशाल (बदला हुआ नाम) मनोरोगी का पुनर्वसन चंद्रपुर रोड पर स्थित जाम के आश्रम में किया गया था। इस मनोरोगी की एक विवाहित बहन थी। बहन को कहीं से पता चला कि उसका भाई जाम के आश्रम में है। बहन उसे लेने पहुंची। आश्रमवालों ने बहन को भाई सौंप दिया। बहन भाई को घर ले गई। इसके बाद भाई से अलग-अलग दस्तावेजाें पर हस्ताक्षर ले लिए। दो दिन बाद बहन और दामाद ने विशाल को उसी आश्रम में छोड़ दिया। संस्था ने जब जांच की तो संपत्ति के लालच में िवशाल के साथ धोखा करने की बात सामने आई।
कार्यकर्ता करते हैं मदद
जिले में दो स्वयंसेवी संस्थाएं मनोरोगी, निराधार, निर्धन लोगों के लिए काम करती हैं। यह संस्थाएं सड़कों पर दिखाई देने वाले लोगों का पुनर्वसन करने में मदद करती हैं। एक संस्था बुटीबोरी से और दूसरी सावनेर की है। दोनों संस्थाओं के पास फोन कॉल पहुंचते ही वहां के कार्यकर्ता मौके पर पहुंचकर संबंधित व्यक्ति की मदद करते हैं। बताया जाता है कि हर महीने 50 से अधिक लोग मिलते हैं। इनमें से 25 मनोरोगी होते हैं। 10 लोग लापता हो चुके हाेते हैं। वहीं 15 लाेग निराधार होते हैं। लापता लोगों के परिवार का पता लगाकर उन्हें घर तक पहुंचा दिया जाता है। 25 में से 10 मनोराेगी अपना नाम-पता नहीं बता पाते हैं, इसलिए उन्हें प्रादेशिक मनोचिकित्सालय में रखा जाता है। अन्य 15 मनोरोगियों के परिवार का पता चलने पर उन्हें उनके घर ले जाकर परिजनों का सौंपा जाता है।
मजबूरी बन जाती है
हितेश दादा बंसोड़, संस्थापक- हितज्योति आधार फाउंडेशन के मुताबिक मनोरोगियों का पुनर्वसन होने के बाद भी घर छोड़कर जाना उनकी मजबूरी बन जाती है। रिश्तेदार या परिजन उनकी संपत्ति हड़पने के चक्कर में उन्हें सामान्य जीवन नहीं जीने देते। इसमें पुलिस भी कोई खास भूमिका नहीं निभाती। ऐसे अनेक मामले न्यायालय में विचाराधीन हैं, इसलिए ऐसे मामलों के लिए जिला स्तर पर समिति होनी चाहिए।
Created On :   5 April 2022 6:49 PM IST