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रिसर्च में अटका पीला पलाश, निधि मंजूर होने के बावजूद प्रोसेस में हो रही लेटलतीफी
डिजिटल डेस्क, गोंदिया। पलाश के फूलों का रंग वैसे तो लाल होता है। जिसके कारण इसे जंगल की शोभा माना जाता है। लेकिन उन में भी बेहद दुर्लभ प्रजाति के पीले व सफेद पलाश को देखने के बाद उस तरह के वृक्षों को संपूर्ण जिले में लगाने की संकल्पना तत्कालीन जिलाधिकारी अभिमन्यु काले ने की। इसके लिए उन्होंने जिला नियोजन समिति की सभा में नाविनतापूर्ण योजनाओं के तहत दुर्लभ प्रजाति के पलाश व अन्य वृक्षों के लिए 20 लाख की निधि को मंजूरी भी दे दी। लेकिन पीले-सफेद पलाश के पेड़ लगाने के बाद उन पर पीले व सफेद फूल उगेंगे या नहीं यह भरोसा वनविभाग को नहीं होने से इन पेड़ों पर अनुसंधान के लिए वनविभाग ने उन्हें प्रयोगशाला में भेजा है। इस प्रोसेस में हो रही लेटलतीफी से संकल्पना ठंडे बस्ते में चले जाने का संदेह होने लगा है।
बता दें कि गोंदिया जिले में पलाश के पेड़ों की संख्या अन्य जिलों से अधिक है। वैसे तो पलाश के पेड़ों पर लाल फूल देखे जाते हैं। लेकिन गोंदिया जिले में कुछ स्थानों पर पीले व सफेद रंग के पलाश के पेड़ भी दिखाई दे रहे हैं। यह प्रजाति अति दुर्लभ होने से इसके संवर्धन हेतु तत्कालीन जिलाधिकारी अभिमन्यु काले ने जिले में पीले व सफेद पलाश के संवर्धन की संकल्पना रखी। इसके लिए जिला नियोजन समिति में नाविनतापूर्ण योजना के तहत 20 लाख की निधि को मंजूरी दी है।
जिलाधिकारी कार्यालय के सामने से गुजरने वाले बायपास रिंगरोड के दोनों बगल में पलाश के पौधों को रोपा जाना था। लेकिन वनविभाग, इन सफेद व पीले रंग के फूलों को लेकर असमंजस में है।वन विभाग आश्वस्त नहीं हो पा रहा कि इन पौधों को रोपने के बाद इसमें से उसी रंग के फूल निकलेंगे।वनविभाग ने इस प्रजाति के पौधों पर रिसर्च करने के लिए महाबीज अकोला व जबलपुर में स्थित ट्रापिकल फॉरेस्ट इंस्टीट्यूट बायो टेक्नोलोजी डिवीजन से चर्चा कर इन पेड़ों पर रिसर्च करने के लिए कहा है।
उपरोक्त प्रयोगशाला के विशेषज्ञों ने भी चर्चा के दौरान वनविभाग के अधिकारियों को बताया कि लाखों पेड़ों में कुछ ही पेड़ पर इस तरह के फूल उग सकते हैं। इस लिए सौ प्रतिशत गारंटी नहीं दी जा सकती। इसलिए यह कहा जा रहा है कि रिसर्च प्रक्रिया में पीला व सफेद पलाश की संकल्पना अटक गई है।
अनुसंधान के लिए भेजा है
नाविनतम योजना के तहत पीला व सफेद पलाश व अन्य वृक्षों की जैविक तंत्रकनीकी के तहत वृद्धि करने के लिए 20 लाख की निधि वनविभाग को प्राप्त हुई है। लेकिन पीला व सफेद पलाश के पौधे लगाने के बाद उस पर इसी रंग के फूल उगेंगे इसकी गारंटी नहीं है। इसलिए उपरोक्त पलाश पर रिसर्च करने के लिए अकोला महाबीज व ट्रापिकल फॉरेस्ट इंस्टिट्यूट बायो टेक्नोलाजी डिविजन के विशेषज्ञों से चर्चा कर संशोधन करने के लिए उनकी प्रयोग शाला में भेजा गया है।
एस. युवराज, उपवन संरक्षक वनविभाग गोंदिया
Created On :   27 July 2018 2:13 PM IST