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दत्तक पुत्र होने का दावा करनेवाले बेटे की अनुकंपा नियुक्ति का निर्देश देने से इनकार
डिजिटल डेस्क, मुंबई, कृष्णा शुक्ला। बांबे हाईकोर्ट ने एक महिला सफाई रेल कर्मचारी का दत्तक पुत्र होने का दावा करनेवाले बेटे की अनुकंपा नियुक्ति का निर्देश देने से इनकार कर दिया है। हाईकोर्ट ने साफ किया है कि अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार विरासत की संपत्ति नहीं है। यह नियुक्ति घर में कमानेवाले के न रहने की स्थिति में वित्तीय संकट से उबरने का जरिया है। मामला खुद को महिला साफई रेलकर्मी का गोद लिया हुआ बेटा बतानेवाले राज गायकवाड से जुड़ा है। जिन्होंने अपनी मां के निधन के बाद मध्य रेलवे के पास अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया था। किंतु मध्य रेलवे के सक्षम प्राधिकरण ने यह कह कर गायकवाड के आवेदन पर विचार करने से मना कर दिया था कि उनकी मां के सेवा से जुड़े रिकार्ड में उनके दत्तक पुत्र होने का उल्लेख नहीं है। उनकी मां ने अपने सर्विस रिकार्ड में किसी आश्रित का उल्लेख नहीं किया है। इसके साथ ही जब आपको(गायकवाड) को गोद लेनेवाली मां जीवित थी तो आप अपने जैविक माता-पिता के साथ रह रहे थे। आपने(गायकवाड) आपको को गोद लेनेवाली अपनी मां की सेवा भी नहीं की है। एक अधिकारी की रिपोर्ट में इसका जिक्र है।
रेलवे के सक्षम प्राधिकरण के इस फैसले के खिलाफ गायकवाड ने केंद्रीय प्रशासकीय न्यायाधिकरण(कैट) में चुनौती दी थी। कैट ने गायकवाड के अनुकंपा नियुक्ति के आग्रह को अस्वीकार कर दिया था। क्योंकि गायकवाड को गोद लेनेवाली मां की रेलवे में नियुक्ति उनके पति के निधन के बाद अनुकंपा नियुक्ति पर की गई थी। कैट के अनुसार सिर्फ एक बार की मृत कर्मचारी के करीबी परिजन को अनुकंपा नियुक्ति दी जा सकती है। हालांकि गायकवाड को अपनी मां के सेवा से जुड़े लाभ उत्तराधिकार प्रमाणपत्र के आधार पर मिल चुके थे।
16 मार्च 2021 को कैट ने जब गायकवाड के आवेदन को खारिज कर दिया तो गायकवाड ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति अभय अहूजा की खंडपीठ के सामने गायकवाड की याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान गायकवाड की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने कहा कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो अनुकंपा नियुक्ति पानेवाले कर्मचारी के बेटे को अनुकंपा नियुक्ति हासिल करने से रोकता हो। इसलिए कैट की ओर से इस मामले में दिया गया निष्कर्ष खामीपूर्ण है। उन्होंने कहा कि मेरे मुवक्किल का पालन पोषण उसकी गोद लेनेवाली मां ने किया है। वह उनके साथ रहा है। इसलिए इस मामले को दोबारा कैट के पास विचार करने के लिए भेजा जाए। किंतु खंडपीठ ने ऐसा करने से मना करते हुए कहा कि कानून में तय है कि सरकारी नौकरी कोई विरासत नहीं है। अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार विरासत की संपत्ति नहीं है। अनुकंपा नियुक्ति मुख्य रुप से घर में कमानेवाले व्यक्ति के न रहने की स्थिति में परिजनों के लिए वित्तीय संकट से उबरने का जरिया है। अनुकंपा नियुक्ति एक अपवादजनक अवधारणा है। इस मामले में हमारे सामने ऐसा कोई प्रमाण नहीं है कि यदि याचिकाकर्ता को अनुकंपा नियुक्ति नहीं मिली तो वह जीवित नही रह पाएगा। याचिकाकर्ता के जैविक पिता भी रेलवे में कार्यरत है। याचिकाककर्ता ने कैट के आदेश जारी होने के 18 महीने बाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। इन तमाम पहलूओं व तथ्यों पर विचार करने के बाद खंडपीठ ने मामले से जुड़ी याचिका को खारिज कर दिया।
Created On :   11 Dec 2022 10:17 PM IST