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विवाह खत्म होने के बाद ओसीआई कार्ड वापस मांगना सही, महिला की याचिका खारिज
डिजिटल डेस्क, मुंबई। बॉम्बे हाईकोर्ट ने विवाह के खत्म होने के बाद विदेशी महिला को जारी किए गए ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया कार्ड (ओसीआई कार्ड) वापस मांगने को सही माना है। इसके साथ ही विदेशी महिला को राहत देने से इंकार कर दिया है। नियमानुसार ओसीआई कार्ड नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत भरतीय नागरिक से विवाह करनेवाले विदेशी मूल के नागरिक को शादी के दो साल बाद जारी किया जाता है। इससे विदेशी मूल का व्यक्ति अपने देश का नागरिक बना रहता है और उसे भारत में आने जाने को लेकर वीजा से जुडी साहूलियत मिलती है। मामला भारतीय नागरिक से विवाह करनेवाली एक विदेशी महिला से जुड़ा है। पारिवारिक अदालत ने पति की ओर दायर की गई याचिका पर सुनवाई के बाद इस महिला के विवाह को समाप्त कर दिया है। इसलिए केंद्रीय गृह मंत्रालय (विदेशी विभाग) ने विदेशी महिला को अपना ओसीआई कार्ड वापस (सरेंडर) करने को लेकर नोटिस जारी किया था। जिसके खिलाफ विदेशी महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। न्यायमूर्ति नीतिन जामदार व न्यायमूर्ति मिलिंद जाधव की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान महिला के वकील ने कहा कि मेरी मुवक्किल ने पारिवारिक अदालत के निर्णय के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की है। इसलिए केंद्रीय गृहमंत्रालय की ओर से जारी नोटिस पर रोक लगाई जाए, किंतु खंडपीठ ने नागरिकता कानून 7ए (1) डी व 7(डी) एफ के प्रावधानों पर गौर करने के बाद केंद्रीय गृहमंत्रालय की कार्रवाई को वैध माना और कहा कि यदि कोई सक्षम न्यायालय विदेशी मूल के नागरिक से विवाह को खत्म कर देता है तो केंद्रीय गृह मंत्रालय विदेशी मूल के नागरिक को ओसीआई कार्ड सरेंडर करने के लिए कह सकता है।गृह मंत्रालय के अधिकारियों के पास इस तरह के मामले में कार्रवाई का अधिकार है। यह कहते हुए खंडपीठ ने विदेशी महिला की याचिका को खारिज कर दिया।
तलाक के लिए हाईकोर्ट ने महिला को दी छूट, दूसरे व्यक्ति से विवाह के लिए मांगा था "कूलिंग ऑफ़ पीरियड’ से राहत
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महिला के गर्भवती होने के चलते तलाक के लिए जरुरी 6 माह के "कूलिंग ऑफ पीरियड’ से छूट दी है। हिंदू विवाह अधिनियम के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए आवेदन करने वाले दंपति को 6 माह तक इंतजार करना पड़ता है। इस अवधि को कूलिंग ऑफ पीरियड कहा जाता है। महिला ने अपने पति के साथ आपसी सहमति से तलाक के लिए मुंबई की पारिवारिक अदालत में आवेदन दायर किया है। इसके अलावा महिला ने कोर्ट में परिवारिक अदालत में 6 माह के "कूलिंग ऑफ़ पीरियड’ से छूट देने का आग्रह किया था। किंतु पारिवारिक अदालत ने छूट से जुड़े आवेदन को खारिज कर दिया था। इसलिए उसने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। महिला ने याचिका में कहा था कि वह किसी और व्यक्ति से गर्भवती है और वह जल्दी से जल्दी उस व्यक्ति से विवाह करना चाहती है। इसलिए उसे 6 माह के कूलिंग ऑफ पीरियड से छूट दी जाए। न्यायमूर्ति नीतिन साम्ब्रे के सामने के सामने महिला की याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान महिला के पति के वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल याचिकाकर्ता से साल 2018 से अलग रह रहे हैं। याचिकाकर्ता और मेरे मुवक्किल स्वतंत्र रुप से अपना-अपना जीवन जी रहे हैं। इसलिए यदि कूलिंग ऑफ पीरियड को खत्म किया जाता है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। क्योंकि दोनों का साथ रहना संभव नहीं है। प्रकरण से जुड़े दंपति का विवाह 15 अगस्त 2014 में हुआ था। मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने व सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति ने महिला की "कूलिंग ऑफ़ पीरियड’से छूट देने की मांग को स्वीकार कर लिया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया है कि यदि कोर्ट को महसूस होता है कि दंपति का साथ रहना संभव नहीं है तो अदालत अपने विषेशाधिकार का इस्तेमाल करके "कूलिंग ऑफ़ पीरियड’को खत्म कर सकती है। इस आधार पर न्यायमूर्ति ने महिला की मांग को मंजूर कर लिया और पारिवारिक अदालत को दंपति की तलाक से जुडी याचिका का शीघ्रता से निपटारा करने का निर्देश दिया।
Created On :   30 Oct 2020 7:23 PM IST