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यौन उत्पीड़न व छेड़छाड़ मामले को लेकर पुलिस के पास जाने में दिखाई जाती है अनिच्छा
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा है कि नाबालिग के यौन उत्पीड़न को लेकर पुलिस के पास दर्ज कराए गए मामले पर सिर्फ इसलिए संदेह नहीं किया जा सकता है क्योंकि पीड़ित लड़की के घरवालों की ओर से शिकायत दर्ज कराने में दो दिन की देरी हुई है। यह बात कहते हुए हाईकोर्ट ने नाबालिग का यौन उत्पीड़न करने से जुडे मामले के एक आरोपी को अग्रिम जमानत देने से इनकार कर दिया। न्यायमूर्ति एनआर बोरकर ने कहा कि नाबालिग के यौन उत्पीड़न व छेड़छाड से जुड़े मामले को लेकर पीड़िता के घरवालों की ओर से पुलिस के पास जाने में अक्सर हिचकिचाहट अथवा अनिच्छा दिखाई जाती है। ऐसे में इस तरह के मामले में पीड़िता की ओर से पुलिस के पास मामला दर्ज कराने में दो दिन का विलंब हुआ है। इसलिए इस पर संदेह नहीं दर्शाया जा सकता है। पुलिस ने आरोपी के खिलाफ इस मामले को लेकर भारतीय दंड संहिता की धारा 354,506 पाक्सों कानून की धारा 7 व 6 के तहत पुणे के दत्तवाडी पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की है। मामले में गिरफ्तारी की आशंका को देखते हुए आरोपी आर.के कुंभार ने हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए आवेदन दायर किया था। पीड़ित बच्ची की मां के मुताबिक दुकान में व्यस्ततात के चलते उसने अपनी बेटी को आरोपी के साथ कुछ सामान लाने के लिए भेजा था। इस दौरान आरोपी ने बच्ची का यौन उत्पीडन किया है। वहीं आरोपी के वकील ने कहा कि उसे झूठे मामले में फंसाया गया है। इस मामले में आरोपी को हिरासत में लेने का कोई मतलब नहीं है। क्योंकि उसके पास से कुछ बरामद नहीं करना है। मामले को लेकर दो दिन बात शिकायत दर्ज कराई गई है। वहीं सरकारी वकील ने कहा कि यह यौन उत्पीड़न का गंभीर मामला है। इसलिए आरोपी को जमानत न दी जाए। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने आरोपी के जमानत आवेदन को खारिज कर दिया।
हाईकोर्ट आने के बाद अविवाहित महिला को मिली राहत, गर्भपात करने को तैयार हुआ सरकारी अस्पताल
अविवाहित महिला के बांबे हाईकोर्ट आने के बाद सरकारी अस्पताल उसके भ्रूण का गर्भपात करने को तैयार हो गया है। इससे पहले मुंबई के वाडिया व सरकारी अस्पताल जेजे ने महिला का सिर्फ इसलिए गर्भपात करने से मना कर दिया था क्योंकि वह अविवाहित है और कानून इसकी इजाजत नहीं देता है। इसके बाद 24 वर्षीय अविवाहित महिला ने अधिवक्ता अदिति सक्सेना के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को आधार पर बनाकर हाईकोर्ट में याचिका दायर की। याचिका में महिला ने 23 सप्ताह के भ्रूण गर्भपात की अनुमति दिए जाने का आग्रह किया था। याचिका में कामकाजी महिला ने दावा किया था कि सहमति से बने संबंध व गर्भ निरोधक उपाय की विफलता के चलते वह गर्भवती हुई है। याचिका के अनुसार मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम 2021 के प्रावधानों के तहत 24 सप्ताह तक के भ्रूण की के गर्भपात की इजाजत है। इसके अलावा इस अधिनियम की धारा 3(2) में साल 2021 में किए गए संसोधन के बाद वह गर्भपात की अनुमति पाने का हक रखती है। । ऐसे में यदि उसे बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर किया जाएगा तो इसके चलते उसे मानसिक पीड़ा का समाना करना पड़ेगा। समाजिक स्तर पर भी उसे परेशानी का सामना करना पड़ेगा। याचिका में महिला ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों अपने एक फैसले में साफ किया है कि एक महिला का अपने शरीर पर पूरा अधिकार है। ऐसे में याचिकाकर्ता(महिला) के भ्रूण का गर्भपात करने से इनकार किया जाना उसे संविधान के अनुच्छेद 14 व 21 के तहत मिले उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। शुक्रवार को अवकाशकालीन न्यायमूर्ति एमएस कर्णिक व न्यायमूर्ति मिलिंड साठे की खंडपीठ के सामने यह याचिका सुनवाई के लिए आयी। इस दौरान सरकारी वकील अभय पटकी ने कहा कि याचिकाककर्ता को सरकारी जेजे अस्पताल में भर्ती कर लिया गया है और गर्भपात की प्रक्रिया की शुरुआत कर दी गई है। इसके बाद खंडपीठ ने कहा कि याचिका में उठाए गए दूसरे कानूनी मुद्दे पर दो जनवरी 2023 को सुनवाई करेंगे। इससे पहले हाईकोर्ट ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अविवाहित महिला 24 सप्ताह तक के भ्रूण का गर्भपात कराने का हक रखती है। यह बात सरकारी वकील अस्पताल को बताए।
Created On :   30 Dec 2022 8:51 PM IST