रेत माफिया निगल गए टाइगर ऑफ वॉटर - विलुप्ति की कगार पर महाशीर, शासन प्रशासन के पास नहीं कोई प्लान

Sand mafia swallows tiger of water - Mahasheer on the verge of extinction, no plan with the administration
रेत माफिया निगल गए टाइगर ऑफ वॉटर - विलुप्ति की कगार पर महाशीर, शासन प्रशासन के पास नहीं कोई प्लान
रेत माफिया निगल गए टाइगर ऑफ वॉटर - विलुप्ति की कगार पर महाशीर, शासन प्रशासन के पास नहीं कोई प्लान

डिजिटल डेस्क मंडला। नर्मदा,बंजर समेत सहायक नदियों में रेत के बेतहाशा उत्खनन के चलते टाइगर ऑफ वॉटर महाशीर मछली ं विलुप्ति की कगार पर पहुंच गई है। जलीय जैव विविधता के लिए महाशीर मछली सबसे अधिक कारगार हैं लेकिन रेत का उत्खनन नदियों में इतना अधिक मात्रा में हुआ है कि अन्य जलीय जीव जंतु भी खत्म हो गए हैं, बेखौफ होकर नदियो में मशीन लगा खनन कर रेत माफियाओं ने महाशीर को निगल लिया है। अवैध खनन से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया ही है इसके साथ राजस्व भी घटा है। इस सबके बावजूद जिले की नादियो में मनमाना उत्खनन जारी है। टाइगर ऑफ  वाटर कही जाने वाली महाशीर मछली को मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ने ही राज्य मछली का दर्जा दिया था लेकिन इतने सालो के बाद भी यहां महाशीर अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए तड़प रही है।
 जानकारी अनुसार महाशीर मछली नर्मदा, बंजर जैसी कई साफ पानी की नदियों में प्रचुर मात्रा में पाई जाती थी लेकिन पिछले पन्द्रह सालो से इनकी संख्या में तेजी से गिरावट आई है। हालात यह है कि नदी में यह मछली अब देखने को नहीं मिल रही है। बंजर को रेत माफिया ने खोखला कर दिया है और अब नजर नर्मदा नदी पर गड़ाए है। बारिश को छोड़कर अन्य सीजन में बंजर डबरे में तब्दील हो जाती है यही वजह की नर्मदा का भी जलस्तर कम होता जा रहा है। इसके चलते महाशीर विलुप्ति कगार में पहुंच गई। सहायक नदियो में लगातार खनन पर्यावरण और नर्मदा नदी की जल धारा कमजोर हो गई। खास बात यह है कि ये मछली बहते जल में प्रजनन करती है। महाशीर को प्रजनन के लिए पर्याप्त जलीय वातावरण ही नहीं मिला है।
मछली विभाग ने भी नहीं ली सुध
बताया गया है कि नर्मदा की जलधाराओ में इतराती बेहद खूबसूरत महाशीर के संरक्षण के लिए यहां मंडला में भी कोई प्रयास नहीं किया गया है। राज्य मछली का दर्जा मिला एक असरा बीत गया है लेकिन विभागीय तौर पर इसके संरक्षण के लिए मछली विभाग के द्वारा कोई कवायद नहीं की गई है। यहां पदस्थ प्रभारी श्री सैयाम का कहना है कि महाशीर पिछले डेढ़ दशक से कम होती गई। अब बहुत कम देखनो को मिलती है। मछुआरें के मत्स्याखेट करने से इसकी संख्या कम होना वजह है।
संरक्षण के लिए करें प्रयास
महाशीर मछली की कई प्रजति है। यहां मंडला के मछुआरे बड़ी मछली को करचा और छोटी मछली को चिरायी के नाम से जानते है। पित्तर पक्ष पर कुछ मछुआरे के लिए धर्मिक महत्व भी रखती है लेकिन अब नदी ये मछली बहुत कम हो गई, इस वजह से अब दूसरी मछली को रखते है। इसके प्राकृतिक संरक्षण करने के साथ इनका तालाबों में पालन व कृत्रिम प्रजनन कराते हुए नदियो में छोड़ा जा सकता है  जिससे इनका संरक्षण और प्रजाति की संख्या में आ रही कमी को दूर कर महाशीर को बचाया जा सकता है।
 

Created On :   11 Dec 2020 1:58 PM IST

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