हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी : सिर्फ कागजों पर अच्छी लगती हैं सरकारी योजनाएं

District Mineral Fund is not being used in Gadchiroli!
गड़चिरोली में जिला खनिज निधि का नहीं हो रहा कोई उपयाेग!
हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी : सिर्फ कागजों पर अच्छी लगती हैं सरकारी योजनाएं

डिजिटल डेस्क, मुंबई। बांबे हाईकोर्ट ने कहा कि सरकार की योजनाएं कागज में तो बहुत अच्छी लगती है लेकिन जमीनी स्तर पर इनका अमल बड़ी समस्या है। शुक्रवार को हाईकोर्ट ने सरकार की मिशन मेलघाट योजना पर गौर करने के बाद यह तल्ख टिप्पणी की है। सरकार ने मेलघाट व अन्य आदिवासी इलाकों में कुपोषण से होनेवाली मौत व आदिवासियों के बेहतर स्वास्थ्य सेवा तथा शिक्षा प्रदान करने के लिए गुरुवार को मिशन मेलघाट योजना की शुरुआत की है। 

राज्य के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी ने मुख्य न्यायाधीश नरेश पाटील व न्यायमूर्ति एनएम जामदार की खंडपीठ के सामने मिशन मेलघाट योजना का प्रारुप पेश किया। इस पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि योजनाएं कागज पर तो बहुत अच्छी दिखती हैं पर इनका अमल एक बड़ी समस्या है। लिहाजा सरकार योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए एक कमेटी बनाए। कमेटी यह आश्वस्त करे की योजनाएं प्रभावी तरीके से लागू हो रही हैं, साथ ही योजनाओं के अमल का रिकार्ड भी रखे। ताकि जब कोई कहे की योजना लागू नहीं हुई है तो सरकार रिकार्ड दिखाकर योजना के अमल के बारे में जानकारी दे सके। हाईकोर्ट ने सरकार को योजनाओं के अमल के लिए दो से तीन सप्ताह के भीतर कमेटी गठित करने का निर्देश दिया है। 

खंडपीठ के सामने मेलघाट व अन्य आदिवासी इलाकों में कुपोषण से होनेवाली मौत व इन इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव को लेकर दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। इस दौरान राज्य के महाधिवक्ता श्री कुंभकोणी ने कहा कि राज्य के स्वास्थ्य मंत्री व कई आला अधिकारियों ने खुद संवेदनशील इलाकों का दौरान किया है और कई निर्देश जारी किए है। कई विभागों के बीच समन्वय स्थापित करके मिशन मेलघाट योजना बनाई गई है। जिसके तहत बाल मृत्यु रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए गए हैं। 

इससे पहले याचिकाकर्ता बंडु साने ने कहा कि सरकार की योजनाएं जमानी स्तर पर लागू ही नहीं हो पाती। सरकार के आदिवासी व स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी समन्वय के साथ काम नहीं करते। मेलघाट के मुद्दे के लिए बनाई गई कोर कमेटी की बैठकें नहीं हो रही हैं। सरकार ने डाक्टरों के एक साल काम करने के बांड को भी रद्द कर दिया है। इस पर राज्य के महाधिवक्ता ने कहा कि आदिवासी इलाकों में डाक्टरों के काम करने के बांड को रद्द नहीं किया गया है। पहले एमबीबीएस के बाद डाक्टरों को एक साल आदिवासी इलाकों में काम करना पड़ता था। अब स्नातकोत्तर की पढाई  पूरी होने के बाद दो साल काम करना पड़ेगा। सरकार ने यह कदम डाक्टरों की पढाई में व्यवधान को रोकने के लिए उठाया है।  

Created On :   8 March 2019 8:09 PM IST

और पढ़ेंकम पढ़ें
Next Story